Ambedkar Jayanti: संविधान के साथ समता, शिक्षा के भी शिल्पी थे अंबेडकर

Ambedkar Jayanti: किताब के बदले सर्वमान्य किताब लिखी बाबा साहेब ने, सोए हुए समाज के लिए रातभर जागकर पढ़ते थे बाबा साहेब

Dr Suneel Kumar
Published on: 13 April 2025 3:31 PM IST
Bhim Rao Ambedkar News
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Bhim Rao Ambedkar News (Image From Social Media)

Ambedkar Jayanti: 14 अप्रैल को हम उस महान विभूति की जयंती मनाते हैं, जिन्होंने 251 पन्नों और 1.5 लाख शब्दों का भारत का संविधान लिखा। भारत की सामाजिक, राजनीतिक और विधिक नींव को न केवल मज़बूती दी, बल्कि उसे मानवाधिकार और समता की भावना से सिंचित भी किया। डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें स्नेह और श्रद्धा से 'बाबा साहेब' कहा जाता है। सिर्फ भारत के संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि एक युगप्रवर्तक चिंतक, समाज सुधारक, शिक्षाविद और दलितों के मसीहा भी थे। उनके योगदान से अभिभूत होकर सरकार ने बाबा साहेब को भारत रत्न से नवाजा। अन्य देशों के लिखे संविधान कुछ ही वर्षों में फेल होने लगे लेकिन बाबा साहेब का लिखा संविधान आज भी देश में ही नहीं दुनिया में सराहा जा रहा है। बाबा साहेब ने एक बार अपनी मां से पूछा था कि मां हमे लोग अपने पास क्यों नहीं बैठाते, खिलाते, घूमाते और पढ़ने का अवसर देते है तो उनकी मां ने कहा था कि शायद किसी किताब में लिखा है ऐसा। उन्होंने कहा कि किताब में लिखा झूठ भी तो हो सकता है। तभी से उन्होंने प्रण लिया था कि मैं भी एक किताब लिखूंगा जिसमें भेदभाव, छूआछूत, जाति-पात से हटकर समता समाज के लिए बराबरी का स्थान होगा। बाबा साहेब ने उस सपने को पूरा किया। इसलिए वह महान है और हम उन्हें कभी नहीं भुला सकते। तमाम बंदिशों के बाद उन्होंने 32 डिग्रियां हासिल की। इसमें सभी सबसे सर्वोच्च डिग्री पीए.डी. की होती है। वह चार विषय में पीएच.डी. किए।

शिक्षा की अलख जलाई

बाबा साहब का जीवन स्वयं में संघर्ष, संकल्प और सफलता की प्रेरणादायक गाथा है। उन्होंने उस समय में शिक्षा की ज्योति जलाई जब समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित था। उनका मानना था कि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो न चोर, भाई, पट्टीदार और आपका गुरु भी नहीं चुरा सकता। जब आदमी निहत्था हो जाता है तो शिक्षा का अधिकार उसे प्रेरित करता है। आगे का मार्ग दिखाता है। बाबा साहब मानते थे कि शिक्षा ही व्यक्ति को आत्मनिर्भर बना सकती है। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय (अमेरिका) और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स (इंग्लैंड) से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उनके लिए शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना जगाने का औजार थी। एक बार बाबा साहेब के समकक्ष लोगों ने मजाक किया कि अंबेडकर रातभर तुम्हारी लालटेन जलती है क्या करते हो तुम रात भर। तब बाबा साहेब का जवाब बहुत मार्मिक था। उन्होंने कहा कि आप का समाज जागा हुआ है इसलिए आप चैन की नींद सो रहे हो, लेकिन मेरा समाज सोया हुआ है इसलिए मुझे जागकर इनके सुख सुविधा के लिए सोचना पड़ता है कि संविधान में ऐसी क्या- क्या चीज रखी जाए कि किसी को कोई दिक्कत भविष्य में नहीं हो पाए।

विचारों में क्रांति और सामाजिक सुधार

डॉ. अंबेडकर ने जाति प्रथा और छुआछूत के विरुद्ध आजीवन संघर्ष किया। उन्होंने कहा था—"मैं ऐसे धर्म को मानने को तैयार नहीं जो मनुष्य के साथ समता का व्यवहार नहीं करता।" उनका यह दृष्टिकोण 'बौद्ध धम्म' की ओर झुका और अंततः उन्होंने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया।

उनके विचारों की गूंज डॉ. जॉन डॉल्टन जैसे विद्वानों तक भी पहुँची थी। अंबेडकर ने डॉल्टन को बताया था कि भारत में सामाजिक सुधार केवल कानून से नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना से आएगा।

नारी सशक्तिकरण के लिए हिंदू कोड बिल

बाबा साहब ने नारी सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया। हिंदू कोड बिल का प्रारूप उनके ही नेतृत्व में बना, जो विधवा विवाह, तलाक, संपत्ति में अधिकार जैसे विषयों को कानूनी रूप देने वाला पहला बड़ा प्रयास था। इस बिल के लिए उन्हें कटु विरोध भी सहना पड़ा, लेकिन वे अपने सिद्धांतों से पीछे नहीं हटे।

संविधान समावेशी राष्ट्र का स्वरूप

डॉ. अंबेडकर ने संविधान में समता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता, न्याय और बंधुत्व जैसे मूलभूत सिद्धांतों को शामिल कर भारत को एक समावेशी राष्ट्र का स्वरूप दिया। उन्होंने संविधान सभा में कहा था—"हमारा संविधान केवल शासन की विधि नहीं है, बल्कि यह स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का दस्तावेज है।"

बाबा साहेब के कुछ प्रमुख उद्धरण

जो सामाजिक न्याय की भावना को उजागर करते हैं:

1. "हमारा उद्देश्य एक ऐसा समाज बनाना है जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का भाव हो।"

यह उद्धरण बताता है कि बिना समानता और बंधुत्व के स्वतंत्रता अधूरी है।

2. "यदि हम एकीकृत भारत चाहते हैं, तो जातिवाद का अंत करना होगा।"

अंबेडकर जाति व्यवस्था को सामाजिक अन्याय की जड़ मानते थे।

3. "संविधान केवल एक वकील का दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक मार्गदर्शक है।"

यह बताता है कि संविधान सामाजिक न्याय और समानता का माध्यम है।

4. "जो लोग अपने अधिकारों के लिए खड़े नहीं होते, उन्हें जीने का हक नहीं है।"

यह चेतना जागृत करने वाला कथन आज भी उत्पीड़न के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है।

5. "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।"

यह नारा आज भी सामाजिक उत्थान का मूलमंत्र है।

उनकी जयंती केवल एक स्मरण मात्र नहीं, बल्कि यह हमें प्रेरणा देती है कि हम शिक्षा, समता और न्याय की उस मशाल को आगे बढ़ाएं, जिसे बाबा साहब ने जलाया था।उनका जीवन एक संदेश है—"जो समाज सबसे नीचे है, वही किसी राष्ट्र की असली परीक्षा है। अगर वह ऊपर उठता है, तभी राष्ट्र सच्चा लोकतंत्र कहलाएगा।"

डॉ. सुनील कुमार

सहायक प्रोफेसर

जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग

वीर बहादुर सिंह पूर्वांचलय विश्वविद्यालय, जौनपुर

Ramkrishna Vajpei

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