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अपनी कविता छपवाने के लिए जब अटल ने लिखी अलबेली चिट्ठी, संपादक के अंदर भी जाग उठा कवि
लखनऊ: दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लंबी बीमारी के बाद नई दिल्ली स्थित एम्स में गुरूवार को शाम पांच बजकर पांच मिनट पर अंतिम सांस ली। अटल बिहारी जितने अच्छे राजनेता थे, उतने ही अच्छे कवि भी थे। उनके साहित्यिक जीवन से जुड़े पहलू का एक मशहूर किस्सा है, जिसे आज भी याद किया जाता है। बात वर्ष 1977 की है, उस समय अटल बिहारी वाजपेयी भारत सरकार के विदेश मंत्री थे। उन्होंने अपनी कविता छपवाने के लिए एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के संपादक के पास अपनी रचना भेजी। लेकिन जब वह कविता नहीं छपी तो उन्होंने संपादक के नाम शिकायती लहजे में कविता भरा पत्र लिखकर अपनी बात रखी। इसके बाद संपादक के अंदर का कवित्व भी जाग उठा और कविता छपावाकर उन्होंने भी अटल बिहारी को कविता भरा जवाब दिया।
संपादक ने जवाबी पाती लिखकर दिया स्पष्टीकरण
25 अगस्त 1977 को प्रतिष्ठित समाचार पत्र के संपादक को अटल बिहारी ने शिकायती पत्र लिखते हुए कहा था कि कुछ दिन पहले मैंने एक अदद गीत आपकी सेवा में रवाना किया था। पता नहीं आपको मिला या नहीं। पहुंच की रसीद अभी तक नहीं मिली। नीका लगे तो छाप लें, वरना रद्दी की टोकरी में फेंक दें। इसके साथ ही उनहोंने संपादक को संबोधित चार लाइन की कविता भी लिखी।
इसके जवाब में दिसंबर 1977 में संपादक महोदय ने जवाबी पाती लिखते हुए अटल बिहारी को संबोधित करते हुए लिखा कि आपकी शिकायती चिट्ठी मिली। इससे पहले कोई एक सज्जन टाईप की हुई एक कविता दस्ती दे गए थे कि अटल जी की है। न कोई खत, न कहीं दस्तखत। आपके घर फोन किया तो किन्हीं पीए महोदय ने कह दिया कि हमने कोई कविता नहीं भिजवाई। आपके पत्र से स्थिति स्पष्ट हुई और संबद्ध कविता पृष्ठ 15 पर प्रकाशित भई। इसके साथ ही साथ संपादक महोदय ने जवाबी कविता लिखकर उन्हें कविता पूर्ण जवाब भी दिया था।
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