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क्यों होती है दीवाली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा
Lakshmi and Ganesh Puja: कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी परेशान हो गई, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
Lakshmi and Ganesh Puja: लक्ष्मी जी जब सागरमन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी परेशान हो गई, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।
तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को धन का डिस्ट्रीब्यूटर बनने को कहा, गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान, वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी ! अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/ रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।
कुबेर भंडारी रह गए, गणेश पैसा सैंक्शन करवाने वाले बन गए। गणेश जी की दरियादिली देख माँ लक्ष्मी ने अपने भतीजे/ भांजे/ मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे सँग ले आती हैं गणेश जी को, इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।
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