गोपाल दास नीरज के वो '4 सॉंग’ जो आज भी टॉप गानों में शुमार हैं

Rishi
Published on: 19 July 2018 9:11 PM IST
गोपाल दास नीरज के वो 4 सॉंग’ जो आज भी टॉप गानों में शुमार हैं
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लखनऊ : कवि गोपाल दास नीरज ने जो भी लिखा दिल से लिखा तभी तो जब उनके गीत सिल्वर स्क्रीन पर उतरे तो सीधे दिल में उतर गए।

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उनके लिखे वो 4 गीत जो टॉप सांग की लिस्ट में हैं।

लिखे जो ख़त तुझे-

लिखे जो ख़त तुझे

वो तेरी याद में

हज़ारों रंग के

नज़ारे बन गए

सवेरा जब हुआ

तो फूल बन गए

जो रात आई तो

सितारे बन गए

कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने के तू आई

कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई

कोई ख़ुशबू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई

फ़िज़ा रंगीं अदा रंगीं, ये इठलाना ये शरमाना

ये अंगड़ाई ये तनहाई, ये तरसा कर चले जाना

बना दे ना कहीं मुझको, जवां जादू ये दीवाना

जहाँ तू है वहाँ मैं हूँ, मेरे दिल की तू धड़कन है

मुसाफ़िर मैं तू मंज़िल है, मैं प्यासा हूँ तू सावन है

मेरी दुनिया ये नज़रें हैं, मेरी जन्नत ये दामन है

दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है-

दिल आज शायर है, ग़म आज नग़मा है

शब ये ग़ज़ल है सनम

गैरों के शेरों को ओ सुनने वाले

हो इस तरफ़ भी करम

(आके ज़रा देख तो तेरी खातिर

हम किस तरह से जिये) - २

आँसू के धागे से सीते रहे हम

जो ज़ख्म तूने दिये

चाहत की महफ़िल में ग़म तेरा लेकर

क़िस्मत से खेला जुआ

दुनिया से जीते पर तुझसे हारे

यूँ खेल अपना हुआ ...

(ये प्यार हमने किया जिस तरह से

उसका न कोई जवाब) - २

ज़र्रा थे लेकिन तेरी लौ में जलकर

हम बन गए आफ़ताब

हमसे है ज़िंदा वफ़ा और हम ही से

है तेरी महफ़िल जवाँ

जब हम न होंगे तो रो रोके दुनिया

ढूँढेगी मेरे निशां ...

(ये प्यार कोई खिलौना नहीं है

हर कोई ले जो खरीद) - २

मेरी तरह ज़िंदगी भर तड़प लो

फिर आना इसके करीब

हम तो मुसाफ़िर हैं कोई सफ़र हो

हम तो गुज़र जाएंगे ही

लेकिन लगाया है जो दांव हमने

वो जीत कर आएंगे ही ...

ए भाई, ज़रा देखके चलो-

(ए भाई, ज़रा देखके चलो, आगे ही नहीं पीछे भी

दायें ही नहीं बायें भी, ऊपर ही नहीं नीचे भी) - २

ए भाई

तू जहाँ आया है वो तेरा - घर नहीं, गाँव नहीं

गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं

दुनिया है, और प्यारे, दुनिया यह एक सरकस है

और इस सरकस में - बड़े को भी, चोटे को भी

खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी

नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को

बराबर आना-जाना पड़ता है

(और रिंग मास्टर के कोड़े पर - कोड़ा जो भूख है

कोड़ा जो पैसा है, कोड़ा जो क़िस्मत है

तरह-तरह नाच कर दिखाना यहाँ पड़ता है

बार-बार रोना और गाना यहाँ पड़ता है

हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है) - २

गिरने से डरता है क्यों, मरने से डरता है क्यों

ठोकर तू जब न खाएगा, पास किसी ग़म को न जब तक बुलाएगा

ज़िंदगी है चीज़ क्या नहीं जान पायेगा

रोता हुआ आया है चला जाएगा

कैसा है करिश्मा, कैसा खिलवाड़ है

जानवर आदमी से ज़्यादा वफ़ादार है

खाता है कोड़ा भी रहता है भूखा भी

फिर भी वो मालिक पर करता नहीं वार है

और इन्साण यह - माल जिस का खाता है

प्यार जिस से पाता है, गीत जिस के गाता है

उसी के ही सीने में भोकता कटार है

हाँ बाबू, यह सरकस है शो तीन घंटे का

पहला घंटा बचपन है, दूसरा जवानी है

तीसरा बुढ़ापा है

और उसके बाद - माँ नहीं, बाप नहीं

बेटा नहीं, बेटी नहीं, तू नहीं,

मैं नहीं, कुछ भी नहीं रहता है

रहता है जो कुछ वो - ख़ाली-ख़ाली कुर्सियाँ हैं

ख़ाली-ख़ाली ताम्बू है, ख़ाली-ख़ाली घेरा है

बिना चिड़िया का बसेरा है, न तेरा है, न मेरा है

कारवाँ गुज़र गया गुब्बार देखते रहे-

स्वप्न झड़े फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये श्रृंगार सभी, बाग के बबूल से

और हम खड़े खड़े, बहार देखते रहे

कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे

आँख भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई

पाँव जब तलक़ उठे कि ज़िंदगी फ़िसल गई

पात पात झड़ गए कि शाख-शाख जल गई

चाह तो निकल सकी (न पर उमर निकल गई) - २)

गीत अश्क बन गए, स्वप्न हो दफ़न गए

साथ के सभी दिये, धुआं पहन-पहन गए

और हम झुके-झुके, मोड़ पर रुके-रुके

उम्र की चढ़ाव का उतार देखते रहे, कारवाँ गुज़र...

क्या शबाब था कि फूल फूल प्यार कर उठा

क्या कमाल था कि देख आइना सिहर उठा

इस तरफ़ ज़मीन और आसमान उधर उठा

थामकर जिगर उठा (कि जो मिला नज़र उठा) - २)

पर तभी यहाँ मगर, ऐसी कुछ हवा चली

लुट गई कली कली कि घुट गई गली गली

और हम लुटे-लुटे, वक़्त से पिटे-पिटे

शाम की शराब का खुमार देखते रहे, कारवाँ गुज़र...

हाथ थे मिले के ज़ुल्फ़ चाँद की सवार दूँ

होंठ थे खुले के हर बहार को पुकार लूँ

दर्द था दिया गया के हर दुखी को प्यार दूँ

और साँस यूँ के स्वर्ग, (भूमि पर उतार दूँ - २)

हो सका न कुछ मगर, शाम बन गई सहर

वो उठी लहर के ढह गये किले बिखर बिखर

और हम डरे डरे, नीर नैन में भरे

ओढ़ कर कफ़न पड़े मज़ार देखते रहे, कारवाँ गुज़र...

माँग भर चली के एक जब नई नई किरन

ढोल से धुनक उठी ठुमक उठे चरण चरण

शोर मच गया के लो चली दुल्हन चली दुल्हन

गाँव सब उमड़ पड़ा, (बहक उठे नयन नयन - २)

पर तभी ज़हर भरी गाज़ एक वह गिरी

पूंछ गया सिंदूर तार तार हुई चुनरी

और हम अजान से, दूर के मकान से

पालकी लिये हुये कहार देखते रहे, कारवाँ गुज़र...

स्वपन झड़े फूल से, मीत चुभे शूल से

लुट गये श्रृंगार सभी बाग के बबूल से

और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे

कारवाँ गुज़र गया गुब्बार देखते रहे

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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