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Shimla Agreement Kya Hai: शिमला समझौता, युद्ध की राख से उठती शांति की दस्तावेज़ी पहल या एक खोया हुआ अवसर?
India Pakistan Shimla Samjhauta: यह समझौता 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद अस्तित्व में आया, जिसमें पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण किया...
India Pakistan Shimla Samjhauta History (Photo - Social Media)
India Pakistan Shimla Samjhauta: भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की जब भी चर्चा होती है, शिमला समझौता (Simla Agreement) अनिवार्य रूप से चर्चा के केंद्र में आता है। 1971 के युद्ध के बाद उपजे हालात में तैयार किया गया यह समझौता, दोनों देशों के बीच शांति, स्थायित्व और संवाद की उम्मीद का प्रतीक रहा। मगर समय के साथ इसकी प्रासंगिकता, व्याख्या और पालन को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं।
विशेष रूप से अप्रैल 2025 में पाकिस्तान द्वारा इसे निलंबित करने की घोषणा के बाद, यह समझौता एक बार फिर वैश्विक और क्षेत्रीय विमर्श का हिस्सा बन गया है।
शिमला समझौता: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
2 जुलाई 1972, हिमाचल प्रदेश के शिमला में, भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच यह ऐतिहासिक समझौता हुआ।
यह समझौता 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद अस्तित्व में आया, जिसमें पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में आत्मसमर्पण किया, भारत ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया, लगभग 5,000 वर्ग मील क्षेत्र भारत के नियंत्रण में आया और भारत को वैश्विक स्तर पर नैतिक व कूटनीतिक समर्थन प्राप्त हुआ।
इस पृष्ठभूमि में दोनों देशों के बीच भविष्य के संबंधों को आकार देने के लिए एक ठोस कूटनीतिक पहल की आवश्यकता थी, जिसे शिमला समझौते ने पूरा किया।
समझौते के प्रमुख बिंदु
1. विवादों का शांतिपूर्ण और द्विपक्षीय समाधान:
भारत और पाकिस्तान ने सहमति व्यक्त की कि वे सभी विवादों का समाधान आपसी बातचीत और शांतिपूर्ण तरीके से करेंगे, और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं होगी।
2. संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान:
दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता, राजनीतिक स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का संकल्प लिया।
3. नियंत्रण रेखा (LoC) की मान्यता:
1971 के युद्ध के बाद बनी नियंत्रण रेखा (Line of Control) को दोनों देशों ने मान्यता दी और इसे एकतरफा रूप से न बदलने का वचन दिया।
4. राजनीतिक संबंधों की बहाली:
भारत और पाकिस्तान ने पारस्परिक विश्वास बहाली और राजनीतिक संबंधों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया।
5. क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व का प्रयास:
दक्षिण एशिया में स्थायित्व और शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
कूटनीतिक दृष्टिकोण और आलोचनाएं
युद्ध में निर्णायक विजय के बावजूद, शिमला वार्ता में भारत का रुख अपेक्षाकृत रक्षात्मक रहा।
इंदिरा गांधी ने कठोर शर्तें थोपने से परहेज़ किया, क्योंकि उन्हें भय था कि अत्यधिक अपमान से पाकिस्तान में ‘वर्साय सिंड्रोम’ जैसा मनोवैज्ञानिक आक्रोश पैदा हो सकता है, जो भविष्य में और अधिक आक्रामकता को जन्म दे सकता था।
भारत ने 5,000 वर्ग मील भूमि लौटाई, 93,000 युद्धबंदियों को बिना मुकदमा चलाए पाकिस्तान को सौंप दिया और कोई ठोस राजनीतिक या कश्मीर से जुड़ी रियायत हासिल नहीं की।
पूर्व राजनयिक के.एन. बख़्शी के अनुसार, “हम अपनी जीत पर शर्मिंदा लग रहे थे।”प्रो. उदय बालाकृष्णन ने इसे इंदिरा गांधी की “राजनीतिक भूल” करार दिया। भुट्टो ने अपनी कूटनीतिक चतुराई से युद्ध की हार को वार्ता की जीत में बदलने की कोशिश की और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह नैरेटिव गढ़ा कि पाकिस्तान भारतीय आक्रमण का शिकार हुआ।
समझौते के उल्लंघन और समय के साथ चुनौतियाँ
समय के साथ पाकिस्तान ने कई बार इस समझौते का उल्लंघन किया:
• 1999 का कारगिल युद्ध — पाकिस्तान की सेना ने गुपचुप भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की, जिसे भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत खदेड़ा।
• पाकिस्तान समय-समय पर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा, जबकि शिमला समझौते के तहत सभी विवादों को द्विपक्षीय रूप से सुलझाने पर सहमति बनी थी।
इसके बावजूद, भारत शिमला समझौते को आज भी कश्मीर मुद्दे पर अपना नैतिक और कूटनीतिक आधार मानता है।
पाकिस्तान द्वारा समझौते को निलंबित करना: ताजा घटनाक्रम
24 अप्रैल 2025 को, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप लगाया और सिंधु जल संधि को निलंबित किया, वाघा सीमा को बंद कर दिया, पाकिस्तानी राजनयिकों को निष्कासित कर दिया।
इसके जवाब में पाकिस्तान ने शिमला समझौते को निलंबित करने, भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करने और सभी द्विपक्षीय समझौतों को स्थगित करने की घोषणा की।
यह निर्णय भारत-पाक संबंधों में गिरावट और दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है।
भारत और वैश्विक समुदाय की प्रतिक्रिया
भारत ने पाकिस्तान के इस कदम को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि शिमला समझौता आपसी सहमति से बना था, इसका निलंबन अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक शिष्टाचार के विरुद्ध है और कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय — संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन — ने भी द्विपक्षीय संवाद के मार्ग को ही समर्थन दिया है और शिमला समझौते की भावना का सम्मान करने की बात कही है।
शिमला समझौते की वर्तमान प्रासंगिकता
2022 में जब शिमला समझौते की 50वीं वर्षगांठ मनाई गई थी, तब तक भारत और पाकिस्तान के रिश्ते पुलवामा हमले, अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी घटनाओं से प्रभावित हो चुके थे।
इसके बावजूद, शिमला समझौता आज भी एक कूटनीतिक आधार, क्षेत्रीय स्थायित्व का प्रतीक और संभावित संवाद की उम्मीद बना हुआ है।
यह दस्तावेज़ भारत के लिए आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना 1972 में था, क्योंकि यह द्विपक्षीयता, शांति और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित है।
निष्कर्ष
शिमला समझौता केवल युद्ध के बाद हस्ताक्षरित एक संधि नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थायित्व की एक महत्वपूर्ण कोशिश थी।
आज जब पाकिस्तान इसकी वैधता पर सवाल उठाता है या इसे निलंबित करने का फैसला करता है, तो वह न केवल शांति के अवसरों को क्षति पहुँचाता है, बल्कि अपनी अंतरराष्ट्रीय साख को भी कमज़ोर करता है।
भारत के लिए यह समझौता आज भी नैतिक संबल, कूटनीतिक आधार और शांतिपूर्ण समाधान की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
दक्षिण एशिया में स्थायित्व तभी संभव है जब पाकिस्तान शिमला समझौते की आत्मा को — अर्थात् आपसी संवाद, शांतिपूर्ण समाधान और संप्रभुता के सम्मान — को स्वीकार करे।