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Himachal Pradesh: मुख्यमंत्री की रेस में आखिर कहां पिछड़ गईं प्रतिभा सिंह? आखिरी 30 मिनट में पलट गयी बाजी
Himachal Pradesh: प्रतिभा सिंह मुख्यमंत्री रेस में बरकरार थीं। मगर, अंतिम समय में सुखविंदर सिंह सुक्खू से पिछड़ गईं। जानें प्रतिभा के पिछड़ने की क्या थी मुख्य वजहें?
प्रतिभा सिंह (Social Media)
Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश में नए मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान हो गया। इस पहाड़ी राज्य के कद्दावर कांग्रेसी नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhwinder Singh Sukhu) नए मुख्यमंत्री होंगे। वहीं मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम बनाया जा रहा है। कल सुबह 11 बजे दोनों शपथ लेंगे। मुख्यमंत्री की रेस में जिन नामों की चर्चा थी उनमें सबसे ऊपर प्रतिभा सिंह का नाम चल रहा था। हिमाचल के परिणाम आने के बाद बीते 48 घंटों में राज्य का तापमान ऐसा चढ़ा था कि सबकुछ उलझा-उलझा लग रहा था। लेकिन, सारी गांठें शनिवार शाम सुलझ गई।
प्रतिभा सिंह मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार थीं। सीएम की रेस में भी शामिल थीं। प्रतिभा, हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी हैं। बता दें, वीरभद्र का परिवार 30 सालों से अधिक समय से हिमाचल की राजनीति में सक्रिय है। इस परिवार का राज्य में एकक्षत्र राज्य रहा है।
आखिर कैसे पिछड़ गईं प्रतिभा सिंह?
कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के देहांत के बाद कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को पार्टी की कमान सौंपी। उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने हिमाचल चुनाव भी जीता। मगर, जब बात मुख्यमंत्री पद की आई तो उन्हें रेस से बाहर कर दिया गया। हालांकि, सुक्खू के नाम के ऐलान के बाद प्रतिभा सिंह ने कहा, उन्हें पार्टी आलाकमान का फैसला मंजूर है। लेकिन, उनका चेहरा साफ-साफ बता रहा था कि उन्हें ये फैसला कितना मंजूर है। अब सवाल उठता है कि, मुख्यमंत्री की रेस में सबसे मजबूत दावेदार रहीं प्रतिभा सिंह आखिर कैसे पिछड़ गईं?
रिजल्ट के बाद प्रतिभा की बयानबाजी,..सुक्खू रहे शांत
हिमाचल प्रदेश चुनाव के परिणाम आने के ठीक बाद से ही प्रतिभा सिंह की बयानबाजी सामने आने लगी थी। प्रतिभा कांग्रेस पार्टी की जीत के बाद से ही खुद को मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार बता रही थीं। वो लगातार स्वयं को वीरभद्र सिंह की विरासत की प्रबल दावेदार बताती रहीं। उन्होंने कांग्रेस की इस जीत का पूरा श्रेय वीरभद्र सिंह की नीतियों को दिया। कांग्रेस के नियुक्त पर्यवेक्षक सरकार बनाने के दावे को लेकर जब गवर्नर से मिलने गए, तब भी उन्होंने सवाल खड़े किए थे। जबकि, सुखविंदर सिंह सुक्खू चुप रहे और सभी फैसला हाईकमान पर छोड़ दिया। माना जा रहा है उन्हें इसका ईनाम मुख्यमंत्री के तौर पर मिला।
MP की कुर्सी बनी जंजाल
वर्तमान समय में प्रतिभा सिंह मंडी लोकसभा सीट से सांसद हैं। कांग्रेस पार्टी यदि उन्हें मुख्यमंत्री बनाती तो मंडी में उप चुनाव कराने पड़ते। साथ ही, प्रतिभा को विधायक बनने के 6 महीने के भीतर एक सीट से विधानसभा जाना पड़ता। सवाल ये है, कि उनके लिए विधानसभा सीट खाली कौन करता। जब जीत बेहद कम अंतर से हुई हो तो पार्टी दो-दो उपचुनाव का रिस्क क्यों ले? शायद कांग्रेस आलाकमान उप चुनाव के झोल से बचने की भी कोशिश कर रही थी। फलस्वरूप, हाईकमान ने किसी विधायक को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया।
सुक्खू को माना जाता है राहुल का करीबी
सुखविंदर सिंह सुक्खू को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता है। कहा जाता है जब 2013 में राहुल गांधी हर राज्य में अपनी टीम बना रहे थे, तब उन्होंने सुक्खू को हिमाचल कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा था। हालांकि, उस वक्त भी तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रतिभा सिंह के पति वीरभद्र सिंह ने इसका खुलकर विरोध किया था। बावजूद, सुक्खू 2019 तक हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे। सुक्खू को इसका भी ईनाम मिला है।
मंडी में कांग्रेस का ख़राब प्रदर्शन भी वजह तो नहीं
कांग्रेस सांसद प्रतिभा सिंह (Congress MP Pratibha Singh) वर्तमान में राज्य कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी हैं। उनके नेतृत्व में ही हिमाचल में कांग्रेस ने 68 विधानसभा सीट में से 40 जीतने में कामयाब रही। लेकिन, प्रतिभा के गृह जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। मंडी जिले की 10 विधानसभा सीटों में से 9 पर कांग्रेस को हार मिली। माना जा रहा है एक ये वजह भी थी जो प्रतिभा सिंह के राह का रोड़ा बनी।
'परिवारवाद' तो आड़े नहीं आया !
गौरतलब है कि, कांग्रेस लाख विरोध कर ले लेकिन कहीं न कहीं बीजेपी के नक्शेकदम पर ही बढ़ रही है। इसी साल 'उदयपुर शिविर' में ये तय हुआ था कि एक चुनाव में एक परिवार से किसी एक शख्स को ही टिकट दिया जाएगा। इसी फॉर्मूला पर प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया गया। विक्रमादित्य शिमला ग्रामीण सीट से विधायक बने। अब अगर ऐसे में प्रतिभा सिंह को पार्टी आलाकमान मुख्यमंत्री बनाती तो पार्टी के भीतर ही 'परिवारवाद' पर सवाल उठता। साथ ही चुनाव में जीतकर आने वाले अधिकांश विधायक भी प्रतिभा सिंह के खिलाफ थे।
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