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CAA का विरोध: सीएए रद्द करने के लिए सारे कांग्रेसी राज्यों ने उठाया ये कदम
सीएए के खिलाफ पार्टी के विरोध को और तेज करने के लिए पंजाब के बाद सभी कांग्रेस शासित राज्य सीएए वापस लेने का प्रस्ताव पारित करेंगे। कांग्रेस ने साफ संकेत दिया हैं कि जल्द ही पंजाब के नक्शे कदम पर राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं से भी सीएए को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा।
नई दिल्ली सीएए के खिलाफ पार्टी के विरोध को और तेज करने के लिए पंजाब के बाद सभी कांग्रेस शासित राज्य सीएए वापस लेने का प्रस्ताव पारित करेंगे। कांग्रेस ने साफ संकेत दिया हैं कि जल्द ही पंजाब के नक्शे कदम पर राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं से भी सीएए को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा। सीएए के खिलाफ देश भर में जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच पार्टी शासित राज्यों की विधानसभा से प्रस्ताव पारित करा कांग्रेस केंद्र सरकार पर राजनीतिक दबाव बढ़ाना चाहती है।
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कांग्रेस ने साफ किया है कि सीएए के खिलाफ अधिक से अधिक राज्यों की विधानसभा से प्रस्ताव पारित कराना न केवल इसके विरोध को तेज किया जाए, बल्कि इसकी वैधानिकता को भी सवालों के दायरे में लाए जाए। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दो दिन पहले ही सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया जिसमें इसे भेदभावकारी बताते हुए केंद्र से इस कानून को रद्द करने का अनुरोध किया है।
इसमें पटेल ने मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का स्पष्ट तौर पर नाम भी लिया। वैसे भी मध्यप्रदेश में सीएए के खिलाफ कांग्रेस के विरोध की मुखर कमान खुद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने थाम रखी है। जबकि राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत तो सीएए के खिलाफ कांग्रेस की राष्ट्रीय रणनीति के प्रमुख हैं। सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर मोदी सरकार पर दबाव बढ़ाने की राजनीतिक शुरूआत वामदल शासित केरल ने की थी। केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने सीएए को रद्द करने का प्रस्ताव विधानसभा से पारित करने के बाद सभी विपक्षी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर ऐसा ही करने का अनुरोध किया था।
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बता दें कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से 13 जनवरी को बुलाई गई थी विपक्षी दलों की बैठक में भी वामदलों ने सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए जाने पर जोर दिया था। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी नेताओं का तर्क है कि सीएए के खिलाफ विधानसभा के प्रस्ताव की गंभीरता की अनदेखी नहीं की जा सकती। खासकर तब जब 10-12 राज्यों की विधानसभाओं से यह प्रस्ताव पारित कर दिया
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