सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को लेकर की अहम टिप्पणी, कहा- अहम मामलों में उच्चतम न्यायालय से ले सकते हैं राय

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि भले ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत किसी विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के पास भेजना अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर कोई विधेयक असंवैधानिक प्रतीत होता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को कोर्ट की राय लेनी चाहिए।

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Published on: 13 April 2025 11:19 AM
Indias Got Latent case Ranveer Allahabadia filed application in Supreme Court
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सुप्रीम कोर्ट

तमिलनाडु के राज्यपाल एन. रवि को जब से सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। तब से यह मामला लगातार नए मोड़ लेता जा रहा है। सबसे अहम बात यह रही कि इस दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति की भूमिका को लेकर भी महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं। पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि किसी भी विधेयक को तीन महीने के भीतर मंजूरी दी जानी चाहिए। साथ ही कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया है कि कुछ मामलों में राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी चाहिए।

राष्ट्रपति पद को लेकर सुप्रीम कोर्ट की क्या टिप्पणी रही?

न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि भले ही संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत किसी विधेयक को सुप्रीम कोर्ट के पास भेजना अनिवार्य नहीं है। लेकिन अगर कोई विधेयक असंवैधानिक प्रतीत होता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को कोर्ट की राय लेनी चाहिए। सुनवाई के दौरान कई बार कहा गया कि यदि किसी विधेयक को केवल इस आधार पर रोका जा रहा है कि वह संविधान के विरुद्ध हो सकता है तो कार्यपालिका को अपनी शक्ति का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसे मामलों में केंद्र सरकार को खुद निर्णय लेने के बजाय अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से मार्गदर्शन लेना चाहिए।

क्या सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को सलाह दे सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपालों के पास यह अधिकार नहीं होता कि वे तय करें कि कोई विधेयक कोर्ट में भेजा जाए या नहीं। संविधान के अनुसार, ऐसे मामलों में राज्यपाल को विधेयक राष्ट्रपति के पास भेज देना चाहिए और फिर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट से राय लेनी चाहिए। कोर्ट ने इस संबंध में सरकरिया आयोग और पुनचि आयोग का हवाला भी दिया। जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि विधायिका की संवैधानिक वैधता पर प्रश्न उठने की स्थिति में राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट से सलाह ले सकते हैं।

कोर्ट ने बताईं दो स्थितियां

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दो प्रकार की स्थितियों का ज़िक्र किया। पहला, जब किसी विधेयक की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई हो और दूसरी जब चुनौती केवल सरकारी नीति पर आधारित हो। अगर मामला केवल नीति से जुड़ा हो तो कोर्ट अंतिम विचार देने से बच सकता है। लेकिन यदि संवैधानिक वैधता का सवाल उठता है तो कोर्ट को निर्णय देना ही होगा।

लंबित विधेयकों पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान लंबित पड़े विधेयकों को लेकर भी सख्त रुख अपनाया। राष्ट्रपति की शक्तियों को लेकर भी महत्वपूर्ण बातें कही गईं। न्यायमूर्ति पारदीवाला और महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई संवैधानिक प्राधिकरण समय-सीमा के भीतर अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करता, तो कोर्ट निष्क्रिय नहीं रहेगा और हस्तक्षेप करेगा।

कोर्ट ने यह भी माना कि अनुच्छेद 201 को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच लंबे समय से तनाव बना हुआ है क्योंकि विधेयकों को पारित करने की कोई तय समय-सीमा नहीं है। इस वजह से विवाद उत्पन्न होते रहते हैं। सुनवाई के दौरान सरकरिया आयोग का हवाला देते हुए कहा गया कि विधेयकों की मंजूरी के लिए समय-सीमा तय होनी चाहिए। बाद में पुनचि आयोग ने भी यही सुझाव दोहराया। बेंच ने माना कि राष्ट्रपति द्वारा किसी विधेयक पर विचार करने की प्रक्रिया के लिए निश्चित समय-सीमा तय करना व्यावहारिक नहीं हो सकता, लेकिन यह बात निष्क्रियता का आधार नहीं बन सकती।

Shivam Srivastava

Shivam Srivastava

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