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HC ने दिया अल्पसंख्यक कॉलेजों को झटका, इस कोर्स में मर्जी से प्रवेश की सरकारी छूट पर रोक
याची का कहना है कि उसे डीएल एड कोर्स की सभी सीटों पर छात्रों के प्रवेश लेने का अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था होने के नाते अधिकार है। नियमानुसार 50 फीसदी सीट अपने समुदाय से तथा 50 फीसदी सीट केन्द्रीयकृत काउंसलिंग के छात्रों से भरा जाना है। कोर्ट ने याचिका को जनहित याचिका मानते हुए संबंधित खण्डपीठ को सौंपने का आदेश दिया है।
इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 जून 2015 के सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है। सरकार के आदेश से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को तकनीकी कोर्स में छात्रों के प्रवेश लेने की पूरी छूट दी गई है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार के आदेश अनुच्छेद 14 और राष्ट्रीय और छात्रों के हितों के विपरीत है। कोर्ट के इस आदेश से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को बड़ा झटका लगा है।
याची का कहना है कि उसे डीएल एड कोर्स की सभी सीटों पर छात्रों के प्रवेश लेने का अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था होने के नाते अधिकार है। नियमानुसार 50 फीसदी सीट अपने समुदाय से तथा 50 फीसदी सीट केन्द्रीयकृत काउंसलिंग के छात्रों से भरा जाना है। कोर्ट ने याचिका को जनहित याचिका मानते हुए संबंधित खण्डपीठ को सौंपने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने शमा परवीन गर्ल्स डिग्री कॉलेज आगरा की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि वह अल्पसंख्यक संस्था है। अनुच्छेद 30 के तहत उसे प्रबंधन का अधिकार है। इसलिए स्वीकृत सभी सीटों पर उसे अपनी मर्जी से छात्रों का प्रवेश लेने का अधिकार है किन्तु उसे काउंसिलिंग के छात्रों का प्रवेश देने के लिए बाध्य किया जा रहा है। डीएल एड (बीटीसी) कोर्स में छात्रों की 100 फीसदी सीट भरने का उसे अधिकार है।
सरकार से उसे यह अधिकार मिला है। कोर्ट ने कहा कि टीएमए पाई फाउण्डेशन केस के फैसले के तहत छात्र हित देखा जाएगा। योग्य छात्रों की अध्यापक पद पर नियुक्ति से समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक विद्यालयों को तकनीकी कोर्स में अपनी मर्जी से नहीं, मेरिट से प्रवेश देने का अधिकार है।
अनुच्छेद 21 ए अल्पसंख्यक विद्यालयों पर भी लागू है जो अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करता है। शिक्षा की गुणवत्ता कायम रखने के लिए योग्य छात्रों का प्रवेश जरूरी है। अल्पसंख्यक कालेज केवल 50 फीसदी सीटों पर ही अपनी मर्जी से प्रवेश ले सकते हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के लिए सरकार के आदेश जनहित व छात्रहित के खिलाफ है।
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