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मुस्लिम वोट बैंक पर BJP का मास्टरस्ट्रोक! पंचायत चुनाव में होने जा रहा बड़ा खेल, सपा को लगेगा तगड़ा झटका

UP Panchayat elections: स बार भारतीय जनता पार्टी की नजर सिर्फ सत्ता में वापसी पर नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी के अजेय किले को अंदर से ढहाने पर है। वो किला है मुस्लिम वोटबैंक। बीजेपी ने अब उस दरवाजे पर दस्तक दे दी है जिसे उसने वर्षों तक छुआ भी नहीं था, मुस्लिम बहुल गांवों की सत्ता।

Harsh Srivastava
Published on: 9 July 2025 1:36 PM IST
मुस्लिम वोट बैंक पर BJP का मास्टरस्ट्रोक! पंचायत चुनाव में होने जा रहा बड़ा खेल, सपा को लगेगा तगड़ा झटका
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UP Panchayat elections: उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन पर एक नई बिसात बिछाई जा रही है शांत लेकिन विस्फोटक। जो पंचायत चुनाव कभी गांव की समस्याओं और विकास की बातों तक सीमित माने जाते थे, वे अब 2027 के विधानसभा चुनाव की निर्णायक प्रयोगशाला बनने जा रहे हैं। इस बार भारतीय जनता पार्टी की नजर सिर्फ सत्ता में वापसी पर नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी के अजेय किले को अंदर से ढहाने पर है। वो किला है,मुस्लिम वोटबैंक। बीजेपी ने अब उस दरवाजे पर दस्तक दे दी है जिसे उसने वर्षों तक छुआ भी नहीं था: मुस्लिम बहुल गांवों की सत्ता।

पंचायत चुनाव बना 2027 की सत्ता का लॉन्चपैड

उत्तर प्रदेश में करीब 1 लाख गांव हैं, जिनमें से 57,695 ग्राम पंचायतें हैं और उनमें से लगभग 7,000 ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां मुस्लिम समाज से ही प्रधान चुने जाते रहे हैं। 8,000 से अधिक बीडीसी सदस्य भी मुस्लिम होते हैं। ये आंकड़े केवल प्रशासनिक नहीं, सियासी रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। बीजेपी की रणनीति बिल्कुल स्पष्ट है,पंचायत चुनाव को प्रयोगशाला बनाकर मुस्लिम बहुल इलाकों में अपने भरोसेमंद चेहरे उतारो, उन्हें जिताओ, सत्ता का लाभ दो और 2027 के विधानसभा चुनाव में सपा को उसी के गढ़ में मात दो। इस योजना को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी सौंपी गई है बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा को। मोर्चे ने जिलेवार डाटा इकट्ठा करना शुरू कर दिया है कि किन गांवों में मुसलमानों का वर्चस्व है और वहां पर किन चेहरों को मैदान में उतारा जा सकता है।

मुस्लिम राजनीति की धुरी घुमा रही बीजेपी

बीजेपी पिछले कई सालों से मुस्लिम समाज को साधने के लिए कई दांव चल चुकी है,कभी शिया पॉलिटिक्स, कभी सूफी कॉन्फ्रेंस, तो कभी पसमांदा मुस्लिमों को साथ जोड़ने की कवायद। लेकिन असली वोटबैंक यानी बहुसंख्यक सुन्नी मतदाता तक बीजेपी की पहुंच नहीं बन पाई। अब पार्टी ने महसूस किया है कि अगर सच में मुस्लिम समाज से संवाद स्थापित करना है तो उसे ऊपर से नीचे नहीं, बल्कि नीचे से ऊपर की राजनीति करनी होगी। ग्राम प्रधान से शुरू होकर विधायक और सांसद तक का सफर तय करने वाले सैकड़ों नेता उत्तर प्रदेश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि बीजेपी अब मुस्लिम बहुल गांवों में अपने चेहरों को खड़ा करने और जिताने की तैयारी कर रही है। बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने खुद कहा कि उनका मकसद ऐसे मुस्लिम नेताओं को सामने लाना है जो बीजेपी की विचारधारा के करीब हों और सपा के विरोधी हों। यानी वो चेहरा जिसकी जड़ें गांव में हों लेकिन नजर बीजेपी के भविष्योन्मुखी मिशन पर हो।

सहयोग के बदले सहयोग

हालांकि पंचायत चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं होते, लेकिन सभी सियासी दल इसमें अपनी पूरी ताकत झोंकते हैं। बीजेपी अब खुलकर मान रही है कि वह मुस्लिम प्रत्याशियों को समर्थन देगी, चुनाव जितवाने के लिए सियासी रसूख और संगठन की ताकत का इस्तेमाल करेगी। बदले में इन जीतने वाले नेताओं से 2027 में पार्टी के लिए सियासी रिटर्न की उम्मीद की जाएगी। यह रणनीति सिर्फ वोट बैंक में सेंधमारी नहीं है, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक समावेशन का एक नया प्रयोग है, जहां बीजेपी सत्ता के बदले सत्ता में भागीदारी देने की पेशकश कर रही है। यानी अगर मुस्लिम नेता पंचायत जीतते हैं, तो उन्हें बीजेपी के सांसद, विधायक और सत्ता तंत्र से जोड़ा जाएगा, जिससे वे भी अपने गांवों में थाने, तहसील और योजनाओं में प्रभावशाली भूमिका निभा सकें।

सपा के सबसे मजबूत गढ़ में सुराख करने की कोशिश

2022 के विधानसभा चुनाव में करीब 80% मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को गए थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा 85% तक जा पहुंचा। यानी मुस्लिम वोटरों ने एकमुश्त होकर बीजेपी को हराने के लिए सपा को वोट दिया। यही वो गढ़ है जिसे बीजेपी अब पंचायत चुनाव के रास्ते भीतर से तोड़ने की रणनीति बना चुकी है। बीजेपी को ये भी समझ आ गया है कि मुस्लिम बहुल गांवों में बूथ तक संभालने वाले कार्यकर्ता नहीं मिलते। ऐसे में वहां बीजेपी के कार्यकर्ताओं का आधार खड़ा करने के लिए स्थानीय मुस्लिम चेहरों को आगे बढ़ाना अनिवार्य हो गया है। यानी पंचायत चुनाव में अगर बीजेपी के समर्थित मुस्लिम प्रत्याशी जीतते हैं, तो वही नेता 2027 के चुनाव में बीजेपी के मायनेदार ग्रासरूट एजेंट बन सकते हैं।

बसपा की गिरती ताकत का फायदा उठा रही बीजेपी

एक और दिलचस्प समीकरण इस रणनीति को और मजबूत बना रहा है,बसपा का पतन। मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग पहले बसपा के साथ था, लेकिन मायावती के निष्क्रिय नेतृत्व और सामाजिक समीकरणों की असफलता ने अब इस समुदाय को राजनीतिक ठिकाना ढूंढने पर मजबूर कर दिया है। बीजेपी को लगता है कि यही वह वैक्यूम है जिसे भरने का सबसे अच्छा मौका है। पंचायत चुनाव के जरिए मुस्लिम बहुल गांवों में भरोसेमंद चेहरे खड़े कर उन्हें सरकार की ताकत से सशक्त बनाया जाए, और फिर उनसे 2027 में समर्थन लिया जाए।

चुनावी प्रयोगशाला में कौन होगा अगला चेहरा?

अब असली खेल शुरू हुआ है बीजेपी की अल्पसंख्यक मोर्चा की टीमें उन मुस्लिम गांवों में घूम रही हैं, जहां पर सपा का दबदबा रहा है, लेकिन कहीं न कहीं विरोध के स्वर भी उभरे हैं। ऐसे मुस्लिम नेताओं की तलाश की जा रही है जो न सिर्फ सपा के खिलाफ चुनाव लड़ने को तैयार हों, बल्कि बीजेपी की विचारधारा से मेल खाते हों। उन नेताओं को पंचायत चुनाव में जिताने के लिए बीजेपी के स्थानीय विधायक, सांसद और संगठनात्मक नेटवर्क को सक्रिय किया जाएगा। यह एक ऐसा नेटवर्क है जो एक बार किसी को पकड़ ले, तो वह वर्षों तक पार्टी से जुड़ा रहता है।

क्या मुस्लिम वोटबैंक टूटेगा?

सवाल बड़ा है और जवाब जमीनी मेहनत से मिलेगा। बीजेपी की यह रणनीति अगर सफल होती है तो यह सिर्फ एक चुनावी जीत नहीं होगी बल्कि यूपी की सियासत में मुस्लिम वोट और सपा की जो धारणा दशकों से जमी है, उसे तोड़ने का पहला बड़ा प्रयास साबित हो सकता है। पंचायत चुनाव की राजनीति अब लोकल बनाम ग्लोबल हो चुकी है। गांव के प्रधान चुनाव में अब सीधा कनेक्शन विधानसभा और लोकसभा की सत्ता से जुड़ गया है। ऐसे में यदि बीजेपी मुस्लिम गांवों में कुछ प्रभावशाली चेहरे खड़े कर लेती है, तो 2027 के चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की जगह सियासी समावेश की नई इबारत लिखी जा सकती है।

अब देखना यह है कि क्या बीजेपी इस नए प्रयोग में सफल हो पाएगी? क्या मुस्लिम गांवों में भगवा परचम लहराएगा? या फिर यह एक असफल सियासी दांव साबित होगा? एक बात तय है,उत्तर प्रदेश की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां हर पंचायत से विधानसभा और फिर संसद तक की लड़ाई लड़ी जा रही है।

Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

News Coordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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