जानें हनुमान जी कुल कितने भाई थे और क्या थे उनके नाम ?

Hanuman ji: वानरराज केसरी के कुल छः पुत्र थे। उनमें हनुमान जी सबसे बडे थे। उनके अन्य भाईयों के नाम मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान था। ये सभी भाई विवाहित भी थे। इन सबकी सन्ताने भी थीं।

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Published on: 26 March 2023 6:20 PM IST
जानें हनुमान जी कुल कितने भाई थे और क्या थे उनके नाम ?
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Hanuman ji: ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णित है कि हनुमान जी के पाँच भाई और थे। वानरराज केसरी के कुल छः पुत्र थे। उनमें हनुमान जी सबसे बडे थे। उनके अन्य भाईयों के नाम मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान और धृतिमान था। ये सभी भाई विवाहित भी थे। इन सबकी सन्ताने भी थीं। वानर केसरी ने कुंजर की पुत्री अंजना को पत्नी के रूप में ग्रहण किया था। अंजना के गर्भ से प्राणस्वरूप वायु के अंश से हनुमान जी का जन्म हुआ। हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे।
केसरी कुन्जरस्या सुतां भार्यामविन्दत। तस्यां जातस्तु हनुमान्वायुना जगद्वायुना ।
ज्येष्ठस्तु हनुमास्तेषां मतिमान्स्तु ततः स्मृतः।
श्रुतिमान्केतुमानश्चैव गतिमान्धृतिमानपि ।
हनुमद्भ्रातरो ये वै ते दारैः सुप्रतिष्ठिताः।
ब्रह्मचारी च हनुमान्नासौ दारैश्च योजितः।

इसी में आगे हनुमान् को वेग में दूसरा गरुड कहा गया है ।
जवे जवे च वितते वैनतेय इवापरः।
(ब्रह्माण्ड पुराण 2/7/224-225-226)

लंका में रावण को अपना परिचय बताते हुए वे कहते हैं कि मेरा नाम हनुमान है। मैं वायुदेव का औरस पुत्र हूँ। श्री सुदर्शन संहिता में हनुमान जी को रुद्र का अवतार कहा है।
बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च ।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः।

हनुमान जी के अपरिमित बल, उत्साह, निर्भीकता और आत्मविश्वास का आकलन करने के लिए उनका ही यह कथन प्रमाण है। जब वे लंका में रावण के सेनापतियों के समक्ष अपने परिचय में कहते हैं कि सहस्रों रावण युद्ध में मेरा सामना नहीं कर सकते।

न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्।
(वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड43/10)

जिस एक रावण ने अपने पराक्रम से इन्द्र को बन्दी बना लिया था और यमराज का दण्ड बलात् छीन लिया था, ऐसे हजारो रावण मिलकर भी हनुमान जी का मुकाबला युद्ध में नहीं कर सकते, ऐसा अद्भुत आत्मविश्वास उनके अन्दर था और उस आत्मविश्वास और पराक्रम को उन्होंने लंका में प्रदर्शित भी किया। उनके अन्दर कितनी विनम्रतापूर्वक और राम- भक्ति भरी है इसका प्रमाण भी लंका में रावण के सैनिकों के समक्ष उनके द्वारा दिया गया अपना परिचय है। हनुमान जी कहते हैं कि -

दासोsहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः।
(वाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड43/9)

इसी प्रकार रावण के समक्ष राम के पराक्रम का वर्णन करते हुए हनुमान जी कहते हैं कि राम जी के सामने समर में ब्रह्मा, रुद्र और देवताओं के स्वामी इन्द्र भी नहीं ठहर सकते।

ब्रह्मा स्वयम्भूश्चतुराननो वा
रुद्रस्तिनेत्रस्त्रिपुरान्तको वा
इन्द्रो महेन्द्रः सुरनायको वा
स्थातुं न शक्ता युधि राघवस्य ।।
(वाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड 51/44)

हनुमान जी बुद्धिमत्ता अतुलनीय थी। तभी तो वाल्मीकि जी ने उनके लिए महामतिः,मेधावी, मतिमान् आदि विशेषणों का अनेकशः प्रयोग किया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें बुद्धिमतां वरिष्ठम् और विद्यावान कहा है। हनुमान जी के अपरिमित ज्ञान का पता इसी से ज्ञात होता है जब वे रावण से कहते हैं कि जिनको तुम सीता नाम से जानते हो वे कालरात्री हैं।
(सुन्दर काण्ड 51/34)

अर्थात् सीता जी शक्ति -स्वरूपा देवी हैं, यह हनुमान जी को ज्ञात था।
हनुमान जी संस्कृतज्ञ थे। पहले वे संस्कृत भाषा में ही सीता जी से वार्तालाप करना चाहते थे, लेकिन उन्हें इस बात का भय लगा कि कहीं द्विज की भाँति संस्कृत बोलने पर सीता मुझे रावण समझ कर भयभीत न हो जाय।

वाचं चोदाहरिष्यामि मानुषीमिह संस्कृताम् ।
यदि वाचं प्रदास्यामि द्विजातिरिव संस्कृताम् ।

इसलिए हनुमान जी ने सीता जी से लोक भाषा में बात किया।
(सुन्दर काण्ड 30/17-18)

हनुमान जी चिरंजीवी ( अमर )है। सप्त /अष्ट चिरंजीवियों में उनकी गणना होती है। उनका प्रताप चारों युगों में है - चारों जुग परताप तुम्हारा।
गोस्वामी तुलसी दास। श्री सुदर्शन संहिता में विभीषण कृत हनुमत्स्तुति में लिखा है कि प्रत्येक ग्राम में आप मूर्त रूप में उपस्थित हैं। राक्षसों और भूतों का वध करना आपका प्रयोजन है। वास्तव में आज गाँव गाँव में हनुमान जी की प्रतिमा हैं, जिनमें वे मूर्त रूप में विराजमान हैं।

प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने॥
(श्रीसुदर्शन संहिता विभीषण गरुड़ संवाद श्लोक संख्या 13)

हनुमान जी धर्म शास्त्र के न केवल ज्ञाता हैं अपितु उसका पालन भी करते हैं। तभी तो वे सीता जी की खोज में निकलने के पूर्व सभी बड़ों के चरणों में सिर नवाते हैं और सूर्य, इन्द्र, ब्रह्मा और अन्य देव योनियो का स्मरण कर उन्हें प्रणाम करते हैं।
( वाल्मीकि रामायण सुन्दर काण्ड 1/8)
उन्होंने पूर्वाभिमुख होकर अपने पिता पवन देव को भी प्रणाम किया।
अञ्जलिं प्राड्मुखं कुर्वन् पवनात्मयोनये ॥
(सुन्दर काण्ड 1/9)
रावण से वार्तालाप में हनुमान जी के कूटनीति, युद्ध नीति, राजनीति और धर्मनीति के ज्ञान का बख़ूबी पता लगता है। वे रावण से कहते हैं कि धर्म विरुद्ध कार्यों में बहुत से अनर्थ भरे रहते हैं। वे कर्ता का जडमूल से नाश कर डालते हैं। अतः तुम जैसे बुद्धिमान पुरूष ऐसे कार्यों में नहीं प्रवृत्त होते।
आनन्दरामायण में हनुमान जी के बारह नामों की स्तुति सभी संकटों का नाश करने वाली बतायी गयी है। ये नाम है- हनुमान, अञ्जनीसुनू, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुनसखा, पिङ्गाक्ष, अमितविक्रम, उदधिक्रमण, सीताशोकविनाशन, लक्ष्मणप्राणदाता और दशग्रीवदर्पहा ॥
रात में सोते समय और सुबह उठने पर तथा यात्रा के समय हनुमान जी के इन बारह नामों के स्मरण के साथ उनकी स्तुति करनी चाहिए। हनुमान जी अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के देने वाले हैं। ऐसे अमित विक्रम महावीर हनुमान जी सबका मंगल करें, इसी प्रार्थना और कामना के साथ।

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