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पार्टनर से न होती अनबन तो इंडस्ट्री को नहीं मिलता ये ग्रेट डायरेक्टर
प्रिटिंग प्रेस के बिजनेस में यदि अपने पार्टनर के साथ अनबन नहीं हुई होती तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दादा साहब फाल्के नहीं मिलते। दादा साहब हिंदी फिल्मों के पहले निर्माता थे। उनका नाम तो धुंधीराज गोविंद फाल्के था लेकिन वह दादा साहब के नाम से मशहूर थे। करीब 72 साल पहले उनका निधन हुआ था। दादा साहब ने 1913 में पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई जो हिंदी में बनी पहली फिल्म थी।
लखनऊ: प्रिटिंग प्रेस के बिजनेस में यदि अपने पार्टनर के साथ अनबन नहीं हुई होती तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को दादा साहब फाल्के नहीं मिलते। दादा साहब हिंदी फिल्मों के पहले निर्माता थे। उनका नाम तो धुंधीराज गोविंद फाल्के था लेकिन वह दादा साहब के नाम से मशहूर थे। करीब 72 साल पहले उनका निधन हुआ था। दादा साहब ने 1913 में पहली फीचर फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई जो हिंदी में बनी पहली फिल्म थी।
इंजीनियरिंग के थे छात्र
महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में पैदा हुए दादा साहब ने पुराने बम्बई और आज के मुंबई में 1890 में जेजे आर्ट कॉलेज से शिक्षा पाप्त की। बाद में वह गुजरात में बड़ौदा के सयाजीराव विश्वविद्यालय गए और वहां से इंजीनियरिंग, ड्राईंग, प्रिटिंग और फोटोग्राफी की शिक्षा ली।
'हिंदुस्तान फिल्म' नाम की खोली थी कंपनी
'राजा हरिश्चंद्र' भारत की पहली फिल्म, मराठी सबटायटल से बनी। दादा साहब ये मानते थे कि भारतीयों को फिल्म मेकिंग की कला सीखनी चाहिए।राजा हरिश्चंद्र के निर्माण के बाद उन्होंने मुंबई के पांच उद्योगपतियों के साथ एक कंपनी 'हिंदुस्तान फिल्म' के नाम से बनाई।
दादा साहब की फिल्में :
राजा हरिश्चन्द्र : 1913
मोहिनी भष्मासुर : 1913
सत्यवान सावित्री : 1914
लंका दहन : 1917
श्रीकृष्ण जन्म: 1918
कालिया मर्दन: 1919
बुद्वदेव : 1923
सेतु बंधन : 1932
गंगावतरण : 1937 में आई जो पहली साउंड फिल्म थी। ये दादा साहब की आखिरी फिल्म भी साबित हुई।
फिल्म जगत में दादा साहब के नाम से दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है जिसमें दादा साहब फाल्के पुरस्कार के नाम से जाना जाता है। इसमें स्वर्ण कमल, शॉल और एक लाख रुपए दिए जाते हैं। दिलीप कुमार, राजकपूर, देव आनंद, लता मंगेशकर समेत कई लोगों को यह पुरस्कार दिया जा चुका है ।
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