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बकरीद पर कुर्बानी का महत्व, जानिए महज प्रतीक या देता है कोई संदेश
ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद का त्योहार मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत विशेष होता हैं। इस दिन को कुर्बानी के लिए जाना जाता हैं। यह दिन यह संदेश देता है कि समाज की भलाई के लिए आपकी कितनी भी अजीज़ वस्तु ही क्यों न हो, उसे कुर्बान कर देना चाहिए।
जयपुर:ईद-उल-अजहा अर्थात बकरीद का त्योहार मुस्लिम सम्प्रदाय के लिए बहुत विशेष होता हैं। इस दिन को कुर्बानी के लिए जाना जाता हैं। यह दिन यह संदेश देता है कि समाज की भलाई के लिए आपकी कितनी भी अजीज़ वस्तु ही क्यों न हो, उसे कुर्बान कर देना चाहिए। कुर्बानी का यह दिन त्याग की भावना जगाता है।
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महत्व
कल 1 अगस्त को बकरीद मनाया जाएगा। इसे ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा के नाम से भी जाना जाता हैं। रमजान के पाक महीने के समाप्त होने के 70 दिनों के बाद यह दिन आता हैं। इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने की 10 तारीख को इसे मनाया जाता हैं। बकरीद का यह त्यौहार कुर्बानी के महत्व को दर्शाता हैं। बकरीद पर इस्लाम धर्म के लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी दी जाती है। ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबों लोगों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं। एक-दुसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं।
इतिहास
इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है
कुर्बानी देनी चाहिए
जानते हैं कुरान शरीफ में कुर्बानी को लेकर क्या कहा गया हैं।कुरान की रोशनी में देखा जाए तो जो लोग हज करने जा रहे हैं, उन्हें कुर्बानी जरूर देनी चाहिए। साथ ही उन लोगों को भी कुर्बानी देनी चाहिए, जिनकी क्षमता है कुर्बानी देने की। हर किसी के लिए कुर्बानी देना अनिवार्य नहीं है। इस्लामिक विषयों के जानकार ने बताया कि फुका में कुर्बानी का एक बड़ा नियम यह है कि जिनके पास 613 से 614 ग्राम चांदी है या आज के हिसाब से इतनी चांदी की कीमत के बराबर धन है उन पर कुर्बानी फर्ज है यानी उसे कुर्बानी देनी चाहिए।
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कुरान के अनुसार कुर्बानी देने के लिए किसी से कर्ज लेना जायज नहीं है। जिनके ऊपर कर्ज है उन्हें पहले अपना कर्ज उतारना चाहिए, कर्ज रहते कुर्बानी देना अल्लाह को पसंद नहीं है, इसे अल्लाह कुबूल नहीं करते हैं।कुरान में बताया गया है कि जो लोग अपनी कमाई का ढाई प्रतिशत हिस्सा समाज सेवा के लिए या जरूतमंद को दान में देते हैं उन्हें जानवर की कुर्बानी देने की जरूरत नहीं है। उनके द्वारा किया गया दान ही कुर्बानी के तौर पर अल्लाह कुबूल कर लेता है।
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