TRENDING TAGS :
Lord Shri Ram: कला और संस्कृति में श्रीराम
Lord Shri Ram: श्रीराम भारतीय संस्कृति के पहले महानायक हैं, जो श्लोक और लोक दोनों ही परम्परा में समान रूप से समादृत हैं। भौतिक दृष्टि से वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने राजपद त्याग कर आम जनजीवन में प्रवेश किया,। सरल शब्दों में कहें तो खास से आम हुए। आचरण की सभ्यता के संस्थापक राम अपने उदात्त गुणों और क्षुद्रजीवों को भी हृदय से लगाने के कारण सगुण और सुशील हैं।
कला और संस्कृति में श्रीराम: Photo- Social Media
Lord Shri Ram: श्रीराम भारतीय संस्कृति के पहले महानायक हैं, जो श्लोक और लोक दोनों ही परम्परा में समान रूप से समादृत हैं। भौतिक दृष्टि से वह पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने राजपद त्याग कर आम जनजीवन में प्रवेश किया,। सरल शब्दों में कहें तो खास से आम हुए। आचरण की सभ्यता के संस्थापक राम अपने उदात्त गुणों और क्षुद्रजीवों को भी हृदय से लगाने के कारण सगुण और सुशील हैं। सामान्य दृष्टि में उनके व्यक्तित्व की यही विराटता उनको नर से नारायण बनाती है :
- रामचरितमानस
नाथ राम नहिं नर भूपाला। भुवनेश्वर कालहुं करि काला ।।
वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी का वचन है :
देहबुद्ध्यात्वद्दासोऽहं जीवबुद्ध्यात्वदंशकः।
आत्मबुद्ध्यात्वमेवाऽहं इति मे निश्चितामतिः ।।
अर्थात् हे प्रभु ! देहबुद्धि से मैं आपका दास हूँ, जीवबुद्धि से आपका अंश हूँ और आत्मबुद्धि से जो आप हैं; वही मैं हूँ।
इस प्रकार प्रकारान्तर से श्रीराम यहाँ आधिभौतिक स्तर पर मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, आधिदैविक स्तर पर नर रूप में नारायण हैं। आध्यात्मिक स्तर पर साक्षात् ब्रह्म हैं।
Photo- Social Media
भारत की लगभग समस्त भाषाओं में रामकथा का अनेधा गायन किया गया है, यद्यपि मूल आधार वाल्मीकीय रामायण होने के कारण शेष सभी उपजीव्य ग्रन्थ हैं तथापि मूलकथा की बोकव्याप्ति में कहीं कोई अधिक अन्तर परिलक्षित नहीं होता। उत्तर भारतीय संस्कृत साहित्य परम्परा में प्राचेतस वाल्मीकि और द्वैपायन व्यास से लेकर अभिराज राजेन्द्र के 'जानकी जीवनम्' तक रामकथा की अविरलता समय-समय पर विभिन्न दृष्टि से खण्डकाव्य, नाटक और चम्पूकाव्य के रूप में गोचर है। बावजूद इसके हिन्दी साहित्य में गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी समस्त रचनाओं में जिस प्रकार से रामचरित का वर्णन किया है उसमें रामचरितमानस मूर्धामणि है, इसके अतिरिक्त परवर्ती इसी क्रम में राधेश्याम कथावाचक के राधेश्याम रामायण का नाम भी उल्लेखनीय है।
उत्तर भारत में रामकथा की जो समृद्ध परम्परा प्राप्त होती है, उसमें महर्षि वाल्मीकि के रामायण, सर्वाधिक बाबा तुलसी के रामचरितमानस और राधेश्याम कथावाचक के राधेश्याम रामायण का अनुगायन प्रमुखता से होता है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो वाल्मीकि ने जहाँ अपने समय के विग्रहवान् धर्म अर्थात् धर्ममूर्ति की कथा को अध्यात्म और अपने समकालीन इतिहास के संगम पर बैठकर लिख एक आधारभूमि दी वहीं अपने समकालीन समाज और सत्ता से संघर्ष करते हुए गोस्वामी जी ने पूर्वसूरियों को आधार बनाकर आगम और निगम परम्परा की आधारपीठ पर आसीन होकर जिस रामचरित को सामने रखा उसने सनातन भारतीय सांस्कृतिक चेतना को रक्षित, नवजागृत और प्रतिष्ठित करने का कार्य किया जबकि परवर्ती राधेश्याम कथावाचक ने रामकथा को सरल संवादात्मक गेय कथोपकथन के रूप में पिरोकर रामलीलाओं के लिए सुलभ ही नहीं बनाया बल्कि जनमानस को उन भूमिकाओं के मंचन के लिए प्रोत्साहित भी किया, जो नाट्यकला की दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं कही जा सकती है।
Photo- Social Media
अभिलेखों पर गौर करें तो 'राम' शब्द का प्रथम उल्लेख सातवाहन नरेश वासिष्ठीपुत्र पुलमावि के नासिक गुहा लेख में हुआ है। जबकि कला के क्षेत्र में हेलियोडोरस के गरुड़ स्तम्भ को छोड़ दें तो दशावतार सहित अधिकांश विष्णु प्रतिमायें परमभागवत गुप्तसम्राटों के काल से मिलना प्रारम्भ होती हैं । बावजूद इसके कतिपय रामायण के दृश्य फलक भी प्राप्त होते हैं, जिसमें 5वीं शती का श्रृंग्वेरपुर से प्राप्त राम-सुग्रीव मैत्री फलक तथा एक अन्य स्थान से प्राप्त सूर्पणखा के नाक-कान काटने का दृश्य फलक व कतिपय कोदण्डपाणि श्रीराम की मूर्तियाँ भी मिली हैं । किन्तु मध्यकाल के लघु चित्रकारों ने लघुचित्रों में जिस प्रकार से रामायण, महाभारत और पौराणिक कथा परम्परा को श्रृंखलाबद्ध तरीके से संजोने का प्रयास किया है, वह सर्वथा श्लाघनीय है।
पुरातात्विकों ने रामायण और परवर्ती ग्रन्थों में विवृत प्रभु श्रीराम से सम्पृक्त स्थानों पर उत्खनन कर स्थान और काल निर्धारण में प्रभूत सफलता पाई है, जो कहीं न कहीं प्रभु श्रीराम के मिथक होने की अवधारणा को तोड़ता है।
Photo- Social Media
अयोध्या शोध संस्थान की 'ग्लोबल इंसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण' परियोजना के अन्तर्गत 'उत्तर भारत की कला एवं संस्कृति में राम' विषय पर इलाहाबाद संग्रहालय, प्रयागराज के सहयोग से आयोजित संगोष्ठी में साहित्य, इतिहास, कला, संस्कृति और पुरातत्व के विद्वानों द्वारा प्रस्तुत विचारों का संकलन इस दिशा में एक स्तुत्य प्रयास है, जिसे यथावत्, यथासामर्थ्य टंकण त्रुटि का परिष्कार करके सुधी पाठकों, शोधार्थियों और विद्वानों के समक्ष ग्रन्थ रूप में प्रस्तुत करते हुए आह्लाद हो रहा है। विश्वास है कि यह पुस्तक अपने उद्देश्य की सम्पूर्ति में सफल होगी।
अन्त में सभी विद्वानों, उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी, श्री जयवीर सिंह, माननीय मंत्री, पर्यटन एवं संस्कृति, मुकेश कुमार मेश्राम, प्रमुख सचिव, पर्यटन, संस्कृत एवं धर्मार्थ कार्य विभाग, शिशिर, निदेशक, संस्कृति, उत्तर प्रदेश, डॉ. अखिलेश कुमार सिंह, निदेशक, इलाहाबाद संग्रहालय एवं डॉ. लवकुश द्विवेदी, निदेशक, अयोध्या शोध संस्थान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए, प्रणतिपूर्वक प्रभु श्रीराम से यही अभ्यर्थना है :
नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये,
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरांमे।
कामादिदोषरहित कुरु मानसं च ।।
(लेखक इलाहाबाद संग्रहालय से जुड़े हैं। यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, का संस्थान है। पुस्तक ‘कला व संस्कृति में श्रीराम’ की संपादकीय से साभार। यह पुस्तक उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के संरक्षक, संस्कृति व पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह के मार्ग दर्शन, प्रमुख सचिव पर्यटन व संस्कृति मुकेश कुमार मेश्राम के निर्देशन, संस्कृति निदेशालय के निदेशक शिशिर तथा कार्यकारी संपादक तथा अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ लव कुश द्विवेदी के सहयोग से प्रकाशित हुई है। )
======================
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!