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Jaya Ekadashi News: आज है जया एकादशी, जानिये एकादशी के फायदे, क्यों चावल खाना है मना
Jaya Ekadashi News: माघ शुक्ल की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है। 8 फरवरी को जया एकादशी है। कहते हैं कि इस दिन पूजा-उपासना से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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Jaya Ekadashi News: माघ शुक्ल की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है। 8 फरवरी को जया एकादशी है। कहते हैं कि इस दिन पूजा-उपासना से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्योतिषविदों का कहना है कि जया एकादशी के दिन कुछ दिव्य उपाय करने से इंसान की तकदीर चमक सकती है। इस दिन चावल खाना मना है। अनाज और नमक भी नहीं खाना चाहिए। साथ ही व्रत के दौरान शकरकंद, कुट्टू के आटे से बनी रोटी खा सकते हैं। दूध, दही और फल भी खा सकते हैं।
एक बार, देवताओं के राजा इंद्र स्वर्ग में नंदन नामक वन में गए। इस जंगल में कुछ देवता रहते थे जो शांत जंगलों की शांतिपूर्ण सेटिंग और हरे-भरे जंगल और फूलों के सबसे सुंदर वातावरण के बीच अपने जीवन का आनंद ले रहे थे। माल्यवान वन नंदन के निवासियों में एक अत्यंत सुंदर और ज्ञानी था। उसे पुष्पावती नाम की एक नाचने वाली युवती से प्यार हो गया था, जो उससे उतना ही प्यार करती थी। वे दोनों अक्सर अपने कर्तव्यों को भूल जाते थे और एक-दूसरे की सुंदरता की परस्पर प्रशंसा में लिप्त हो जाते थे इंद्र की यात्रा के दौरान, देवताओं ने एक नृत्य समारोह का आयोजन किया और माल्यवान और पुष्पवती ने इसमें भाग लिया। जब वे नृत्य कर रहे थे, तो वे पूरी तरह से भीड़ के बारे में भूल गए और एक-दूसरे से प्रेम करने में तल्लीन हो गए, जिससे इंद्र परेशान हो गए। उनके व्यवहार से क्रोधित होकर इंद्र ने उन्हें श्राप दिया कि वे दोनों पृथ्वी पर गरीब जोड़े के रूप में जन्म लेंगे और गरीबी भोगेंगे। अपने श्राप के कारण, वे दोनों हिमालय में गरीब किसान जोड़े के रूप में पैदा हुए। उनके पास न तो जीवित रहने के लिए भोजन था और न ही भीषण ठंड से खुद को ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े। एक बार जया एकादशी के दिन, वे अनजाने में भगवान विष्णु की तपस्या और पूजा में लग गए, जिससे उन्हें भगवान का आशीर्वाद मिला और उन्हें उनका खोया हुआ वैभव और स्वर्ग जीवन वापस मिल गया। आइये जानते हैं एकादशी के बारे में
एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है। जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। जो पुण्य सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है। एकादशी करनेवालों के पितृ नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं । इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है । धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है। कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है । परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है। पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। भगवान शिव ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन किये हुए व्रत एवं गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है। गौमाता के निमित्त निकाला गया ग्रास सदैव घर के भंडार में वृद्धि कारक होता है।
एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यों ?
पूज्य डोंगरे जी महाराज एकादशी के बारे में एक वैज्ञानिक रहस्य बताते हुए कहते हैं : संत डोंगरेजी महाराज बोलते थे कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए । जो खाता है, समझो वह एक-एक चावल का दाना खाते समय एक-एक कीड़ा खाने का पाप करता है । संत की वाणी में हमारी मति-गति नहीं हो तब भी कुछ सच्चाई तो होगी । मेरे मन में हुआ कि ‘इस प्रकार कैसे हानि होती होगी ? क्या होता होगा ?’
तो शास्त्रों से इस संशय का समाधान मेरे को मिला कि प्रतिपदा से लेकर अष्टमी तक वातावरण में से, हमारे शरीर में से जलीय अंश का शोषण होता है, भूख ज्यादा लगती है और अष्टमी से लेकर पूनम या अमावस्या तक जलीय अंश शरीर में बढ़ता है, भूख कम होने लगती है। चावल पैदा होने और चावल बनाने में खूब पानी लगता है। चावल खाने के बाद भी जलीय अंश ज्यादा उपयोग में आता है। जल के मध्यम भाग से रक्त एवं सूक्ष्म भाग से प्राण बनता है। सभी जल तथा जलीय पदार्थों पर चन्द्रमा का अधिक प्रभाव पड़ने से रक्त व प्राण की गति पर भी चन्द्रमा की गति का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः यदि एकादशी को जलीय अंश की अधिकतावाले पदार्थ जैसे चावल आदि खायेंगे तो चन्द्रमा के कुप्रभाव से हमारे स्वास्थ्य और सुव्यवस्था पर कुप्रभाव पड़ता है । जैसे कीड़े मरे या कुछ अशुद्ध खाया तो मन विक्षिप्त होता है, ऐसे ही एकादशी के दिन चावल खाने से भी मन का विक्षेप बढ़ता है। तो अब यह वैज्ञानिक समाधान मिला कि अष्टमी के बाद जलीय अंश आंदोलित होता है और इतना आंदोलित होता है कि आप समुद्र के नजदीक डेढ़-दो सौ किलोमीटर तक के क्षेत्र के पेड़-पौधों को अगर उन दिनों में काटते हो तो उनको रोग लग जाता है।
अभी विज्ञानी बोलते हैं कि मनुष्य को हफ्ते में एक बार लंघन करना (उपवास रखना) चाहिए लेकिन भारतीय संस्कृति कहती है : लाचारी का नाम लंघन नहीं… भगवान की प्रीति हो और उपवास भी हो। ‘उप’ माने समीप और ‘वास’ माने रहना – एकादशी व्रत के द्वारा भगवद्-भक्ति, भगवद्-ध्यान, भगवद्-ज्ञान, भगवद्-स्मृति के नजदीक आने का भारतीय संस्कृति ने अवसर बना लिया।
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