Sawan Me MahaKaal Maha Sanyog: सावन में उज्जैन के महाकाल में 2004 के बाद दुर्लभ संयोग, इतनी बार पालकी पर आएंगे महाकाल

Sawan Me MahaKaal Maha Sanyog: 4 जुलाई से शुरू हो रहा सावन मास इस बार बहुत खास है। बाबा भोले के भक्तों को इस बार 59 दिन का सावन मास मिल रहा है। जो 19 साल बाद आया है। हर साल की तरह इस बार भी सावन में बाबा महाकाल की सवारी निकलेगी जानते है इसके बारे में...

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 1 July 2023 11:12 PM IST (Updated on: 3 July 2023 9:09 AM IST)
Sawan Me MahaKaal Maha Sanyog: सावन में उज्जैन के महाकाल में 2004 के बाद दुर्लभ संयोग, इतनी बार पालकी पर आएंगे महाकाल
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Sawan Me MahaKaal Maha Sanyog (सौ. से सोशल मीडिया)

Sawan Me MahaKaal Maha Sanyog: 19 साल बाद सावन माह में विशेष संयोग में शिव पूजा का महत्व बढ़ जाता है। और साथ ही भगवान शिव का आशीर्वाद भी मिलता है ।4 जुलाई से सावन का महीना शुरू हो जाएगा और अधिक मास होने के चलते इस बार 59 दिन का है। सावन आते ही देशभर के मंदिरों में शिवभगवान के जलाभिषेक की तैयारी की जाती है। इस तरह सावन में हर साल महाकाल मंदिर में सवारी निकलती है। इसको लेकर पूरी तैयारी भी की जाती है। इस दौरान देश के कोने कोने से श्रद्धालु दर्शन को आते है । हर साल सावन में बाबा महाकाल की 6 से 7 सवारी निकाली जाती हैं, लेकिन इस बार अधिकमास होने के कारण कुल 10 सवारियां निकाली जाएंगी, जिसके लिए श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति ने एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी थीं इस बार सवारी में कुल आठ रथ शामिल होंगे।

19 साल बाद होगा कि इस बार दो माह का श्रावण मास होने के कारण महाकाल की 10 सवाली निकलेगी। अधिक मास की चार, सावन की चार और भादौ की दो सवारियां मिलाकर 10 सवारियों का आनंद लेंगे।

18 जुलाई से अधिकमास प्रारंभ होगा जो 16 अगस्त को समाप्त होगा। कृष्ण पक्ष 1 से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर समाप्त होता है ऐसे में अधिक मास के दिन जुड़ जाने से श्रावण मास कृष्ण पक्ष के बाद शुक्ल पक्ष आए और पुन: कृष्ण पक्ष प्रारंभ होकर यह पुन: शुक्ल पक्ष प्रारंभ होकर पूर्णिमा पर समाप्त होगा। यानी सावन माह में दो अमावस्या, दो पूर्णिमा रहेगी।

बाबा महाकाल की सवारी कब कब

  • पहली सवारी – 10 जुलाई 2023
  • दूसरी सवारी – 17 जुलाई 2023
  • तीसरी सवारी – 24 जुलाई 2023
  • चौथी सवारी – 31 जुलाई 2023
  • पांचवी सवारी – 7 अगस्त 2023
  • छठी सवारी – 14 अगस्त 2023
  • सातवीं सवारी – 21 अगस्त 2023
  • आठवीं सवारी – 28 अगस्त 2023
  • नौवीं सवारी – 4 सितंबर 2023
  • अंतिम शाही सवारी – 11 सितंबर 2023

2004 के बाद फिर महाकाल की 10 सवारी

उज्जैन में विराजमान द्वादश ज्योर्तिलिंगों में से एक विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल के दर्शन, पूजन और उनका आशीर्वाद लेने पहुंचेंगे।सावन मास में बाबा महाकाल जिन्हें उज्जैन की जनता राजा के रूप में मानती है। वह अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए 10 बार नगर भ्रमण पर निकलते है। साल 1985 में भी श्रावण में अधिकमास आने पर महाकालेश्वर मंदिर से 10 सवारियां निकाली गई थीं, जबकि वर्ष 2004 में भी ऐसा ही संयोग बनने पर कुल 11 सवारियां निकली थी। इस बार भी राजाधिराज बाबा महाकाल की 10 सवारी निकाली जाएंगी। । महाकाल बाबा की 10 बार पालकी निकलेंगे क्योंकि इस बार श्रावण माह में 8 सोमवार रहेंगे यानी 2 माह का श्रावण मास रहेगा।

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 3 जुलाई को आषाढ़ी पूर्णिमा रहेगी। इसके बाद सावन का महीना प्रारंभ हो जाएगा। यानी 4 जुलाई से सावन मास प्रारंभ होगा। इस बार सावन का माह 4 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 अगस्त तक चलेगा। यानी पूरे 59 दिन का एक माह होगा। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि इस बार सावन माह में अधिकमास भी रहेगा।

सावन में महाकाल की सवारी

श्रावण-भादौ में भगवान महाकाल इस बार श्रावण में अधिक मास का संयोग होने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे। नागपंचमी पर खुलने वाले मंदिर के तीसरे तले पर स्थित श्री नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन को पहुंचते हैं। इस बार एक संयोग यह भी है कि नागपंचमी का पर्व 21अगस्त को है और इसी दिन महाकाल की सातवीं सवारी भी निकलेगी। कहते हैं महाकाल की शरण में आए बिना यहां किसी का भी कुछ नहीं हो सकता है।

महाकाल की कथा

उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। शिवगणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण उसका मित्र था। एक बार मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक अत्यंत तेजोमय 'चिंतामणि' प्रदान की। चंद्रसेन ने इसे गले में धारण किया तो उसका प्रभामंडल तो जगमगा ही उठा, साथ ही दूरस्थ देशों में उसकी यश-कीर्ति बढ़ने लगी। उस 'मणि' को प्राप्त करने के लिए दूसरे राजाओं ने प्रयास आरंभ कर दिए। कुछ ने प्रत्यक्षतः माँग की, कुछ ने विनती की।राजा की अत्यंत प्रिय वस्तु थी, अतः राजा ने वह मणि किसी को नहीं दी। अंततः उन पर मणि आकांक्षी राजाओं ने आक्रमण कर दिया। शिवभक्त चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गया। जब चंद्रसेन समाधिस्थ था तब वहाँ कोई गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन हेतु आई।बालक की उम्र थी पांच वर्ष और गोपी विधवा थी। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक भी शिव की पूजा हेतु प्रेरित हुआ। वह कहीं से एक पाषाण ले आया और अपने घर के एकांत स्थल में बैठकर भक्तिभाव से शिवलिंग की पूजा करने लगा। कुछ देर पश्चात उसकी माता ने भोजन के लिए उसे बुलाया किन्तु वह नहीं आया। फिर बुलाया, वह फिर नहीं आया। माता स्वयं बुलाने आई तो उसने देखा बालक ध्यानमग्न बैठा है और उसकी आवाज सुन नहीं रहा है।

तब क्रुद्ध हो माता ने उस बालक को पीटना शुरू कर दिया और समस्त पूजन-सामग्री उठाकर फेंक दी। ध्यान से मुक्त होकर बालक चेतना में आया तो उसे अपनी पूजा को नष्ट देखकर बहुत दुःख हुआ। अचानक उसकी व्यथा की गहराई से चमत्कार हुआ। भगवान शिव की कृपा से वहाँ एक सुंदर मंदिर निर्मित हो गया। मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था एवं बालक द्वारा सज्जित पूजा यथावत थी। उसकी माता की तंद्रा भंग हुई तो वह भी आश्चर्यचकित हो गई।
राजा चंद्रसेन को जब शिवजी की अनन्य कृपा से घटित इस घटना की जानकारी मिली तो वह भी उस शिवभक्त बालक से मिलने पहुँचा। अन्य राजा जो मणि हेतु युद्ध पर उतारू थे, वे भी पहुँचे। सभी ने राजा चंद्रसेन से अपने अपराध की क्षमा माँगी और सब मिलकर भगवान महाकाल का पूजन-अर्चन करने लगे। तभी वहाँ रामभक्त श्री हनुमानजी अवतरित हुए और उन्होंने गोप-बालक को गोद में बैठाकर सभी राजाओं और उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया।
ऋते शिवं नान्यतमा गतिरस्ति शरीरिणाम्‌॥
एवं गोप सुतो दिष्टया शिवपूजां विलोक्य च॥
अमन्त्रेणापि सम्पूज्य शिवं शिवम्‌ वाप्तवान्‌।
एष भक्तवरः शम्भोर्गोपानां कीर्तिवर्द्धनः
इह भुक्तवा खिलान्‌ भोगानन्ते मोक्षमवाप्स्यति॥
अस्य वंशेऽष्टमभावी नंदो नाम महायशाः।
प्राप्स्यते तस्यस पुत्रत्वं कृष्णो नारायणः स्वयम्‌॥
अर्थात 'शिव के अतिरिक्त प्राणियों की कोई गति नहीं है। इस गोप बालक ने अन्यत्र शिव पूजा को मात्र देखकर ही, बिना किसी मंत्र अथवा विधि-विधान के शिव आराधना कर शिवत्व-सर्वविध, मंगल को प्राप्त किया है। यह शिव का परम श्रेष्ठ भक्त समस्त गोपजनों की कीर्ति बढ़ाने वाला है। इस लोक में यह अखिल अनंत सुखों को प्राप्त करेगा व मृत्योपरांत मोक्ष को प्राप्त होगा।
इसी के वंश का आठवाँ पुरुष महायशस्वी 'नंद' होगा जिसके पुत्र के रूप में स्वयं नारायण 'कृष्ण' नाम से प्रतिष्ठित होंगे। कहा जाता है भगवान महाकाल तब ही से उज्जयिनी में स्वयं विराजमान है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में महाकाल की असीम महिमा का वर्णन मिलता है। महाकाल साक्षात राजाधिराज देवता माने गए हैं।

सावन मास में जलाभिषेक

सावन में सोमवार के दिन जलाभिषेक कब करें

पहला सावन सोमवार- 10 जुलाई 2023

  • सुबह- 04:19 AM, जुलाई 10 से 05:23 AM, जुलाई 10
  • शाम- 06:47 PM से 07:50 PM तक
  • निशिता काल-11:43 PM से 12:26 AM, तक जलाभिषेक करें।

दूसरा सावन सोमवार- 17 जुलाई 2023-सोमवती अमावस

  • सुबह- 04:22 AM, से 05:26 AM,
  • शाम- 06:43 PM से 07:47 PM तक
  • निशिता काल-11:43 PM से 12:26 AM तक जलाभिषेक करें।
  • सवार्थसिद्ध योग-05:11 AM, July 18 से 05:18 AM,

तीसरा सावन सोमवार- 24 जुलाई 2023

  • सुबह- 04:24 AM, से 05:29 AM
  • शाम- 06:38 PM से 07:44 PM तक
  • निशिता काल-11:42 PM से 12:25 AM तक जलाभिषेक करें।
    रवि योग-05:21 AM से 10:12 PM

चौथा सावन सोमवार- 31 जुलाई 2023

  • सुबह- 04:26 AM, से 05:32 AM
  • शाम- 06:32 PM से 07:38 PM
  • निशिताकाल- 11:40 PM से 12:24 AM तक जलाभिषेक करें।
  • रवि योग- 05:24 AM से 06:58 PM
  • सावन का पांचवा सोमवार: 07 अगस्त
    सावन का छठा सोमवार:14 अगस्त
    सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
    सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त

सामान्यत: पूरे मास इस समय शिव का जलाभिषेक किया जा सकता है।

  • सुबह: 05:40 से 08:25 तक
  • शाम 19:28 से 21:30 तक
  • शाम 21:30 से 23:33 तक (निशीथकाल समय)
  • रात्रि 23:33 से 24:10 तक (महानिशिथकाल समय)
  • पांचवी सवारी – 7 अगस्त 2023
  • छठी सवारी – 14 अगस्त 2023
  • सातवीं सवारी – 21 अगस्त 2023
  • आठवीं सवारी – 28 अगस्त 2023
  • नौवीं सवारी – 4 सितंबर 2023
  • अंतिम शाही सवारी – 11 सितंबर 2023 को करें

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