अपने ही लगा रहे पलीता: बिक गया गोरखपुर का कांग्रेस दफ्तर!

कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का दावा बीजेपी का है मगर इसे अमलीजामा पहना रहे हैं कांग्रेस के ही कुछ जिम्मेदार। कम से कम गोरखपुर में तो ऐसा होता ही दिख रहा है। बीरबहादुर सिंह, महाबीर प्रसाद और सुखदेव प्रसाद जैसे कई दिग्गज नेताओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रहे गोरखपुर मे पार्टी अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।

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Published on: 23 Jun 2017 8:42 PM IST
अपने ही लगा रहे पलीता: बिक गया गोरखपुर का कांग्रेस दफ्तर!
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आलोक शुक्ल

गोरखपुर : कांग्रेस मुक्त भारत बनाने का दावा बीजेपी का है मगर इसे अमलीजामा पहना रहे हैं कांग्रेस के ही कुछ जिम्मेदार। कम से कम गोरखपुर में तो ऐसा होता ही दिख रहा है। बीरबहादुर सिंह, महाबीर प्रसाद और सुखदेव प्रसाद जैसे कई दिग्गज नेताओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रहे गोरखपुर मे पार्टी अब तक के अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। यहां उसके पास अपना कोई दफ्तर तक नहीं है। स्थानीय भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही कांग्रेस दफ्तर खाली कराए जाने को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर तरह-तरह की चर्चाओं के बीच यहां के कांग्रसियों ने अपने ही जिलाध्यक्ष पर पार्टी दफ्तर बेच देने का गंभीर आरोप लगाया है।

जिलाध्यक्ष पर बिल्डर से पैसे लेने का आरोप

कांग्रेस के भीतर की चर्चाओं को मानें तो पार्टी जिलाध्यक्ष ने एक बिल्डर से साठगांठ कर कार्यालय खाली करने के एवज में भारी रकम वसूली है। चर्चा तो इस खेल में प्रदेश कार्यालय में बैठे कुछ और जिम्मेदारों की मिलीभगत की भी है। हालांकि जिलाध्यक्ष कोर्ट के आदेश पर दफ्तर खाली करने की बात कह रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ जिले भर के कांग्रेसियों ने जिलाध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पार्टी के सूबाई नेतृत्व से लगायत हाईकमान तक बात पहुंचाने के साथ ही सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाया जा रहा है। कार्यकर्ताओं की शिकायत पर प्रदेश नेतृत्व ने मामले की जांच के लिए एक हाईपावर कमेटी बनाने की घोषणा तो कर दी, लेकिन दो माह बाद भी कोई जांच या कार्रवाई नहीं हुई।

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1991 से चल रही थी मुकदमेबाजी

गोरखपुर के रईस लक्ष्मणदास ने शहर के मुख्य इलाके गोलघर से सटे पुदलपुर मुहल्ला में ब्रिटिश सरकार से मिली पट्टे की जमीन पर कई मकानों का निर्माण कराकर किराए पर दिया था। इन्हीं में से मकान संख्या सात किराए पर लेकर कांग्रेस ने 1962 में अपना दफ्तर खोला। 1991 में लक्ष्मणदास ने कार्यालय खाली कराने को लेकर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर दिया। 1994 में लोअर कोर्ट ने लक्ष्मणदास के पक्ष मे फैसला देकर कांग्रेस को दफ्तर खाली करने का आदेश दिया। फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने जिला जज की अदालत में अपील की। 2008 में मकान मालिक के पक्ष में एकपक्षीय आदेश हो गया। तत्कालीन जिलाध्यक्ष संजीव कुमार सिंह ने इसके विरुद्ध फिर अपील दाखिल कर कई वर्ष का बकाया किराया अदालत में जमा कराया। इस बीच मकान मालिक के परिवार से जुड़े एक नामी बिल्डर ने दफ्तर खाली कराने के लिए पर्दे के पीछे से प्रयास शुरू किया। उसने जिला कमेटी के तत्कालीन जिम्मेदारों से सम्पर्क कर बात चलाई, लेकिन नाकामयाब रहा।

2011 में संजीव की जगह एआईसीसी के मेम्बर डा.सैयद जमाल अहमद जिलाध्यक्ष नियुक्त हो गए और मुकदमे की पैरवी उनके जिम्मे आ गई। कांग्रेसियों की मानें तो असल खेल यहीं से शुरू हुआ। मुकदमे की पैरवी से नई जिला कमेटी ने अपने हाथ खींच लिए। कहा जाता है कि ऐसा जानबूझकर किया गया ताकि बिल्डर इसका फायदा उठा सके। परिणामस्वरूप कांग्रेस मुकदमा हार गई। जिला जज ने 29 अगस्त 2014 को जिला कांग्रेस कमेटी को दफ्तर खाली करने का आदेश दिया। कायदन 90 दिन के भीतर 25 नवंबर 2015 तक जिला कमेटी को हाईकोर्ट में अपील दाखिल करनी चाहिए थी, लेकिन कमेटी ने करीब आठ महीना बाद 20 अप्रैल 2016 को हाईकोर्ट में रिट दाखिल की जो 11 अगस्त को खारिज कर दी गई। इसके बाद भी जिलाध्यक्ष हाईकोर्ट की डबल बेंच या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते थे, लेकिन वे पूरे उन्नीस माह तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। किसी को कोई जानकारी नहीं दी। इस बीच मकान मालकिन सावित्री देवी के प्रार्थनापत्र पर कोर्ट ने पुलिस बल उपलब्ध कराकर 27 अप्रैल 2017 तक दफ्तर खाली कराने के लिए एसएसपी को लिखा। चार अप्रैल की सुबह कांग्रेस के कार्यालय प्रभारी मदन तिवारी और शहर महासचिव दिलीप निषाद ने खुद ही कार्यालय खाली कर दिया।

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जमाल अहमद को पार्टी से निकालने की मांग

दफ्तर खाली होने की खबर फैलते ही जिले भर के कांग्रेसी सन्न रह गए। कार्यकर्ता लामबंद होने लगे। पूर्व विधायकगण लालचन्द निषाद, हरिद्वार पाण्डेय, पूर्व सांसद राजनारायण पासी, वरिष्ठ नेता दिनेश चन्द श्रीवास्तव, गोरखलाल श्रीवास्तव व मारकंडेय प्रसाद सिंह के नेतृत्व में जुटे कांग्रेसियों ने दफ्तर खाली करने के लिए जिलाध्यक्ष जमाल अहमद को निशाने पर लिया। उनके खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पारित किया और उन्हें पार्टी से निकालने का प्रस्ताव हाईकमान को भेजा।

प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर व प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद से मिलकर वरिष्ठ नेताओं ने सारी वस्तुस्थिति रखी। प्रदेश अध्यक्ष ने राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच समिति बना दिए जाने की बात कही। करीब दो महीना होने को है और इस समिति का कहीं पता नही है।

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किसका क्या कहना है?

कार्यालय खाली होने की जानकारी है। वहां के लोगों ने जिलाध्यक्ष पर पैसे लेकर कार्यालय खाली करने का आरोप लगाया है। जांच के लिए सांसद विवेक तन्खा के नेतृत्व में कमेटी बनी है जो अपना काम कर रही है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

प्रमोद सिंह, महासचिव व चल अचल सम्पत्तियों के प्रभारी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी

कोर्ट के आदेश से कार्यालय खाली किया गया है। मैंने पूरी ताकत भर कार्यालय बचाने का प्रयास किया। कुछ लोग झूठा आरोप लगा रहे हैं। नेतृत्व को सारी जानकारी दे दी गई है।

डा. सैयद जमाल अहमद, जिलाध्यक्ष

जिलाध्यक्ष ने नेतृत्व को गुमराह कर पार्टी की पीठ में छूरा भोंका है। उन्होंने बिल्डर से मिलकर मुकदमे की पैरवी में जानबूझकर ढिलाई की। नब्बे दिन की जगह आठ महीना बाद हाईकोर्ट इसीलिए गए ताकि देरी की वजह से कांग्रेस की अपील खारिज हो जाए। सुप्रीमकोर्ट जा सकते थे, पर नहीं गए। जिला जज के न्यायालय से हारने के बाद उन्नीस महीने तक चुप बैठे रहे। किसी कार्यकर्ता तक को नहीं बताया और चुपचाप कार्यालय खाली कर दिया।

लालचन्द निषाद, पूर्व विधायक व पूर्व जिलाध्यक्ष

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इन्होंने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत नई दिल्ली में एनडीटीवी से की। इसके अलावा हिंदुस्तान लखनऊ में भी इटर्नशिप किया। वर्तमान में वेब पोर्टल न्यूज़ ट्रैक में दो साल से उप संपादक के पद पर कार्यरत है।

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