'भारत माता की जय' पर पाबंदी लगाने वाले विद्यालय का सामने आया ये बड़ा फर्जीवाड़ा

Shivakant Shukla
Published on: 11 Oct 2018 6:50 PM IST
भारत माता की जय पर पाबंदी लगाने वाले विद्यालय का सामने आया ये बड़ा फर्जीवाड़ा
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अनूप कुमार हेमकर

बलिया: भारत माता की जय व वन्देमातरम बोलने पर पाबंदी को लेकर सुर्खियों में आये जिले के गांधी मुहम्मद अली मेमोरियल इंटर कॉलेज में शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करके पिछले 5 वर्ष में 32 शिक्षकों व कर्मचारियों की नियुक्ति कर ली गई है ।

गांधी मुहम्मद अली मेमोरियल इंटर कॉलेज, बिल्थरा रोड को लेकर चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है । इस विद्यालय में पिछले 5 वर्ष में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान की आड़ में 32 नियुक्तियां शिक्षक व कर्मचारी के पद पर कर ली गई हैं। इन नियुक्तियों में शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जमकर उपकृत किया गया है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व मुहम्मद अली मेमोरियल अली ट्रस्ट द्वारा वर्ष 1945 में स्थापित इस विद्यालय को वर्ष 1945 में जूनियर हाईस्कूल , वर्ष 1948 में हाई स्कूल व वर्ष 1950 में इंटर की मान्यता माध्यमिक शिक्षा अधिनियम के प्राविधान के अंतर्गत मिली। उप शिक्षा निदेशक , वाराणसी ने वर्ष 1958 में इस विद्यालय के संचालन के लिये प्रशासन योजना अनुमोदित किया। इस विद्यालय की प्रबंध समिति ने प्रधानाचार्य बदरुल हसन कादरी को बर्खास्त कर दिया था , जिसको लेकर कादरी ने प्रबंध समिति के फैसले के विरुद्ध उप शिक्षा निदेशक , वाराणसी के यहाँ अपील किया।

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उप शिक्षा निदेशक ने दिनांक 22 जनवरी 1979 को अपील को विद्यालय के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान होने का हवाला देते हुए अपोषणीय करार दिया तथा हस्तक्षेप से इंकार कर दिया । इस निर्णय के विरुद्ध प्रधानाचार्य कादरी ने उच्च न्यायालय , इलाहाबाद में याचिका संख्या 2940 /1979 दाखिल किया , जिसे न्यायालय ने दिनांक 24 मई 1984 को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध कादरी सर्वोच्च न्यायालय गये तथा याचिका दायर किया।

सर्वोच्च न्यायालय से प्रधानाचार्य कादरी को राहत मिला तथा सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 29 अक्टूबर 1984 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर पुनः इलाहाबाद हाईकोर्ट को विद्यालय के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान होने के तथ्य पर निर्णय करने के लिये संदर्भित कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने याचिका संख्या 2940/1979 की पुनः सुनवाई की तथा याची कादरी के साथ ही विद्यालय प्रबंध समिति की सुनवाई कर दिनांक 12 फरवरी 1992 को फैसला सुनाया।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह संस्था सामान्य शिक्षण संस्थान की तरह संचालित हो रहा था

फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अमरेंद्र नाथ वर्मा व आर के गुलाटी की द्विसदस्यीय खंडपीठ ने अवधारित किया कि इस संस्था की स्थापना केवल मुस्लिम ने नहीं , बल्कि अनेक हिंदू व्यक्तियों ने मिलकर किया है । इस संस्था की स्थापना किसी वर्ग विशेष के लिये नही किया गया , बल्कि सभी को शिक्षा व तकनीकी शिक्षा का लाभ देने के लिये किया गया है । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि यह संस्था अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नही है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह संस्था सामान्य शिक्षण संस्थान की तरह संचालित हो रहा था। अन्य मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की तरह इस संस्था में माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से चयनित अध्यापक नियुक्त हो रहे थे। नया मोड़ आया वर्ष 2013 में जब संस्था की तरफ से मुहम्मद नाजिर आलम ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग में मुकदमा संख्या 2130/2013 दाखिल किया।

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प्राप्त कर लिया एक पक्षीय आदेश ...

स मुकदमे में संस्था की तरफ से नाजिर अली ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को छिपा लिया व इसका कोई हवाला नही दिया तथा संस्था के पंजीकरण , संविधान व उद्देश्य का हवाला देकर दिनांक 29 अक्टूबर 2013 को एक पक्षीय आदेश प्राप्त कर लिया। आयोग ने संस्था को अल्पसंख्यक दर्जा के लिये उपयुक्त करार देते हुए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान घोषित कर दिया तथा आयोग के चेयरमैन जस्टिस एम एस ए सिद्दीकी ने दिनांक 29 अक्टूबर 2013 को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का प्रमाण पत्र जारी कर दिया।

विद्यालय सूत्रों के अनुसार अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान घोषित होने के बाद संस्था में शिक्षक व कर्मचारी के पद पर कुल 32 नियुक्ति कर ली गई है। अजीबोगरीब तथ्य यह भी है कि एक तरफ यह संस्था स्वयं को अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान करार देता है , दूसरी तरफ शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से इस संस्था के अध्यापकों का स्थानांतरण भी किया गया।

हाल ही में विद्यालय में एक अध्यापक शारदा यादव का स्थानांतरण किया गया है। यही नही नियुक्ति के लिये अनेक शिक्षकों को 2 वर्ष पहले ही सेवानिवृत्त करा दिया गया। नियुक्ति का काम बेरोकटोक चलता रहे , इसके लिये शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी उपकृत कर दिया गया तथा अधिकारियों के कई परिजन व रिश्तेदार नियुक्त किये गये। सवाल यह है कि जब इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला कर चुका है कि यह अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान नही है तो क्या राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग व शिक्षा विभाग को अधिकार है कि वह इस संस्था को

अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान स्वीकार कर ले। इस मसले को सामाजिक कार्यकर्ता अरुण तिवारी मुख्यमंत्री कार्यालय तक उठा चुके हैं। अरुण कहते हैं कि उनके शिकायत पर कोई कार्रवाई नही किया गया। उनसे कोई सूचना व साक्ष्य लिये बगैर मामले में लीपापोती कर दिया गया। अरुण का आरोप है कि विद्यालय ने नियुक्ति के जरिये तकरीबन 6 करोड़ वसूल किये हैं, जब कोई जांच होती है , विद्यालय धन देकर जांच के नाम पर खानापूर्ति कराकर मामला समाप्त करा देता है । जिलाधिकारी भवानी सिंह खँगारौत कहते हैं कि यह प्रकरण उनके संज्ञान में आया है , उन्होंने अभिलेख तलब किये हैं। वह इसकी जांच करायेंगे।

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