राष्ट्रपति पद के लिए अंत तक संशय बनाए रखेंगे मोदी, तुरुप के पत्ते पर नजर

इस बार किसी आदिवासी समुदाय को यह पद सौंपा जा सकता है। झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू इस पद पर बिठाई जा सकती हैं। लिखी पढ़ी और अच्छी अंग्रेज़ी हिंदी बोलने वाली द्रौपदी के तौर पर तुरुप का पत्ता एक तीर से दो निशाने होंगे। एक तो महिला और दूसरी आदिवासी।

zafar
Published on: 16 March 2017 9:44 PM IST
राष्ट्रपति पद के लिए अंत तक संशय बनाए रखेंगे मोदी, तुरुप के पत्ते पर नजर
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उमाकांत लखेड़ा

नई दिल्ली: उत्तरप्रदेश व पंजाब समेत बाकी पांच प्रदेशों के चुनाव संपन्न होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए देश के अगले राष्ट्रपति का चुनाव एक बड़ी पहेली की तरह है। यूपी व उत्तराखंड में भारी जीत से मोदी के समक्ष राष्ट्रपति पद पर अपनी पसंद के व्यक्ति को बिठाने की आखिरी बाधा भी दूर हो चुकी है।

रहेगा सस्पेंस

भाजपा व संघ परिवार भी इस बात के प्रति आश्वस्त हो चुके हैं कि मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के उत्तराधिकारी के तौर पर जो भी नाम तय होगा उसमें पीएम नरेंद्र मोदी की पसंद सर्वोपरि होगी। प्रधानमंत्री की कार्यशैली और पसंद का आकलन करने वालों का मानना है कि मोदी इस बार राष्ट्रपति उम्मीदवार को नामित करने के मामले में अंतिम क्षणों तक पूरी तरह सस्पेंस बनाए रखेंगे।

यह संकेत भी दिए जा रहे हैं कि इस बार किसी आदिवासी समुदाय को यह पद सौंपा जा सकता है। ऐसा हुआ तो झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू इस पद पर बिठाई जा सकती हैं। लिखी पढ़ी और अच्छी अंग्रेज़ी हिंदी बोलने वाली द्रौपदी के तौर पर तुरुप का पत्ता एक तीर से दो निशाने होंगे। एक तो महिला और दूसरी आदिवासी।

बतादें कि वह झारंखड में भी पहली महिला आदिवासी गर्वनर हैं। हालांकि महिला को राष्ट्रपति भवन के लिए चुने जाने की अटकलों में लोकसभा स्पीकार सुमित्रा महाजन का नाम भी है।

चर्चा में आडवाणी-जोशी

भाजपा के सबसे बुजुर्ग नेता लालकृष्ण अडवाणी की दावेदारी की भी पार्टी के भीतर बाहर चर्चा खत्म नहीं हुई है। उनके साथ ही दूसरे वरिष्ठ पार्टी नेता डॉ मुरली मनोहर जोशी के नाम की भी चर्चा सुर्खियां बनती रही हैं। लेकिन इन दोनों ही बुजुर्ग नेताओं की दावेदारी को पार्टी के भीतर व मोदी के रोडमैप में ज्यादा तवज्जो नहीं मिल पा रही।

बतादें कि 2013 में गोवा की भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी जिसमें मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया गया था, तब से ही अडवाणी खुद को किनारे किए जाने से काफी आहत महसूस करते आ रहे हैं। पार्टी आधिकारिक तौर पर भले ही इस बात को छिपाने की कोशिश करती रहती है कि मोदी व अडवाणी के बीच सब कुछ ठीक ठाक है लेकिन असल में अडवाणी पिछले ढाई बरस में कम से कम तीन-चार मौकों पर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों पर प्रत्यक्ष व परोक्ष तौर पर कटाक्ष कर चुके हैं।

हाशिये पर दिग्गज

भाजपा में अडवाणी के चढ़ाव व उतार पर निगाह रखने वाले पार्टी के एक भीतरी जानकार ने स्वीकार किया कि यूपी विधानसभा चुनावों में भाजपा ने नाममात्र के लिए अडवाणी का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया था। लेकिन उन्हें कहीं भी पार्टी की चुनावी रैलियों को संबोधित करने के लिए नहीं बुलाया गया। यहां तक कि अडवाणी के करीबी रहे कई उम्मीदवार जो उत्तर प्रदेश में कई जगह कांटे के मुकाबले में फंसे हुए थे उन्होंने भी अडवाणी को अपने क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कराने से परहेज किया।

हालांकि, भाजपा व यहां तक कि मोदी मंत्रिमंडल के कई सदस्य निजी तौर पर यह स्वीकार करते हैं कि भाजपा के इस युग पुरुष के दावे की अनदेखी करना उनके साथ घोर अन्याय होगा। अडवाणी पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भाजपा के संस्थापकों में रहे हैं और 2009 के आम चुनावों में उन्हें पार्टी ने बाकायदा प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया था।

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