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अब यूपी व राजस्थान के लोकसभा उप चुनावों में भी भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर!
नई दिल्ली। पंजाब में भाजपा का गढ़ माने जाने वाली गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की शानदार जीत के बाद अब उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर व राजस्थान के अजमेर व अलवर लोकसभा उप चुनावों में भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर दिख रही है। अभी इन सीटों पर चुनाव की तारीखों का ऐलान भले ही नहीं हुआ है लेकिन मुख्यमंत्री आदित्यनाथ व उपमुख्यमंत्री केशव मोर्या द्वारा खाली इन दो सीटों पर भाजपा को मिल रही नई चुनौतियां पार्टी की चिंता बढ़ा रही हैं।
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यूपी में सात माह पुरानी सरकार के गिरते ग्राफ को दुरुस्त करने के लिए भाजपा ने गोरखपुर व फूलपुर दोनो ही जगहों पर निषाद बिरादरी के बसपा के कुछ पुराने नेताओं को भाजपा की ओर खींचने की कोशिशें शुरू कर दी है जबकि अपनादल व एसबीएसपी के नेता व राज्य सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर जैसे असरदार जातीय नेताओं की मिजाजपुर्सी शुरू कर दी है।
भाजपा की मुश्किल यह है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव सिर पर आ चुके हैं तथा विपक्ष में समाजवादी पार्टी ने भाजपा की केंद्र व यूपी सरकार की नाकामियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। भाजपा के भीतरी सूत्रों का मानना है कि गुरुदासपुर उप चुनाव की हार यूपी में रिपीट हुई तो इससे पार्टी कैडर के मनोबल पर बुरा असर पड़ेगा।
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दूसरी ओर राजस्थान में अजमेर व अलवर उप चुनावों में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की कड़ी परीक्षा होनी है। वहां अगले साल विधानसभा चुनाव भी है। हालात की नजाकत को भांपते हुए वंसुधरा ने इन सीटों पर प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली है। यहां की दोनों सीटें भाजपा सांसदों के निधन के कारण खाली हुई हैं। अजमेर सीट पर चूंकि पिछले चुनाव में राज्य कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट भाजपा के सांवरलाल जाट से बहुत कम वोटों से चुनाव हार गए थे। विरोधी कांग्रेस गुट का अब पायलट पर दबाव है कि उप चुनाव में खुद ही मैदान में उतरें।
सचिन पायलट ने पिछले दिनों राहुल गांधी से मुलाकात करके लोकसभा उप चुनाव लड़ने से अनिच्छा जताते हुए प्रदेश की राजनीति में रहने की इच्छा बता दी है। लेकिन सचिन की इस बेरुखी से पूर्व सीएम अशोक गहलोत का गुट पसोपेश में है। वे चाहते हैं कि सचिन पायलट मैदान खाली करें ताकि अगले साल के चुनाव में गहलोत के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाये। अलवर सीट पर 2014 में चुनाव हारे भंवर जितेंद्र सिंह का चुनाव लड़ना तय है। राहुल गांधी के बहुत करीबी रहे सिंह यूपीए सरकार में युवा एंव खेल विभाग में राज्यमंत्री थे।
अजमेर में चुनाव लड़ने के अनिच्छुक सचिन समर्थकों का मानना है कि उन्हें मात्र डेढ़ बरस के लिए सांसद बनाने से कोई लाभ नहीं होने वाला। इसके बजाय उन्हें 2018 के विधानसभा चुनावों की तैयारी तक सीमित रहना चाहिए। राजस्थान में मीणा व जाट जैसी ताकतवर जातियों व कांग्रेस की गुटबाजी उनके चुनाव लड़ने से और तेज होने की आंशका जताई जा रही है। ज्ञात रहे कि कश्मीर में अनंतनाग व बिहार में अररिया व बंगाल में उलबेरिया सीट पर भी लोकसभा के उप चुनाव होने हैं। कांग्रेस ने बिहार व बंगाल में उप चुनाव न लड़ने का फैसला किया है।
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