Ambedkar Jayanti: पहले आम चुनाव में हार गए थे अंबेडकर, उपचुनाव में भी लगा था झटका, पंडित नेहरू की क्या थी भूमिका

Ambedkar Jayanti : संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने देश के लोगों को सोचने का नया नजरिया दिया था।

Anshuman Tiwari
Published on: 14 April 2025 8:59 AM IST
Babasaheb Ambedkar Ki Anakahi Kahani
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Babasaheb Ambedkar Ki Anakahi Kahani 

Ambedkar Jayanti: संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने देश के लोगों को सोचने का नया नजरिया दिया था। वे केवल संविधान निर्माता ही नहीं थे बल्कि एक समाज सुधारक,अर्थशास्त्री और समानता का रास्ता दिखाने वाले प्रेरणादायक इंसान थे। मध्य प्रदेश के महू में आज ही के दिन 1891 में उनका जन्म हुआ था। बचपन में उन्हें जातिवाद और भेदभाव का गहरा एहसास हुआ था मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। दलितों और शोषितों को समानता का अधिकार देने में अंबेडकर की बड़ी भूमिका रही है।

देश की सियासत में अंबेडकर का नाम खूब गूंजता रहा है और हर चुनाव में अंबेडकर का नाम लेकर दलित वोटों का समीकरण साधने की कोशिश की जाती रही है। राजनीतिक दलों की ओर से भले ही अंबेडकर का नाम लेकर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश की जाती रही हो मगर अंबेडकर को खुद देश के पहले आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। बाद में 1954 में हुए उपचुनाव में भी उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी थी। अंबेडकर की इस चुनावी हार में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस ने बड़ी भूमिका निभाई थी। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिरकार अंबेडकर क्यों खुद पहले आम चुनाव में हार गए थे।

अंबेडकर को लेकर भाजपा-कांग्रेस की तकरार

सभी राजनीतिक दलों के नेता अंबेडकर का नाम एक-दूसरे को घेरने की कोशिश करते रहे हैं। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के नेता भाजपा पर बाबा साहब का संविधान बदलने की कोशिश का आरोप लगाते रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा पूरी दमदारी से इसे नकारती रही है। संसद में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान भी अंबेडकर को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में खूब तकरार हुई थी। सत्ता पक्ष का कहना था कि कांग्रेस के लोगों ने तो संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर को भी चुनाव हरवा दिया था जबकि दूसरी ओर कांग्रेस ने इस पर तीखा विरोध जताया था।

दरअसल तत्कालीन केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने चर्चा के दौरान कहा था कि डॉ अंबेडकर की वजह से देश में सभी लोगों को वोट देने का अधिकार हासिल हुआ मगर कांग्रेस ने संविधान के शिल्पकार डॉ.अंबेडकर को भी चुनाव में हराने का काम किया। मेघवाल के इस बयान पर कांग्रेस सांसदों ने तीखा विरोध जताया था।

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के सबूत मांगने पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि मेघवाल का बयान फैक्चुअली करेक्ट है। जैसे राहुल गांधी को भाजपा ने हराया, यह फैक्चुअली करेक्ट है। बाबा साहब के खिलाफ चुनाव जीत कर आने वाले प्रत्याशी कांग्रेस के ही थे।

जब पहले आम चुनाव में हार गए थे अंबेडकर

वैसे देश के पहले आम चुनाव में अंबेडकर की हार पर सब लोग हैरान रह गए थे। अंबेडकर जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व में बनी देश की पहली अंतरिम सरकार में कानून मंत्री थे मगर दोनों नेताओं की पटरी ज्यादा दिनों तक नहीं बैठ सकी। कांग्रेस से मतभेद के चलते 27 सितंबर, 1951 को उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। अंबेडकर नेहरू सरकार की ओर से अनुसूचित जाति के लोगों की उपेक्षा से नाराज थे।

नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अंबेडकर शेड्यूल कास्ट्स फेडरेशन को खड़ा करने में जुट गए। एक साल बाद 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और अंबेडकर ने भी इसमें हिस्सा लिया। उनकी पार्टी ने चुनाव में 35 प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन अंबेडकर की पार्टी के सिर्फ दो प्रत्याशियों को ही जीत हासिल हुई। हालत यह हो गई कि महाराष्ट्र की उत्तरी मुंबई सीट से डॉक्टर अंबेडकर को भी चुनावी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव नतीजे की किसी को भी उम्मीद नहीं थी।

पंडित नेहरू ने लगा दी थी पूरी ताकत

दरअसल देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ था और उस चुनाव के दौरान सभी के दिलों दिमाग पर पंडित जवाहरलाल नेहरू का जादू छाया हुआ था। इस पहले आम चुनाव के दौरान डॉक्टर अंबेडकर भी चुनाव मैदान में उतरे थे। उस चुनाव के दौरान पंडित नेहरू ने अंबेडकर को चुनाव जीतने से रोकने की पूरी कोशिश की थी। अंबेडकर की चुनावी जीत रोकने के लिए पंडित नेहरू ने उस चुनाव में उनके पर्सनल असिस्‍टेंट नारायण काजरोलकर को मैदान में खड़ा किया। उनकी हार सुनिश्चित करने के लिए खुद नेहरू ने कैंपेनिंग भी की।

इस चुनाव में डॉ.अंबेडकर और काजरोलकर के अलावा कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और हिंदू महासभा का एक-एक कैंडिडेट था। उस समय नेहरू की इतनी तगड़ी लहर थी कि काजरोलकर ने डॉक्टर अंबेडकर को चुनाव में हरा दिया था।

चुनाव में अंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले और काजरोलकर को 1,37,950 वोट मिले। काजरोलकर को करीब 15,000 वोटों से जीत हासिल हुई थी। अंबेडकर की इस चुनावी हार ने हर किसी को हैरान कर दिया था।

उपचुनाव में भी अंबेडकर को लगा बड़ा झटका

देश के पहले आम चुनाव में मिली हार से डॉ अंबेडकर को बड़ा झटका लगा था। महाराष्ट्र उनकी कर्मभूमि थी मगर अपनी कर्मभूमि में ही उन्हें चुनावी पराजय का सामना करना पड़ा था। दूसरी ओर कांग्रेस की दलील थी कि अंबेडकर सोशल पार्टी का साथ दे रहे थे। इसलिए पार्टी के सामने उनका विरोध करने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं था। वैसे अंबेडकर की चुनावी हार का सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि बाद में कांग्रेस ने उन्हें एक और बड़ा झटका दिया।

दरअसल 1954 में भंडारा लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव कराया गया था। कांग्रेस ने उस चुनाव के दौरान भी डॉक्टर अंबेडकर को हराया था। पंडित नेहरू ने उस चुनाव के दौरान भी यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की थी कि डॉ अंबेडकर किसी भी सूरत में चुनाव न जीतने पाएं।

बाद में 1956 में डॉक्टर अंबेडकर का निधन हो गया था। ऐसे में कानून मंत्री मेघवाल और गृह मंत्री शाह के इस बयान में काफी दम है कि कांग्रेस ने डॉक्टर अंबेडकर को चुनाव में हराने का काम किया था।

कांग्रेस को घेरती रही है भाजपा

देश के पहले आम चुनाव के दौरान पंडित नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने बड़ी कामयाबी हासिल की थी। उस समय नेहरू की लहर का पूरे देश में काफी असर दिखा था। 1952 के चुनाव के दौरान कांग्रेस ने लोकसभा के 489 में से 364 सीटों पर जीत हासिल की थी। पंडित नेहरू की लोकप्रियता की वजह से कांग्रेस को कोई भी नेता या दल चुनौती नहीं दे सका था।

वैसे भाजपा पहले भी यह आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस और गांधी परिवार ने हमेशा अंबेडकर को साइडलाइन किया। इसी कारण अंबेडकर मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में एंट्री नहीं कर सके। भाजपा के इस आरोप पर कांग्रेस तीखी प्रतिक्रिया जताती रही है।

भाजपा अंबेडकर को भारत रत्न न देने के मुद्दे पर भी कांग्रेस को घेरती रही है। लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस सरकारों की ओर से डॉ अंबेडकर को भारत रत्न नहीं दिया गया था। अंबेडकर को काफी बाद में वीपी सिंह की सरकार के समय भारत रत्न दिया गया था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वीपी सिंह की सरकार भाजपा के समर्थन से ही चल रही थी।

Ragini Sinha

Ragini Sinha

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