क्या इतने ज़रुरी हैं जिन्ना

Dr. Yogesh mishr
Published on: 7 May 2018 2:53 PM IST
भारतीय सियासत में इन दिनों फिर पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना जीवित हो उठे हैं वह भी तब जब अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना की मजार पर चादर चढाने का नुकसान कभी पार्टी सोशल इंजीनियरिंग का पाठ पढाने, राममंदिर की अगुवाई करने वाले नेता लालकृष्ण आडवाणी इस कदर भुगत चुके हैं कि उस घटना के बाद ही उनका पराभव शुरु हो गया।
लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी किताब मेरा देश मेरा जीवन में स्वीकार किया है कि मैं पाकिस्तान यात्रा के बाद मर्फीज लॉ का शिकार हो गया। मर्फीज ला का जिक्र ब्राजील के लेखक पाउलो कोल्हो ने अपनी किताब लाइक द फ्लोइंग रिवर में किया है। इसमें उन्होंने द पीस आफ ब्रेड दैट फेल रांग साइड अप में लिखा है कि एक आदमी की मक्खन लगी हुई ब्रेड जमीन पर गिरी तो मक्खन का हिस्सा ऊपर रह गया। जबकि अब तक के मान्य सिद्धांतों के मुताबिक भारी हिस्सा नीचे जाना चाहिए था। इस गुत्थी को सुलझाने की लोगों ने कोशिश की तो उनके गुरुओँ ने बताया कि ब्रेड का टुकड़ा वैसा ही गिरा था जैसा गिरना चाहिए था, मक्खन गलत साइड लग गया था। लेकिन आडवाणी की कोई सफाई काम नहीं आई।
बावजूद इसके इन दिनों उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और आदित्यनाथ योगी सरकार के दो मंत्रियों ने केशव मौर्य और स्वामी प्रसाद मौर्य के बीच जिन्ना इस कदर विवाद का सबब बने हैं कि जिन्ना को लेकर आडवाणी के प्रति उपजा गुस्सा याद हो उठता है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी जिन्ना की बहस वहां के एक सांसद सतीश गौतम के एक ट्वीट से शुरु हुई। जिसमें उन्होंने छात्रसंघ भवन में जिन्ना की तस्वीर लगी होने पर ऐतराज जताकर हटाने की बात की है। 1938 से उस विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन में जिन्ना की तस्वीर है। इसी साल उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गयी थी। यह गौरव इस विश्वविद्यालय ने भीमराव अंबेडकर, सीवी रमन, जय प्रकाश नारायण और मौलाना आजाद को भी दिया है। हालांकि आजीवन पहली सदस्यता महात्मा गांधी के हिस्से गयी थी।
इस समय इस विवाद की वजह पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को आजीवन सदस्यता दिया जाना है। हामिद अंसारी के संदर्भ में अलीगढ़ में जिन्ना याद किए जा रहे है। स्वामी प्रसाद मौर्य जिन्ना के पक्ष में और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य जिन्ना के विरोध में। आखिर क्या वजह है कि हर समय जिन्ना जीवित होते रहते हैं वह भी तब जब पाकिस्तान बनने के बाद लखनऊ के माडल टाउन के कुछ मुसलमान भारत में हो रही उनके साथ ज्यादतियों की शिकायत करने इस्लामाबाद पहुंचे तो जिन्ना ने उनसे साफ कहा कि आजादी में आपका योगदान नहीं है यह आजादी सिर्फ डेढ़ लोगों की देन है। एक मैं और आधा मेरा टाइपराइटर। पूरे आजादी के आंदोलन में मोहम्मद अली जिन्ना और डा बी आर अंबेडकर ही दो ऐसे नेता थे जो कभी जेल नहीं गये। इसके बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी यह कहते हैं कि जिन्ना की तस्वीर तब उतरेगी जब जिन्ना हाउस का नाम बदला जाएगा।
मुंबई के इन्डियन नेशनल कांग्रेस के दफ्तर में 1918 से जिन्ना की तस्वीर लगी है। इसी बिल्डिंग को जिन्ना हाउस कहते हैं। जिन्ना ने दिल्ली में अपने रहने के लिए 10 औरंगजेब रोड का बंगला चुना था। आजकल इस सड़क को एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग कहते है जिसकी डिजाइन एडवर्ड लुटियन की टीम के सदस्य और कनाट प्लेस के डिजाइनर राबर्ट रसेल ने तैयार की थी। दिल्ली में उनके दो दोस्त थे शोभा सिंह और सेठ रामकृष्ण डालमिया। शोभा सिंह अंग्रेजी के जाने माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता थे। डालमिया की बेटी नीलिमा डालमिया ने अपनी एक किताब द सीक्रेट डायरी आफ कस्तूरबा में लिखा है कि जिन्ना मेरे पिता के साथ सिर्फ पैसे और इन्वेस्टमेंट की बातें करते थे। वे पैसे के पीर थे। बाद में जिन्ना ने अपना यह बंगला ढाई लाख रुपये में अपने दोस्त डालमिया को बेंच दिया डालमिया ने उसे खरीदने के बाद गंगाजल से धुलवाया मुस्लिम लीग का झंडा उतार कर गोरक्षा आंदोलन का झंडा लगाया। हालांकि 1947 में डालमिया ने उसे नीदरलैंड सरकार को बेच दिया।
जिन्ना मूलतः इस्मायली थे जो आगा खां के समर्थक होते हैं यह छह इमाम मानते हैं जबकि शिया 12 इमाम मानते हैं। जिन्नाह, मिठीबाई और जिन्नाहभाई पुँजा की सात सन्तानों में सबसे बड़े थे। उनके पिता जिन्नाभाई एक सम्पन्न गुजराती व्यापारी थे, लेकिन जिन्ना के जन्म के पूर्व वे काठियावाड़ छोड़ सिन्ध में जाकर बस गये। कुछ सूत्रों के मुताबिक़, जिन्नाह के पूर्वज हिन्दू राजपूत थे, जिन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया।

जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी, बाद में उन्होंने कच्छी, सिन्घी और अंग्रेजी भाषा सीखी। काठियावाड़ से मुस्लिम बहुल सिन्ध में बसने के बाद जिन्ना और उनके भाई बहनों का मुस्लिम नामकरण हुआ। जिन्ना की शिक्षा विभिन्न स्कूलों में हुई थी। शुरू-शुरू में वे कराची के सिन्ध मदरसा-ऊल-इस्लाम में पढे। सियासत की मजबूरियों के चलते जिन्ना शिया हो गये पर वे मुस्लिम धर्म की किसी रवायत का पालन नहीं करते थे। वे हैम सैंडविच खाते थे पोर्क का मांस उनकी पसंदीदा डिश थी, शराब और सिगार पीते थे नमाज अता नहीं करते थे, उन्होंने कभी कुरान नहीं पढ़ी थी। फिर भी अगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी के छात्रसंघ अध्यक्ष या फिर मुट्ठीभर लोग जिन्ना की तारीफ मुस्लिम होने की वजह से करें तो यह बेवजह लगती है।
जो भारत के बंटवारे के गुनहगार हो उनकी तारीफ स्वामी प्रसाद मौर्य सरीखे मुट्ठी भर लोग करें तो यह भी बेगुनाह नहीं होगा। जिन्ना ने अपने पारसी दिन दिनशॉ की 24 साल छोटी बेटी रति से प्रेमविवाह किया था। रति उनकी दूसरी बीवी थीं। लेकिन रति को उन्होंने सिविल मैरिज की इजाजत नहीं दी। जामिया मस्जिद में ले जाकर इस्लाम कुबूल कराया और निकाह किया। उनकी मेहर की राशि सिर्फ 1001 रुपये तय हुई थी। हांलांकि जिन्ना ने रति को एक लाख रुपये से थोड़ी अधिक धनराशि हाथ में दी थी मेहर में लिखना उन्हें गंवारा नहीं हुआ। रति और जिन्ना विवाह के बाद हनीमून के लिए राजा महमूदाबाद अमीर खां की लखनऊ कोठी में रुके थे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को जिन्ना मिस्टर गांधी कहकर सम्बोधित कर बुलाते थे। यह गांधी के लिए शिष्ट अपमान था। जिन्ना के साथ जिन अहमदियों ने पाकिस्तान की लकीर खींचने का काम किया था उन्हें बाद में मुहाजिर करार दिया गया। दफन के वक्त मुस्लिम लीग से जुडे शबीर अहमद उस्मानी की जिद के चलते जिन्ना की अंत्येष्टि सुन्नी और शिया दोनों तौर तरीके से करनी पड़ी थी। साफ है कि जिन्ना न शिया रह गये थे न सुन्नी रह गये थे न ही इस्मायली। फिर भी मुसलमानों के प्रतीक पुरुष क्यों होने चाहिए। किसी भी हिंदू के लिए आडवाणी के मर्फीज ला के शिकार हो जाने के बाद जिन्ना के जिक्र को आगे क्यों बढाना चाहिए। लेकिन यह दोनों निरंतर जारी हैं। सियासत चीज ही ऐसी है।

width=2480
Dr. Yogesh mishr

Dr. Yogesh mishr

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!