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प्रदूषण और शहरीकरण के चलते 687 पौधों और जीवों की प्रजातियां संकट में
योगेश मिश्र
लखनऊ। प्रदूषण और शहरीकरण के चलते 687 पौधों और जीवों की प्रजातियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। भारत दुनिया के उन दस देशों में शुमार हो गया है, जहां जीवों और पौधों की सबसे अधिक प्रजातियां खतरे में है।
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प्रदूषण आने वाले दिनों में 96 स्तनपायी, 25सरीसृप, 64जलीय और 217 पौध प्रजातियां ऐसी हैं जिन्हे निगल सकता है। इनमें उड़ने वाली गिलहरी, एशियाई शेर, काले हिरण, गेंडा, डालफिन बर्फीले तेदुऐ का नाम संकट ग्रस्त प्रजातियों की सूची में शुमार है।
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इंटरनेशनल यूनियन फॉर कनजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा हर चौथे साल जारी ‘रेड लिस्ट ऑफ थ्रेटंड स्पेशिज’ में दुनियां भर की 47 हजार 677 प्रजातियों का विश्लेषण किया गया है इनमें से 17 हजार 2 सौ 91 प्रजातियां सेकट में हैं। जिसमें 21 फीसदी स्तनपायी, 30 फीसदी मेढक़ों की प्रजातियां, 70 फीसदी पौधों के साथ 35 फीसदी बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीव शामिल हैं।
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प्रजातियों के संकट के लिहाज से भारत दुनिया के 10 शीर्ष देशों में है। भारत में 45 हजार वनस्पतियों की प्रजातियां पायी जाती हैं। जो विश्व की कुल प्रजातियों का 10.78 फीसदी है। वन प्राणियों की भारत में 89,451 प्रजातियां हैं, जो विश्व की 7.31 फीसदी बैठतीं हैं।
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आईयूसीएन का सर्वे बताता है कि भारत में 240 वानस्पतिक प्रजातियां तथा 321 वन प्राणियों की प्रजातियां अस्तित्व के संकट से जूझ रहीं हैं। राजस्थान के जैसलमेर में 3162 वर्ग किमी. में फैले मरु उद्यान में 120 तरह के जीव जन्तु और कीट रहते हैं। सैकड़ों तरह के पेड़-पौधें और जड़ी-बूटियां उगती हैं। लेकिन इन सब पर भारी संकट है।
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राजस्थान के बाडमेर इलाके में बूर व फोग, खींच, सीणिया, पिल्लू, घंटील, लाणो, रींगणी, झींझण आदि पौधे भुरट, प्याजी, गोखरू, कंटाला, कानकतूरा, हिरणखुरी आदि घास और रोहिडा, झडबेरी, अरंड जैसे दरख्त तथा तूंबे की बेल सरीखी वनस्पतियां विलुप्त प्राय हैं।
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