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जलप्लावित भारत में 60 करोड़ की आबादी को पीने का पानी मयस्सर नहीं
लखनऊ: यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि पूरा भारत उतर से दक्षिण तक जलप्लावन से पीड़ित है लेकिन देश की 60 करोड़ की आबादी पानी के लिए तरस रही है। जी हां , इतनी बड़ी आबादी के पास पीने का पानी ही मयस्सर नहीं है। यह कितनी बड़ी दिक्कत है ,इसको देश के नीति आयोग की एक रिपोर्ट के हवाले से समझा जा सकता है।आयोग ने अपनी रिपोर्ट में चिंता जाहिर की है कि देश में इस समय तकरीबन साठ करोड़ आबादी पानी की समस्या से जूझ रही है। देश के तीन-चौथाई घरों में पीने का साफ पानी तक मयस्सर नहीं है। आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ेंगे।
भीषण जलसंकट से जूझ रहा है देश
बात केवल नीति आयोग के रिपोर्ट की ही नहीं है। यह हकीकत है। हालत बहुत खराब है। असल में आज हम भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं। देश में मानसून बेहतर रहने के बावजूद यह स्थिति आ सकती है इसका अहसास कभी नहीं किया गया। आज देश दुनिया में जल गुणवत्ता के मामले में 122 देशों में 120वें नंबर पर है। पानी के मामले में यह हमारी बदहाली का सबूत है।
जल संकट पूरी दुनिया की गंभीर समस्या
देश के जाने माने पर्यावरणविद ज्ञानेंद्र रावत का मानना है कि आज जल संकट पूरी दुनिया की गंभीर समस्या है। वर्षाजल संरक्षण को बढ़ावा देकर गिरते भूजल स्तर को रोका व उचित जल-प्रबंधन से सबको शुद्ध पेयजल मुहैया कराया जा सकता है। यही टिकाऊ विकास का आधार हो सकता है। इस मामले में हालात गंभीर हो चुके हैं।
मानसून के बावजूद समस्या विकराल
रावत कहते हैं कि मानसून के बावजूद यह समस्या विकराल हो रही है। इसका सबसे बड़ा कारण कारगर नीति के अभाव में जल संचय, संरक्षण व प्रबंधन में नाकामी है। इसी का खामियाजा देश कहीं जल संकट तो कहीं भीषण बाढ़ के रूप में भुगत रहा है। एक अध्ययन में कहा गया है कि पानी की मांग और आपूर्ति में अंतर के कारण 2020 तक भारत जल संकट वाला देश बन जायेगा। यह सब परिवार की आय बढ़ने तथा सेवा एवं उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्र में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि का नतीजा है।
भूजल के अत्यधिक दोहन से गंभीर हुई समस्या
यह सच है कि भूजल पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है लेकिन आज इसका दोहन इतना बढ़ गया है कि भूजल के लगातार गिरते स्तर के चलते जल संकट की भीषण समस्या पैदा हो चुकी है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की भयावह स्थिति पैदा हो गई है। वैज्ञानिकों व भूगर्भ विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब पानी के अत्यधिक दोहन, उसके रिचार्ज न होने के कारण जमीन की नमी खत्म होने, उसमें ज्यादा सूखापन आने, कहीं दूर लगातार हो रही भूगर्भीय हलचल की लहरें यहां तक आने व पानी में जैविक कूड़े से निकली मीथेन व दूसरी गैसों के इकट्ठे होने के कारण जमीन की सतह में अचानक गर्मी बढ़ जाने का परिणाम है। यह भयावह खतरे का संकेत है।
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