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आकाश आनंद की ताजपोशी से गरमाई सियासत, क्या बदल जाएगा BSP का चेहरा और अंदाज़? जानें कौन हैं वो जिन पर मायावती ने खेला बड़ा दांव?
Akash Anand BSP National Coordinator: मायावती ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए अपनी पार्टी की बागडोर अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथ में देदी है और उन्हें पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया है।
Akash Anand BSP National Coordinator
Akash Anand BSP National Coordinator: देश की राजनीति में जहां उम्रदराज़ चेहरे अभी भी सत्ता की कमान थामे हुए हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी (BSP) की सुप्रीमो मायावती ने एक चौंकाने वाला कदम उठाते हुए अपनी पार्टी की बागडोर अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथ में देदी है और उन्हें पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बना दिया है। एक आधुनिक सोच वाला युवा,सोशल मीडिया सधा हुआ चेहरा, जिसे अब BSP का राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बना दिया गया है।
यह नाम शायद आम मतदाता के लिए अभी नया हो सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत में यह नाम अब धीरे-धीरे उभर रहा है और मायावती की यह रणनीति न केवल BSP के कायाकल्प का संकेत देती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि पार्टी अब अगली पीढ़ी को तैयार कर रही है। सवाल यह है कि कौन हैं आकाश आनंद? क्या उनका सियासी आधार वज़नदार है या यह सिर्फ पारिवारिक विरासत का परिणाम है? उनकी शिक्षा, सोच, अनुभव और अब तक की राजनीतिक भूमिका पर एक नज़र डालते हैं ताकि समझा जा सके कि मायावती ने क्यों उन्हें BSP का भविष्य मान लिया है।
कौन हैं आकाश आनंद?
आकाश आनंद, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। यानी सीधे मायावती के भतीजे। लंबे समय तक BSP में ‘एकल नेतृत्व’ यानी सिर्फ मायावती का चेहरा दिखता रहा, लेकिन अब जिस तरह से आकाश आनंद को आगे लाया जा रहा है, उससे यह साफ़ होता जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व में बदलाव की पटकथा लिखी जा चुकी है। दिल्ली में जन्मे आकाश की शिक्षा भी पूरी तरह राजधानी केंद्रित रही है। शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के नामचीन स्कूलों से हुई, और फिर उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने लंदन की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से एमबीए किया और यहीं से उनकी प्रोफेशनल पर्सनैलिटी में ‘कॉर्पोरेट फिनिश’ आने लगी। वे सलीके से बोलते हैं, सधे हुए अंदाज़ में जवाब देते हैं और डिजिटल मीडिया व सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स को गहराई से समझते हैं। उनके सोशल मीडिया पोस्ट, ग्राफिक्स और बयानों में एक खास किस्म की पेशेवर कुशलता दिखाई देती है जो पारंपरिक BSP शैली से बिल्कुल अलग है। यही कारण है कि मायावती के सख्त अनुशासन वाले संगठन में आकाश आनंद का प्रयोग एक साहसिक प्रयोग माना जा रहा है।
राजनीति में उनकी एंट्री कैसे हुई?
2017 से पहले तक आकाश आनंद राजनीति से दूर ही थे। लेकिन जब उत्तर प्रदेश में BSP को झटका लगा और पार्टी लगातार चुनावी हारों से जूझने लगी, तब मायावती ने खुद परिवार के भरोसेमंद चेहरों को सामने लाने का निर्णय लिया। 2018-19 के आसपास आकाश आनंद को पहली बार सार्वजनिक मंचों पर देखा गया। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय वे BSP-SP गठबंधन में सक्रिय रूप से कैंपेनिंग करते नज़र आए। उनके भाषणों में एक नई तरह की ऊर्जा थी, और युवाओं से जुड़ने का प्रयास साफ दिखाई देता था। उन्होंने जालौन, आगरा, अलीगढ़, मथुरा जैसे दलित बहुल इलाकों में जनसभाएं कीं और पार्टी के लिए वोट मांगे। उनकी भाषा सीधी थी, मुद्दों पर केंद्रित और जातिगत अस्मिता के साथ-साथ आर्थिक न्याय की बात भी करती थी यानी वे “Identity Politics” से आगे बढ़कर “Aspirational Politics” की ओर बढ़ते दिखे।
राजनीतिक समझ और अब तक की भूमिका
आकाश की सबसे बड़ी ताकत है उनकी राजनीतिक भाषा की मॉडर्न अपील। वे दलित मुद्दों पर पुरानी शैली में नहीं, बल्कि नए संदर्भों के साथ बात करते हैं। उदाहरण के लिए, वे बाबा साहेब अंबेडकर की विचारधारा को सिर्फ "सामाजिक न्याय" तक सीमित नहीं रखते, बल्कि उसे शिक्षा, टेक्नोलॉजी, स्टार्टअप्स और इन्क्लूजन जैसे मुद्दों से जोड़ते हैं। पार्टी के भीतर उन्होंने ‘डिजिटल विंग’ को मज़बूत किया है, BSP के फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स को प्रोफेशनलाइज किया गया है। युवा कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी गई और ‘Bahujan Voice’ नाम से डिजिटल पोर्टल्स व कैम्पेन्स शुरू किए गए। राजनीति में उनका आना ‘परंपरा तोड़ने’ जैसा भी था क्योंकि BSP कभी भी परिवारवाद की समर्थक नहीं रही। मायावती ने हमेशा कहा कि BSP एक अनुशासित, विचारधारा आधारित आंदोलन है न कि वंशवाद की राजनीति। लेकिन अब जिस तरह से उन्होंने आकाश को आगे बढ़ाया है, वह बताता है कि समय के साथ रणनीति भी बदल रही है।
क्या आकाश तैयार हैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लिए?
यह सवाल BSP के ही नहीं, पूरे राजनीतिक विश्लेषणकर्ताओं के सामने खड़ा है। मायावती ने जिस प्रकार अचानक उन्हें राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर बनाया और फिर उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी का चेहरा बनने के संकेत दिए, वह कहीं न कहीं यह बताता है कि BSP अब पुनर्गठन की ओर बढ़ रही है। हालांकि 2024 में उन्हें पूरी तरह से कमान नहीं सौंपी गई — बल्कि कई जनसभाएं कैंसिल की गईं, और मायावती ने खुद मोर्चा संभाला। लेकिन अब मई 2025 में फिर से उन्हें बड़ी भूमिका में लाकर मायावती ने स्पष्ट किया है कि पार्टी का भविष्य उनके ही हाथों में है।
इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं:
1. BSP को एक युवा चेहरा चाहिए, जो युवाओं, पढ़े-लिखे वर्ग और डिजिटल पब्लिक से संवाद कर सके — आकाश इस भूमिका में फिट बैठते हैं।
2. मायावती को अब उत्तराधिकारी की तलाश करनी ही थी, क्योंकि पार्टी के भीतर नेतृत्व संकट उभर सकता था — और आकाश के रूप में एक सुरक्षित, भरोसेमंद विकल्प मौजूद था।
क्या दलित राजनीति के लिए यह चेहरा पर्याप्त है?
यह सबसे पेचीदा सवाल है। मायावती खुद एक बेहद सशक्त दलित महिला नेता हैं, जो संघर्ष से निकली हैं। जबकि आकाश का बैकग्राउंड अपेक्षाकृत सुविधाजनक रहा है। वे राजनीतिक आंदोलन में तपे नहीं हैं लेकिन यह भी सच है कि एक आधुनिक युग में दलित राजनीति को भी नया मोड़ चाहिए।आकाश की चुनौती यही होगी कि वे एक ऐसी पार्टी को दोबारा संजीवनी दें, जो अब सिर्फ जाति की राजनीति से आगे बढ़कर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल इंडिया जैसे मुद्दों पर भी दावे कर सके।
BSP में क्या बदलाव आ रहे हैं?
अब तक की रिपोर्ट्स के अनुसार, आकाश आनंद पार्टी की कार्यशैली में कई बदलाव लेकर आए हैं। वे नियमित रूप से वर्चुअल बैठकें करते हैं, युवा नेतृत्व को बढ़ावा दे रहे हैं और छोटे-छोटे कार्यकर्ता सम्मेलनों में सीधे संवाद बना रहे हैं। उन्होंने "BSP 2.0" जैसा एक विज़न डॉक्युमेंट भी प्रस्तावित किया है, जिसमें संगठन, विचारधारा और रणनीति तीनों स्तरों पर बदलाव की बात है। वहीं मायावती अब ‘मार्गदर्शक’ की भूमिका में जा रही हैं। हालांकि अभी उन्होंने सार्वजनिक रूप से कोई भी संन्यास की घोषणा नहीं की है, लेकिन जिस तरह से आकाश को आगे बढ़ाया जा रहा है, वह इसी ओर संकेत करता है।
अंतिम सवाल: क्या आकाश BSP को बचा पाएंगे?
BSP आज जिस स्थिति में है, वह किसी भी पार्टी के लिए गंभीर सोच का विषय है। उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा के बीच सीधी लड़ाई बन चुकी है, जबकि BSP तीसरे मोर्चे में गिरती जा रही है। ऐसे में आकाश आनंद की भूमिका सिर्फ एक नाम या चेहरे की नहीं, बल्कि पार्टी को पुनर्जीवित करने की होगी। यदि वे सामाजिक न्याय की नींव को बनाए रखते हुए समकालीन मुद्दों को साथ लेकर चल पाए और मायावती की राजनीतिक विरासत को संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ा पाए, तो संभव है कि BSP फिर से अपनी खोई हुई ज़मीन हासिल करे। नहीं तो, आकाश आनंद सिर्फ एक और राजनीतिक वारिस बनकर इतिहास के हाशिये पर दर्ज रह जाएंगे। मौजूदा हालात में यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि वे सफल होंगे या नहीं — लेकिन एक बात तय है: बहुजन राजनीति के इस नए अध्याय में आकाश आनंद एक अहम किरदार बन चुके हैं। और अब देश की निगाहें उनके अगले कदम पर टिकी हैं।