Ajit Doval Biography: ना कोई पद, ना प्रचार फिर भी मोदी सरकार की रणनीति के हर सूत्रधार, जानिए कौन हैं 'भारतीय खुफिया तंत्र के सबसे खतरनाक खिलाड़ी Ajit Doval

Ajit Doval Biography: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद पर काबिज अजीत डोभाल को आम जनता भले ही कम जानती हो, लेकिन सत्ता के गलियारों में उनका नाम एक लीजेंड की तरह लिया जाता है।

Harsh Srivastava
Published on: 15 May 2025 9:18 PM IST (Updated on: 15 May 2025 9:50 PM IST)
Ajit Doval Biography
X

Ajit Doval Biography

Ajit Doval Biography: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित कर रहे होते हैं, जब भारतीय सेना एलओसी पार कर आतंक के अड्डों को खत्म करती है, जब पाकिस्तान या चीन जैसे देशों को जवाब देने की बारी आती है तब अक्सर एक शख्स पर्दे के पीछे से इन सभी बड़ी रणनीतियों की कमान संभाले होता है। उसके पास न तो कोई राजनैतिक पद है, न कोई चुनावी जनाधार, फिर भी उसकी बात प्रधानमंत्री तक बिना किसी रुकावट के पहुँचती है। वह न तो रोज़ मीडिया में दिखता है और न ही भाषणों की दौड़ में शामिल होता है, लेकिन देश की सुरक्षा और नीति-निर्माण में उसकी भूमिका सबसे केंद्रीय है। यह शख्स हैं अजीत डोभाल।


मौन में मौजूद रणनीति की गूंज: अजीत डोभाल का परिचय

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद पर काबिज अजीत डोभाल को आम जनता भले ही कम जानती हो, लेकिन सत्ता के गलियारों में उनका नाम एक लीजेंड की तरह लिया जाता है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तभी से अजीत डोभाल उनके सबसे करीबी और विश्वसनीय सलाहकार बनकर उभरे। लेकिन अजीत डोभाल की कहानी नरेंद्र मोदी के साथ शुरू नहीं होती, बल्कि कई दशक पहले एक जासूस की तरह दुश्मनों के बीच रहने से शुरू होती है और यहीं से शुरू होता है उनका रोमांचक और अविश्वसनीय सफर।


गैंगटोक से घुसपैठ तक: शुरुआती जीवन और शिक्षा

अजीत डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के घीड़ी बानीयाल गाँव में हुआ था। उनके पिता जी, गोविंद बल्लभ डोभाल, भारतीय सेना में एक अफसर थे। अजीत डोभाल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अजमेर मिलिट्री स्कूल से पूरी की। फिर उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक और फिर एमए किया। बाद में उन्हें डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (D.Litt.) की उपाधि भी काशी हिंदू विश्वविद्यालय से मिली।


पुलिस की वर्दी से शुरू हुआ खुफिया सफर

1968 में अजीत डोभाल भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए। उनका कैडर केरल था, लेकिन जल्द ही उनकी तीव्र बुद्धिमत्ता और विश्लेषण क्षमता ने खुफिया एजेंसियों का ध्यान खींचा। जल्द ही उन्हें इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में नियुक्त किया गया। यहीं से उनका असली करियर शुरू हुआ एक ऐसा करियर जो किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं।

अंदर तक घुसपैठ: सात साल तक पाकिस्तान में जासूसी

अजीत डोभाल का सबसे चर्चित और रहस्यमयी कार्यकाल वह था जब वे पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट बनकर सात साल तक रहे। यह जानकारी आधिकारिक तौर पर कभी पुष्टि नहीं की गई, लेकिन विभिन्न रिपोर्टों और विशेषज्ञों के अनुसार उन्होंने पाकिस्तान के भीतर रहते हुए कई आतंकी संगठनों में घुसपैठ की। यह उनके करियर का सबसे बड़ा जोखिम भरा लेकिन प्रभावशाली हिस्सा था।


स्वर्ण मंदिर में 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का मास्टरमाइंड

1984 में जब पंजाब में खालिस्तान आंदोलन चरम पर था और अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर को आतंकियों ने अपना अड्डा बना लिया था, तब अजीत डोभाल ने खालिस्तानी आतंकियों के बीच एक पाकिस्तानी एजेंट बनकर प्रवेश किया। उन्होंने महीनों तक मंदिर के भीतर रहकर आतंकियों की हर गतिविधि की जानकारी केंद्र सरकार को दी, जिसके आधार पर ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया। यह ऑपरेशन उनकी रणनीतिक सूझबूझ और हिम्मत का जीता-जागता उदाहरण है।


कंधार हाइजैक: जब डोभाल आतंकियों से आमने-सामने हुए

1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 का अपहरण हुआ और विमान को अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया। आतंकियों की मांग थी — भारत तीन आतंकियों को छोड़े। तब भारत सरकार की ओर से अजीत डोभाल को वार्ताकार बनाकर भेजा गया। वह सीधे आतंकियों के संपर्क में आए और बेहद कठिन हालात में भारतीय यात्रियों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की। ये उनका दूसरा ऐसा ऑपरेशन था जिसमें उन्हें दुश्मनों के बीच जाकर वार्ता करनी पड़ी।


2014 में बना ‘मोदी सरकार का ब्रह्मास्त्र’

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अजीत डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया। तब से लेकर अब तक डोभाल हर बड़े फैसले के पीछे की छाया रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) जैसे ऐतिहासिक सैन्य अभियानों के पीछे उनका दिमाग काम कर रहा था।

सर्जिकल स्ट्राइक: जब दुश्मन को चौंका दिया गया

2016 में उरी हमले के बाद अजीत डोभाल की अगुवाई में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की। यह पहली बार था जब भारत ने LOC पार कर दुश्मन को सीधे उसके घर में घुसकर मारा। यह ऑपरेशन केवल सैन्य नहीं, बल्कि कूटनीतिक और रणनीतिक रूप से भी एक संदेश था और इसके पीछे मुख्य दिमाग डोभाल का था।


बालाकोट एयरस्ट्राइक: सीमा नहीं, इरादा मायने रखता है

2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला किया। इस ऑपरेशन की योजना और अनुमोदन में अजीत डोभाल की भूमिका निर्णायक रही। यही वजह है कि आज उन्हें "भारत का जेम्स बॉन्ड" कहा जाता है।


‘डोभाल डॉक्ट्रिन’: बदलते भारत की आक्रामक सुरक्षा नीति

अजीत डोभाल की सुरक्षा रणनीति को आज ‘डोभाल डॉक्ट्रिन’ कहा जाता है। इस नीति के तहत भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक सुरक्षा रणनीति अपनाता है। आतंकवाद के खिलाफ "प्रिवेंटिव स्ट्राइक", सीमाओं पर "प्रोएक्टिव डिफेंस" और वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ाना ये सब इस नीति का हिस्सा हैं।

परिवार और निजी जीवन: गुमनामी में गहराई

जहाँ अजीत डोभाल का पेशेवर जीवन सार्वजनिक चर्चाओं में रहा है, वहीं उनका पारिवारिक जीवन काफी हद तक निजी रहा है। उनके दो बेटे हैं एक बेटे शौर्य डोभाल पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और इंडिया फाउंडेशन नामक थिंक टैंक चलाते हैं, जो नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। शौर्य डोभाल अक्सर राजनीतिक और विदेश नीति विषयों पर बोलते भी हैं। दूसरे बेटे के बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं है। अजीत डोभाल की पत्नी का नाम अरुणा डोभाल है, लेकिन वे सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह दूर रहती हैं। अजीत डोभाल स्वयं भी किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय नहीं हैं और ना ही कभी किसी टीवी शो या इंटरव्यू में देखे जाते हैं।

भारत रत्न की मांग और सम्मान

अजीत डोभाल को 1988 में ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया गया यह किसी पुलिस अधिकारी को दिया गया पहला सैन्य सम्मान था। उनके योगदान को देखते हुए कई बार उन्हें भारत रत्न देने की मांग भी उठ चुकी है। हालांकि उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर किसी पुरस्कार की इच्छा नहीं जताई।


एक छाया जो राष्ट्र की रक्षा में दीवार बन गई

अजीत डोभाल का जीवन एक मिशन की तरह है। उन्होंने न सत्ता की इच्छा जताई, न लोकप्रियता की, बल्कि खामोशी से राष्ट्र के लिए वो काम किया जो शायद इतिहास के पन्नों में भी देर से लिखा जाएगा। आज जब भारत आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाता है, वैश्विक मंच पर मुखर होता है, तो उसके पीछे एक ऐसा साया है जो कभी सामने नहीं आता लेकिन उसकी रणनीति हर नीतिगत फैसले में झलकती है। अजीत डोभाल सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत की खुफिया शक्ति और रणनीतिक सोच का प्रतीक हैं और शायद यही वजह है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के सबसे भरोसेमंद सिपहसालार बने हुए हैं। उनकी कहानी हमें बताती है कि असली हीरो वे होते हैं जो परदे के पीछे रहकर भी देश की तस्वीर बदल देते हैं।



Harsh Srivastava

Harsh Srivastava

Mail ID - [email protected]

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!