Indian Citizenship: छोड़ रहे हैं भारत की नागरिकता!

Indian Citizenship: भारतीयों में देश छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता लेने का ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ रहा है। बीते साल ही 2 लाख 25 हजार लोगों ने भारत की नागरिकता त्याग दी।

Yogesh Mishra
Published on: 13 March 2023 10:19 PM IST (Updated on: 14 March 2023 1:58 PM IST)
Indian Citizenship: छोड़ रहे हैं भारत की नागरिकता!
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Indian Citizenship: आभासी दुनिया में जिस तरह राष्ट्रवाद (Nationalism) पसरा हुआ दिखता है, जिस तरह राष्ट्रीय भावनाएँ उमड़ती घुमड़ती दिखती है। जिस तरह राष्ट्रवाद को लेकर पागलपन की हद तक प्रेम दिखता है। भारत छोड़ कर विदेश में जाकर बसने वाले आँकड़े न केवल इन सब पर पलीता लगा देते हैं। बल्कि कई यक्ष प्रश्न भी खड़े करते हैं। क्योंकि भारत ने बीते दस सालों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी की है। विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Indian Economy) है। अर्थव्यवस्था ट्रिलियन डॉलर बनने की राह पर है। फिर पलायन? पलायन की यह गति?

बस किसी तरह भारत छोड़ने की तमन्ना

भारत छोड़ कर अन्य देशों, खासकर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यहां तक कि यूएई में बसने और वहां की नागरिकता लेने का ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ रहा है। बीते साल ही 2 लाख 25 हजार लोगों ने भारत की नागरिकता (Indian Citizenship) त्याग दी। हैरानी की बात यह है कि भारत छोड़ कर अन्यत्र बसने की तमन्ना रखने वालों में पंजाब के बेरोजगार युवा, गुजरात के आम आदमी, दक्षिण के स्टूडेंट्स और इंजीनियर से लेकर दिल्ली, मुंबई के रईस तक शामिल हैं। किसी को विदेश में जाकर दौलत कमानी है तो किसी को दौलत खर्च कर विदेश में आराम की जिंदगी जीनी है। बस, किसी तरह भारत छोड़ना है।

2.25 लाख से अधिक भारतीयों ने त्यागी नागरिकता

बीती 9 फरवरी, 2023 को संसद में विदेश मंत्रालय द्वारा पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में 2.25 लाख से अधिक भारतीयों ने नागरिकता त्याग दी। ये 2011 के बाद से सबसे अधिक संख्या है। डेटा दर्शाता है कि भारतीय, विशेष रूप से उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्ति (हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल) बेहतर अवसरों, स्वास्थ्य सेवा, जीवन की गुणवत्ता, शिक्षा और कई अन्य कारकों की तलाश में नए पासपोर्ट के साथ पश्चिम की ओर बढ़ रहे हैं। बहरहाल, हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल वे हैं जिनके पास 1 मिलियन डॉलर या 8.2 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है। हेनले ग्लोबल सिटिजन्स रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर, 2021 में भारत में ऐसे 3.47 लाख लोग थे। इनमें से 1.49 लाख एचएनआई सिर्फ नौ शहरों में-मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, गुड़गांव और अहमदाबाद में पाये गये। रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, चीन और जापान के बाद भारत निजी संपत्ति के मामले में दुनिया में चौथे स्थान पर है।

जहां बहुत से लोग गरीबी और जीवन के संघर्ष से त्रस्त हो कर देश छोड़ना चाहता हैं तो वहीं बहुत से ऐसे लोग हैं जो अमीर हैं और सब सुविधाएं होने के बावजूद देश छोड़ रहे हैं। यह भी एक विडंबना है। उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि विशेष रूप से यूएस ईबी-5 वीज़ा, पुर्तगाल गोल्डन वीज़ा, ऑस्ट्रेलियन ग्लोबल टैलेंट इंडिपेंडेंट वीज़ा, माल्टा परमानेंट रेजिडेंसी प्रोग्राम और ग्रीस रेजिडेंस बाय इनवेस्टमेंट प्रोग्राम के लिए रेजिडेंस-थ्रू इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम के अनुरोधों में वृद्धि हुई है।

पुर्तगाल गोल्डन वीजा के लिए सफल आवेदकों के बीच भारत रैंक में बढ़ रहा है। 2022 में दुनिया में चौथे स्थान पर रहा। जबकि 2021 में पांचवें स्थान और 2020 में नौवें स्थान पर था। पुर्तगाली निवेशक वीज़ा कार्यक्रम व्यक्तियों और परिवारों को लाभान्वित करता है। उन्हें पुर्तगाल और शेष यूरोपीय संघ में रहने, काम करने, अध्ययन करने या सेवानिवृत्त होने पर सामाजिक सुरक्षा का अधिकार प्रदान करता है।

पुर्तगाल गोल्डन वीज़ा प्रोग्राम आने के बाद से, भारतीय नागरिकों को 130 से अधिक वीजा जारी किए गए हैं। इस प्रोग्राम की योग्यता आवश्यकताओं में, उच्च घनत्व वाले क्षेत्र में 4.4 करोड़ रुपये की संपत्ति खरीदना और पुर्तगाली नागरिकों के लिए कम से कम 10 नौकरियां पैदा करना अनिवार्य है। निवेश के पांच साल बाद, आवेदक पुर्तगाली पासपोर्ट प्राप्त कर सकता है, जिससे वह बिना वीजा के 150 से अधिक देशों की यात्रा करने के योग्य हो जाता है। बहरहाल पुर्तगाल ने अब इस प्रोग्राम को समाप्त करने का निर्णय लिया है।

बढ़ रही देश से बाहर रहने वाले भारतीयों की संख्या

विदेश मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर के 100 से ज्यादा देशों में 3.2 करोड़ भारतीय हैं। देश के बाहर रहने वाले भारतीयों की संख्या पिछले 28 साल में 346 फीसदी बढ़ी है। 1990 में विदेश में रहने वाले भारतीयों की संख्या केवल 90 लाख थी।

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों (यूएन डीईएसए) के जनसंख्या विभाग द्वारा जारी की गई 'इंटरनेशनल माइग्रेशन 2020 रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय आबादी का पलायन बहुत अलग होता है। भारत के प्रवासियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है जो अलग-अलग देशों में है। भारत के सबसे ज्यादा लोग यूएई, अमेरिका और सऊदी अरब में रहते हैं।

बाहर व विदेश में बसने का एक सस्ता, आजमाया हुआ और आसान रास्ता है विदेशी कालेज में पढ़ाई के जरिये। एक बार पैसा खर्च करके एडमिशन लीजिए फिर लगातार पढ़ते रिसर्च करते जाइये। इसी क्रम में स्थायी निवास और नागरिकता का जुगाड़ बैठाते जाइये। ये एक बड़ी वजह है कि विदेश में पढ़ने वालों की तादाद लगातार बढ़ी है।

भारत की 58 करोड़ से अधिक आबादी 5 से 24 वर्ष की आयु वर्ग में आती है। इनमें से कई छात्र अपनी उच्च शिक्षा के लिए विदेशों के स्कूलों और कॉलेजों में जाते हैं। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। 2016 से 2019 तक, यह संख्या 4,40,000 से बढ़कर 7,70,000 हो गई। 2021 में विदेश में 11,33,749 भारतीय छात्र थे। कुछ वर्षों में यह आंकड़ा 18,00,000 तक पहुंचने की संभावना है।

कनाडा है भारतीयों छात्रों की फेवरेट जगह

भारतीय छात्रों के लिए सबसे फेवरेट डेस्टिनेशन कनाडा बना हुआ है क्योंकि वहां एडमिशन, पढ़ाई और फिर वहीं बस जाना बहुत आसान है। यही वजह है कि 2016 और 2019 के बीच, कनाडा के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में, भारतीय छात्रों की संख्या में 182 फीसदी की वृद्धि हुई। नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के इमिग्रेशन, रिफ्यूजी और नागरिकता कनाडा डेटा के विश्लेषण के अनुसार कनाडा में स्थायी निवासी बनने वाले भारतीयों की संख्या 2013 में 32,828 से बढ़कर 2022 में 118,095 हो गई, जो 260 फीसदी की वृद्धि है।

दुनियाभर में प्रवासी भारतीयों का काफी दबदबा है। 70 से ज्यादा भारतीय मूल के नेता हैं, जिन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों के सर्वोच्च पदों को हासिल किया है। सबसे ज्यादा नौ बार मॉरिशस में भारतीय मूल के नेताओं ने राष्ट्रपति या फिर प्रधानमंत्री का पद संभाला है। इनमें सर शिवसागर रामगुलाम सबसे पहले हैं। शिवसागर 14 साल तक मॉरिशस के प्रधानमंत्री रहे। इनके पिता भारतीय थे। कुशवाहा समाज से आते थे। 1968 से 1982 तक शिवसागर मॉरिशस के प्रधानमंत्री रहे।इनके अलावा अनिरुद्ध जगन्नाथ पहले प्रधानमंत्री और बाद में राष्ट्रपति रहे। वीरासामी रिंगादू, कसम उतीम, नवीन रामगुलाम कुशवाहा, कैलाश पुरयाग, अमीना गुरीब-फकीम, प्रविंद जगन्नाथ, पृथ्वीराज सिंह रूपुन भी मॉरिशस के प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति रह चुके हैं। इनके अलावा 40 देशों में 350 से ज्यादा सांसद भारतीय मूल के हैं।

सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा भारतीय मूल की हैं। इनके पिता भारतीय और माता मलेशियन थीं। हलीमा के पिता वॉचमैन थे। जब हलीमा आठ साल की थीं, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। पिता की मौत के बाद वह अपनी मां के साथ सिंगापुर की सड़कों पर स्ट्रीट फूड बेचा करती थीं। पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो भी भारतीय मूल के हैं। 61 साल के एंटोनियो ने 2015 में पुर्तगाल के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली थी। एंटोनिया के पिता का जन्म गोवा में हुआ था।

मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद भी भारतीय मूल के हैं। जगन्नाथ का जन्म हिंदू अहीर परिवार में हुआ है। इनके पिता भारतीय थे। जगन्नाथ ने यूनिवर्सिटी ऑफ बरकिंघम से लॉ की पढ़ाई की है। 2017 से वह मॉरिशस के प्रधानमंत्री हैं। इसी साल अगस्त में प्रविंद जगन्नाथ वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के तीन दिवसीय दौरे पर आए थे।

मॉरिशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन भी भारतीय मूल के हैं। रूपन 2019 से मॉरिशस के राष्ट्रपति हैं। उनका जन्म 24 मई 1959 को मॉरिशस के एक भारतीय आर्य समाजी हिंदू परिवार में हुआ था। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल लंकशायर से इंटरनेशनल बिजनेस लॉ में मास्टर्स डिग्री हासिल की है।

सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद उर्फ चान संतोखी भी भारतीय मूल के हैं। चंद्रिका पुलिस अधिकारी से राजनेता बने हैं। 63 साल के चंद्रिका प्रसाद का जन्म 3 फरवरी 1959 को भारतीय-सूनीनामीज हिंदू परिवार में हुआ था। 19वीं सदी की शुरुआत में संतोखी के दादा को अंग्रेज बिहार से मजदूर के रूप में सूरीनाम ले गए थे।

गुयाना के मौजूदा राष्ट्रपति इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं। गुयाना की आठ लाख की आबादी में से करीब आधे भारतीय मूल के लोग हैं। अली का जन्म 25 अप्रैल, 1980 को गुयाना में एक भारतीय-गायनीज मुस्लिम परिवार में हुआ था। अली ने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज से अर्बन और रीजनल प्लानिंग में डॉक्टरेक्ट की डिग्री हासिल की है। भारतीय मूल के भरत जगदेव 2020 से गुयाना के उपराष्ट्रपति हैं। वह भारतीय मूल के गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली के एडमिनिस्ट्रेशन में शामिल हैं। इससे पहले वह 1997 से 1999 तक गुयाना के उपराष्ट्रपति रह चुके हैं। उनका जन्म 23 जनवरी, 1964 को गुयाना में एक भारतीय हिंदू परिवार में हुआ था। 1912 में जगदेव के दादा राज जियावन को अंग्रेज उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले से मजूदर के रूप में गुयाना ले गए थे।

सेशेल्स के राष्ट्रपति वेवेल रामकलावन भी भारतीय मूल के हैं। रामकलावन के दादा बिहार के रहने वाले थे। के पिता मेटल का काम करते थे, जबकि मां शिक्षिका थीं।इन का जन्म 15 मार्च,1961 में हुआ था।

कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी से आने वाली कमला अमेरिकी इतिहास में उपराष्ट्रपति बनने वाली पहली महिला और इस पद पर पहुंचने वाली भारतीय मूल की भी पहली महिला हैं। कमला हैरिस हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और हेस्टिंग्स कॉलेज ऑफ लॉ से ग्रैजुएट हैं। 57 वर्षीय हैरिस की जड़ें भारत के तमिलनाडु राज्य से जुड़ी हैं। उनकी मां श्यामला गोपालन का जन्म तमिलनाडु में हुआ था। कमला के पिता जमैका-अमेरिका मूल के डोनाल्ड जे हैरिस थे।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक भी भारतीय मूल के हैं। ऋषि का जन्म 12 मई, 1980 को ब्रिटेन के साउथेम्पटन में हुआ था। उनकी मां का नाम ऊषा सुनक और पिता का नाम यशवीर सुनक था। वह तीन भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके दादा-दादी पंजाब के रहने वाले थे। 1960 में वह अपने बच्चों के साथ पूर्वी अफ्रीका चले गए थे। बाद में यहीं से उनका परिवार इंग्लैंड शिफ्ट हो गया। तब से सुनक का पूरा परिवार इंग्लैंड में ही रहता है। ऋषि ने भारत के बड़े उद्योगपतियों में शुमार इंफोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति से शादी की है। सुनक और अक्षता की दो बेटियां हैं। उनकी बेटियों के नाम अनुष्का सुनक और कृष्णा सुनक है।

500 से ज्यादा कंपनियों में भारतीय मूल के CEO

दुनियाभर की टॉप 500 से ज्यादा कंपनियों में 17 प्रतिशत से ज्यादा चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (CEO) भारतीय मूल के ही हैं। गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला, एडोब के शांतनु नारायण, चैनल की लीना नायर, आईबीएम के अरविंद कृष्णा, माइक्रॉन के संजय मेहरोत्रा, मास्टरकार्ड के अजयपाल सिंह, अरिस्टा नेटवर्क्स की जयश्री उल्लाल, नेटऐप के जॉर्ज कुरियन समेत कई ग्लोबली कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के ही हैं।

पिछले साल यानी 2022 में प्रवासी भारतीयों ने सबसे ज्यादा 100 अरब डॉलर रुपये भारत में भेजे। अपने देश विदेशी मुद्रा भेजने के मामले में प्रवासी भारतीय सबसे आगे हैं। दूसरे नंबर पर मैक्सिको है। विदेशों में रहने वाले मैक्सिको के लोगों ने 60 अरब डॉलर से ज्यादा रकम अपने देश भेजी थी। चीनी प्रवासियों ने अपने देश 51 अरब डॉलर, फिलिपींस ने 38 अरब डॉलर, मिस्त्र के प्रवासियों ने 31 अरब डॉलर, पाकिस्तानियों ने 29 अरब डॉलर, बांग्लादेशियों ने 21 अरब डॉलर और नाइजीरियंस ने 21 अरब डॉलर अपने-अपने देशों में भेजे। लेकिन देश से पलायन की निरंतर बढ़ रही रफ़्तार को विदेशी मुद्रा के प्राप्ति की आड़ में नज़र अंदाज करना उचित नहीं है। क्योंकि जो लोग देश छोड़ रहे हैं, वे अपनी आर्थिक हैसियत को अपने साथ ले जा रहे हैं। उन्होंने उद्योग या सर्विस सेक्टर में जो निवेश किया होता है। वह भी तो ख़त्म कर देते हैं। इसी के साथ रोज़गार, उत्पादन, क्रय शक्ति जैसी अनेकानेक आर्थिक क्रियाएँ प्रभावित होती हैं। पलायन समाजिक स्तर को भी प्रभावित करता है।

(लेखक पत्रकार हैं। दैनिक पूर्वोदय से साभार।)

Yogesh Mishra

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