एक बार फिर सियासत में लौटेगा ‘बालासाहब’ का दौर! ‘ठाकरे’ का होगा महाराष्ट्र

Maharashtra Politics: ठाकरे परिवार की टूटी हुई राजनीतिक शाखाएं एक बार फिर एकजुट होंगी? देखिए क्या होगा प्रभाव-

Snigdha Singh
Published on: 21 April 2025 11:43 AM IST
एक बार फिर सियासत में लौटेगा ‘बालासाहब’ का दौर! ‘ठाकरे’ का होगा महाराष्ट्र
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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ आते दिख रहा है। दशकों पुराने मतभेदों और अलग राहों पर चलने के बाद, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे के बीच फिर से समीपता के संकेत मिल रहे हैं। यह वही दो नेता हैं जो कभी शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे की राजनीति के केंद्र में थे, लेकिन करीब 20 साल पहले राहें अलग कर ली थीं।

हाल ही में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने मराठी अस्मिता और हिंदुत्व को आधार बनाते हुए राज ठाकरे को अप्रत्यक्ष रूप से साथ आने का न्योता दिया। उन्होंने कहा, “मैं छोटे-मोटे विवादों को भुलाने को तैयार हूं। महाराष्ट्र और मराठी हित के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए। लेकिन दोहरी नीति नहीं चलेगी – एक ओर बीजेपी से हाथ मिलाना और फिर विरोध करना, इससे कोई हल नहीं निकलेगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मराठी जनता को तय करना होगा कि वह “हिंदुत्व के लिए उद्धव ठाकरे के साथ खड़ी होगी या बीजेपी के साथ।” उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम की शपथ लेकर "चोरों" से दूरी बनाने की भी अपील की।

कहां से शुरू हुईं साथ आने की बातें

इसी क्रम में प्रसिद्ध अभिनेता और निर्देशक महेश मांजरेकर ने एक इंटरव्यू में राज ठाकरे से पूछा कि क्या वह और उद्धव ठाकरे फिर से एकजुट हो सकते हैं। इस पर राज ठाकरे ने जवाब दिया कि वह “महाराष्ट्र और मराठी मुद्दों” पर साथ आने को तैयार हैं – “लेकिन इसके लिए सामने से भी इच्छा होनी चाहिए।”

राज ठाकरे ने वर्षों पहले शिवसेना छोड़ते वक्त कहा था कि उनकी नाराज़गी बालासाहेब ठाकरे (जिन्हें वह विट्ठल कहते थे) से नहीं, बल्कि उनके आसपास मौजूद लोगों से थी। अलग होकर उन्होंने 'जय महाराष्ट्र' के नारे के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की और मराठी अस्मिता के मुद्दों पर सख्त रुख अपनाया। 2009 में मनसे ने 13 सीटें जीतकर राजनीतिक प्रभाव भी दिखाया था।

हालांकि, बीते दो दशकों में मनसे और शिवसेना (यूबीटी) के बीच तीखी बयानबाज़ी और राजनीतिक टकराव भी सामने आए। 2024 विधानसभा चुनावों में दोनों नेताओं के बेटे आमने-सामने थे। वर्ली में आदित्य ठाकरे को मनसे के संदीप देशपांडे से टक्कर मिली, लेकिन वे विजयी रहे। वहीं माहिम में राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे को शिवसेना उम्मीदवार महेश सावंत ने हराया।

राजनीति में मनसे की क्या स्थिति

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) को करारा झटका लगा है। पार्टी प्रमुख राज ठाकरे ने राज्य की 125 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन नतीजे बेहद निराशाजनक रहे — पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। इस चुनाव में सबसे अधिक चर्चा में रहे राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे, जो अपने राजनीतिक करियर की पहली परीक्षा में सफल नहीं हो सके। वे अपने ही गृह क्षेत्र से चुनाव हार गए, जिससे न सिर्फ उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि पार्टी की स्थिति पर भी बहस शुरू हो गई है।

एमएनएस की स्थापना के बाद 2009 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 13 सीटें जीतकर महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी। तब से पार्टी ने कई मुद्दों पर मुखर होकर जनसमर्थन हासिल करने की कोशिश की, लेकिन समय के साथ उसका जनाधार कमजोर होता गया।

इस बार विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन को देखते हुए एमएनएस ने लोकसभा चुनाव से दूरी बनाए रखी और किसी भी सीट से उम्मीदवार नहीं उतारा। इसके बजाय पार्टी ने एनडीए को समर्थन देने का निर्णय लिया, जिसे कुछ राजनीतिक विश्लेषक रणनीतिक कदम मान रहे हैं, जबकि कई इसे पार्टी की गिरती स्थिति का संकेत भी बता रहे हैं।

महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र की राजनीति में बीते तीन वर्षों में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। शिवसेना में उस वक्त बड़ी फूट पड़ी जब पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत कर कई विधायकों के साथ पार्टी छोड़ दी और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद शिवसेना दो गुटों उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिंदे गुट में बंट गई। संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच भारी उथल-पुथल के बावजूद उद्धव ठाकरे ने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिश जारी रखी।

हालिया विधानसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे गुट ने 95 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिनमें से 20 सीटों पर जीत दर्ज की। यह प्रदर्शन 2019 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले मामूली सुधार था, जब पार्टी के पास 15 विधायक थे।लोकसभा चुनावों में भी शिवसेना (यूबीटी) को 9 सीटों पर सफलता मिली। हालांकि यह प्रदर्शन पार्टी की पुरानी ताकत के मुकाबले सीमित जरूर है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिणाम उद्धव ठाकरे की व्यक्तिगत साख और जमीनी संगठन के प्रति उनकी पकड़ को दर्शाता है।

अब सवाल यह है कि क्या ये राजनीतिक प्रतिस्पर्धा खत्म होकर सहयोग में बदल सकती है? क्या ठाकरे परिवार की टूटी हुई राजनीतिक शाखाएं एक बार फिर एकजुट होंगी? राजनीतिक गलियारों में इस संभावित गठबंधन को महाराष्ट्र की राजनीति में एक "बड़ा घटनाक्रम" माना जा रहा है, लेकिन अंतिम निर्णय वक्त के गर्भ में है।

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Hi! I am Snigdha Singh, leadership role in Newstrack. Leading the editorial desk team with ideation and news selection and also contributes with special articles and features as well. I started my journey in journalism in 2017 and has worked with leading publications such as Jagran, Hindustan and Rajasthan Patrika and served in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi during my journalistic pursuits.

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