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आरबीआई और सरकार हैं आमने-सामने, अर्थव्यवस्था कैसे पटरी पर आए
नईदिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने से आरबीआई और सरकार के बीच चल रही कुश्ती रोकती है। जब एक तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर आने के लिए संघर्ष कर रही है तो दूसरी ओर सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के बीच टकराव की ख़बरें लगातार बढ़ती जा रही हैं।ऐसे समय में इस तरह के तनाव के हालात बनना ठीक संकेत नहीं है। इस बीच एक नहीं कई ऐसे कारण उभरे जो कम समय में ही आरबीआई और सरकार के बीच घर्षण पैदा करते रहे।
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अभी पिछले हफ़्ते आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने हैरान करने वाले भाषण में ने चेतावनी दी थी कि यदि हालात ठीक नहीं किए गए तो देश में आर्थिक संकट आ सकता है।और इसी के बीच चर्चाएं तेज हो गयी कि उर्जित पटेल आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफ़ा देने तक का मन बना चुके हैं। हालांकि इन ख़बरों की अधिकारिक रूप से पुष्टि नहीं की जा सकी है।
क्या ये सब अचानक हुआ है या हालात बिगड़ते जा रहे थे। साल 2018 में अर्थव्यवस्था से जुड़े कई घटनाक्रम ऐसे हुए हैं जिनसे मौजूदा हालात की पृष्ठभूमि तैयार हुई है।
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इस बारे में कहा जा रहा है कि सरकार आरबीआई के ब्याज़ दरों में कटौती न करने से नाख़ुश थी। आरबीआई ने दरें कम करने के बजाय बढ़ा दीं।आरबीआई ने दरें कम करने या बढाने के मामले में इसको अपना सर्वाधिकार मानता है। इसके बाद सरकार और आरबीआई के बीच अधिकारों को लेकर कई बार तकरार हुई।
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दरअसल फ़रवरी में आरबीआई ने एक सर्कुलर जारी कर एनपीए (डूबे हुए क़र्ज़) को परिभाषित किया और क़र्ज़ देने की शर्तें भी फिर से तय कीं।
सभी सरकारी बैंक की क़र्ज़ देने की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई
इस तकरार का एक और कारण बना। सरकार ने आरबीआई के इस रुख़ को बैंकों के प्रति बेहद कड़ा माना। इस सर्कुलर की वजह से दो सरकारी बैंकों को छोड़कर सभी सरकारी बैंक की क़र्ज़ देने की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई।
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नीरव मोदी 'घोटाला' ने देश को हिला कर रख दिया था। पूरा विपक्ष इस मुददे पर सरकार और उसकी निगरानी को कटघरे में खड़ा कर दिया था। इस मुददे पर सरकार अपनी सफायी में सिर्फ दस्तावेज ही जुटाती रही।
इसी समय आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकारी बैंकों पर निगरानी रखने के लिए और अधिक अधिकार मांगे ताकि उन्हें निजी बैंकों को समकक्ष लाया जा सके।
आईएल एंड एफ़एस ( इंफ्रास्ट्रक्चर लीसिंग एंड फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़) के अपना क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने के बाद सरकार ने आरबीआई से वित्तीय संकट से जूझ रही ग़ैर बैकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफ़सी) को राहत देने के लिए कहा था। आरबीआई ने इस दिशा में कोई क़दम नहीं उठाया।
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इसी बीच रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के बोर्ड सदस्य नाचिकेत मोर को कार्यकाल समाप्त होने से दो साल पहले ही पद से हटा दिया गया।मोर के बारे यह चर्चा तेज थी कि मोर ने कई मुद्दों पर सरकार का खुला विरोध किया था। इसे ही उन्हें पद से हटाए जाने की वजह माना गया।
पेमेंट्स नियामक
सरकार के पेमेंट्स के लिए अलग से नियामक स्थापित करने के फ़ैसले का आरबीआई ने ख़ुला विरोध किया।आरबीआई ने अपनी वेबसाइट पर एक नोट जारी कर इसका विरोध दर्ज करवाया। हालांकि सरकार ने कहा था कि वो आरबीआई के क्षेत्राधिकार में दख़ल नहीं दे रही है।
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