Risk of epilepsy in India: क्या वायु प्रदूषण बन रहा मिर्गी का बड़ा खतरा ? बड़ी चेतावनी के साथ नई रिसर्च ने खोली आँखे....

Risk of epilepsy in India: हाल ही में लैंसेट न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, वायु प्रदूषण देश में मिर्गी (Epilepsy) के मरीजों की संख्या बढ़ा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन इलाकों में PM2.5 कणों का स्तर 50 μg/m³ से ऊपर है, वहां मिर्गी के मामले लगभग 25% तक बढ़े हैं।

Priya Singh Bisen
Published on: 17 May 2025 7:18 PM IST
Risk of epilepsy in India
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Risk of epilepsy in India (photo: social media)

Risk of epilepsy in India: ताज़ा वातावरण में सांस लेना जैसे की हम सब भूल ही गए हैं। जिस रफ़्तार से देश में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है उससे लगता है कि जल्द ही हमारा सांस लेना दूभर हो जायेगा। आये दिन वायु प्रदुषण से होने वाली मौतों में लगातार इजाफ़ा हो रहा है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इस गंभीर समस्या पर ध्यान दिया हो...रोजाना वाहनों से निकलता धुआं, फैक्ट्रियों की जहरीली गैसें और घरों में AC की बढ़ती मांग मुख्य कारण हैं। इतना ही नहीं, शहरीकरण और पेड़ों की लगातार कटाई भी वायु की गुणवत्ता को बर्बाद कर रहे हैं। देश में बढ़ती जनसंख्या और अनियंत्रित विकसित कार्य भी वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ा रहे हैं।


क्या आपको पता है कि गंदी हवा केवल फेफड़ों ही नहीं, हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डाल रही है ? हाल ही में लैंसेट न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, वायु प्रदूषण देश में मिर्गी (Epilepsy) के मरीजों की संख्या बढ़ा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, जिन इलाकों में PM2.5 कणों का स्तर 50 μg/m³ से ऊपर है, वहां मिर्गी के मामले लगभग 25% तक बढ़े हैं। प्रदूषित हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण मस्तिष्क में सूजन और न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों में बाधा डालते हैं, जिससे मिर्गी के दौरे की संभावना कई गुना अधिक बढ़ जाती है। देश में वायु प्रदुषण की स्थिति देखते हुए विशेषज्ञों ने इसे मिर्गी को मौन ट्रिगर (Silent Trigger) बताया है, जो बिना दिखे मस्तिष्क को प्रभावित करता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के हाल ही में सामने आये आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया की तकरीबन 99 प्रतिशत आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो स्वच्छता के अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी नहीं उतरती। भारत जैसे देशों में यह समस्या और भी खतरनाक होती जा रही है, जहां आज दिल्ली, गुरुग्राम, मेरठ और पटना जैसे शहरों की वायु गुणवत्ता स्तर बेहद खराब श्रेणी में जा चुकी है। इसी बीच एक शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण कॉल फेफड़ों, दिल और कैंसर जैसी बीमारियों तक ही सीमित नहीं है । बल्कि यह आपके मानसिक स्वास्थ्य को और ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। इस तरह के हालात देखते हुए वैज्ञानिकों ने सख्त चेतावनी दी है कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से मिर्गी (Epilepsy) जैसी खतरनाक न्यूरोलॉजिकल बीमारी का खतरा भी तेजी से बढ़ रहा है।

कनाडा की बड़ी स्टडी से हुआ खुलासा

हैरान करने वाला यह खुलासा कनाडा के लंदन हेल्थ साइंसेज सेंटर रिसर्च इंस्टीट्यूट और वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। यह शोध प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल Epilepsia में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ओंटारियो, कनाडा के 18 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोगों के स्वास्थ्य और वहां के वायु प्रदूषण से संबंधित आंकड़ों का विस्तार से विश्लेषण किया। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन लोगों को चुना, जिन्हें पहले से कोई भी न्यूरोलॉजिकल बीमारी या ब्रेन कैंसर जैसी बीमारियां नहीं थीं। उन्होंने छह सालों में मिर्गी के तकरीबन 24,761 नए मामलों को रिकॉर्ड किया।


"Epilepsia" एक मुख्य और आधिकारिक चिकित्सा जर्नल है जो मिर्गी (epilepsy) और दौरे (seizures) के बारे में सभी पहलुओं पर ध्यान खींचता है। यह इंटरनेशनल लीग अगेंस्ट एपिलेप्सी (ILAE) की आधिकारिक पत्रिका है और यह मिर्गी के नैदानिक ​​और बुनियादी विज्ञान अनुसंधान के लिए एक अग्रणी स्रोत है।

6 सालों में मिर्गी के नए मामले

अध्ययन में 6 सालों में मिर्गी के लगभग 24,761 नए मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा साफ़ तौर पर बयां करता है कि मिर्गी के मामले तेजी से बढ़ रहे है और वैज्ञानिकों ने इसके लिए वायु प्रदूषण को मुख्य कारण माना है। विशेषकर हवा में मौजूद महीन छोटे-छोटे कण (PM2.5) और ओजोन गैस को मस्तिष्क के लिए बहुत खाटक पाया गया है।

महीन कण और ओजोन से मिर्गी का खतरा कितना बढ़ा?

- PM2.5 के अधिक समय तक संपर्क में रहने से मिर्गी होने की संभावना करीब 5.5% तक बढ़ जाती है।

- ओजोन के संपर्क में रहने से यह संकट लगभग 9.6% तक बढ़ जाता है।

यह पहली बार है जब वायु प्रदूषण को मिर्गी के नए मामलों से सीधा जोड़ा गया है। अध्ययन में साफ तौर पर बताया गया है कि वायु प्रदूषण का मस्तिष्क पर असर धीरे-धीरे होता है, जो वक़्त के साथ मिर्गी जैसी खतरनाक बीमारियों का कारण बन सकता है।

भारत के लिए क्यों बढ़ गई चिंता

अगर भारत की बात करें, तो इस वक़्त भारत की हालात और भी गंभीर हैं। भारत में वायु प्रदूषण की समस्या किसी से छिपी नहीं है। साल 2023 IQAir के वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से भारत 39 स्थान पर हैं जिसमे दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, मेरठ और कानपुर जैसे शहरों में PM2.5 और ओजोन का स्तर WHO के तय मानकों से कई गुना ज्यादा है।

जहां भारत में मिर्गी के मामलों की स्पष्ट राष्ट्रीय रिपोर्टिंग नहीं होती, वहीं लैंसेट पब्लिक हेल्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्वभर में लगभग 5.2 करोड़ लोग मिर्गी जैसी खतरनाक समस्या से पीड़ित हैं, जिनमें ज्यादा संख्या भारतीयों की भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण भारत में मिर्गी के नए मामलों को सीधा बढ़ावा दे रहा है, पर इसकी ओर अभी तक किसी भी प्रकार से गंभीरता नहीं दिखाई गई है।

मिर्गी क्या है और यह कैसे प्रभावित करती है

मिर्गी एक बृहद खतरनाक बीमारी है जिसे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर कहा जाता है, जिसमें दिमाग की तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) की गतिविधि असामान्य (abnormal) हो जाती है। इसी कारण से मरीज को बार-बार दौरे (seizures) आते रहते हैं, जिसमें पीड़ित अपने पूरे शरीर पर नियंत्रण खो देता है।


- विश्वभर में हर 1000 लोगों में से लगभग 6 लोग मिर्गी जैसी गंभीर समस्या से पीड़ित हैं।

- मिर्गी विश्व की चौथी सबसे आम तंत्रिका संबंधी बीमारी है।

- साल 1990 से 2021 के बीच मिर्गी के मामलों में तकरीबन 10.8% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

- मिर्गी के मरीजों की असमय मौत की संभावना सामान्य लोगों की तुलना में तीन गुना ज्यादा होता है।

- आमतौर पर कई बार ऐसा होता है कि दवाओं से भी मिर्गी पर काबू नहीं पाया जा सकता, जिससे पीड़ित की जीवनशैली और मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है।

क्या वायु प्रदूषण है मिर्गी का बढ़ाता कारण


वैज्ञानिकों के मुताबिक, वायु प्रदूषण में मौजूद PM2.5 और ओजोन जैसे रसायन जब लम्बे समय तक शरीर में प्रवेश करते हैं, तो वे सिस्टमेटिक इंफ्लेमेशन (Systemic Inflammation) यानी संपूर्ण शरीर में सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (oxidative stress) को बढ़ा देते हैं। यह प्रक्रिया मस्तिष्क की कोशिकाओं को बुरी तरह से प्रभावित करती हैं और न्यूरॉन्स की सामान्य कार्यप्रणाली में डालती डालती है।

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होता है

ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस एक ऐसी गंभीर स्थिति होती है जब शरीर में मुक्त कणों (जो कि अस्थिर अणु होते हैं) और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन (imbalance) होता है। आमतौर पर, मुक्त कण और एंटीऑक्सीडेंट एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि शरीर की कोशिकाओं को सुरक्षित रखा जा सके। लेकिन जब मुक्त कणों की मात्रा एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा से अधिक हो जाती है तो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस जैसी समस्या पैदा होती है।

MedPage Today के मुताबिक, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो में न्यूरोलॉजी विभाग में डॉ. जॉर्ज बर्नियो एक न्यूरोलॉजिस्ट जाने जाते हैं जो विशेष रूप से मिर्गी के इलाज के लिए प्रसिद्ध हैं। डॉ. जॉर्ज बर्नियो, जो इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता हैं उन्होने कहा..

"हमें आशा है कि यह शोध वायु प्रदूषण की समस्या को सिर्फ सांस और दिल की बीमारियों तक सीमित न रखकर, मस्तिष्क स्वास्थ्य पर भी नीतिगत चर्चाओं का मार्ग प्रशस्त करेगा।"

नीतियों में बदलाव की अत्यंत आवश्यकता

वेस्टर्न यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता ट्रेसा अंताया का मानना है कि मिर्गी के नए मामलों को कम करने की जरुरत है इसके लिए वायु प्रदूषण को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ ठोस और बड़े कदम उठाएजाने चाहिए जैसे कि

- शहरों में वायु गुणवत्ता मानकों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

- गाड़ियों और औद्योगिक इकाइयों (industrial units) से निकलने वाले जहरीले प्रदूषण पर रोक लगाया जाना चाहिए।

- हरित क्षेत्र को बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण के लिए सार्वजनिक जागरूकता फैलाई जाए।

प्रदूषण से न सिर्फ सांस, अब दिमाग भी हो रहा है बीमार

इस अध्ययन ने यह साबित कर दिया है कि वायु प्रदूषण सिर्फ एक पर्यावरणीय खतरा नहीं है, बल्कि यह एक साइलेंट हेल्थ इमरजेंसी (silent health emergency) बन चुका है। मिर्गी जैसी गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी से इसका सीधा संबंध सामने आना, विश्वभर के लिए सख्त चेतावनी है। विशेषकर भारत जैसे देशों को, जहां वायु प्रदूषण का स्तर पहले से ही चिंताजनक स्थिति में है, अब अपनी स्वास्थ्य नीतियों और पर्यावरणीय नियमों पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।


भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देशों के लिए यह गंभीर विषय है, जहां प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। आपके लिए वायु प्रदूषण को सिर्फ सांस और फेफड़ों की समस्या समझने की गलती अब भारी पड़ सकती है। मिर्गी जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम के लिए तत्काल और ठोस नीतिगत कदम उठाना अतिआवश्यक है। आज बिना देरी किये आप पर्यावरण की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं जिससे आने वाले समय में लोगों की वायु प्रदुषण से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सके और भविष्य में हमारी पीढ़ियां शुद्ध वातावरण में सांस ले सकें। तो इस दिशा में पहली शुरूआत आप खुद से करें.... ।

Priya Singh Bisen

Priya Singh Bisen

Content Writer

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