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स्वाधीन भारत के इतिहास में सबसे कमजोर दिनों में कांग्रेस
नई दिल्ली: स्वाधीन भारत के इतिहास में कांग्रेस पार्टी अपने सबसे कमजोर दिनों में है। पार्टी की हालत ऐसी भी नहीं रह गयी है कि वह देश की सभी लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार सके। उसके सामने एक तरफ सत्ता से निरंतर बढ़ने वाली दूरी है और दूसरी तरफ किसी भी हालत में नरेंद्र मोदी को रोक सकने की चुनौती ,जिसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। यही कारन है की पार्टी के रणनीतिकारों को लगाने लगा है कि केवल ढाई सौ सीटें अपने पास रख कर बाकी सभी सीटें उन पार्टियों के लिए छोड़ देनी चाहिए जो उन स्थानों पर मोदी के प्रत्याशी को हारने की क्षमता रखती हों।
मोदी को रखने के अभियान में सबसे बड़ी भूमिका
देश में नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए जो अभियान चल रहा है उसमे कांग्रेस बड़ी भूमिका में है। ऐसे में सर्वाधिक कुर्बानी भी वही देगी , ऐसा लग रहा है। हलाकि पार्टी के मीडिया विभाग के राष्ट्रीय प्रमुख रणदीपसिंह सुरजेवाला कहते हैं कि कांग्रेस में गठबंधन का निर्णय करने के लिए एके एंटनी कमेटी है। राज्य की परिस्थिति के आधार पर मजबूत विकल्प कैसे बनें, इसके लिए निर्णय लिया जाएगा। कांग्रेस अपने हितों की कुर्बानी नहीं देगी, लेकिन विपक्षी एकता के लिए हाथ से हाथ मिलाकर लड़ने को तैयार है। इस समय जो हालात हैं उनमे कांग्रेस की ओर से फिलहाल केवल ढाई सौ सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत मिल रहे हैं। ऐसा महागठबंधन के जरिए मोदी को रोकने के लिए किया जा सकता है। पार्टी ने महागठबंधन का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। इस पर स्थानीय स्तर की रिपोर्ट्स आने के बाद एंटनी कमेटी, कांग्रेस अध्यक्ष की सलाह से अंतिम निर्णय लेगी।
जहां जीती वे 44 सीटें किसी ,वहां किसी से गठबंधन नहीं
कांग्रेस की रणनीति के मुताबिक वह पिछले लोकसभा चुनाव में जीती 44 सीटें किसी को नहीं देगी। बाकी सीटों को वह गठबंधन में रखेगी, लेकिन उन 224 सीटों पर चुनाव लड़ने का जोर लगाएगी, जहां वह दूसरे नंबर पर रही थी। इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य शामिल हैं। यहां भाजपा के खिलाफ वही अकेली बड़ी पार्टी है। अगर गठबंधन में कहीं दिक्कत आती है, तो क्षेत्रीय दलों को विधानसभा में ज्यादा सीटें देकर लोकसभा 2019 के लिए समझौते को अंजाम दिया जा सकता है। कांग्रेस इसी महीने राज्यवार कमेटियां बनाने जा रही है। कमेटियां क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन को लेकर मोल-भाव करेंगी। 11 राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस छोटे-बड़े 21 क्षेत्रीय दलों से गठबंधन को तैयार है।
आठ राज्यों में कहां-किसका साथ
प. बंगाल में कांग्रेस चौथे स्थान पर है। तृणमूल तो साथ रहेगी। 27.59% वोट वाली लेफ्ट भी साथ आए, यह मुश्किल है। कर्नाटक में अब कांग्रेस-जेडीएस साथ हैं। बीएसपी भी साथ रहेगी। आंध्र-तेलंगाना में टीडीपी अब भाजपा से अलग है। टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के वोट महागठबंधन में शामिल किए गए हैं। असम में कांग्रेस अगर एआईयूडीएफ से गठबंधन कर लेती है, तो ही चुनौती देगी। महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना अलग हुए, तो ही महागठबंधन के लिए उम्मीद बनेगी। तमिलनाडु में भाजपा-अन्नाद्रमुक साथ दिख रही हैं। मगर अन्नाद्रमुक के कई धड़ों में बंटा होने की वजह से यहां डीएमके और अन्य दलों को फायदा हो सकता है। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस, एनसी, बीएसपी का तालमेल भी भाजपा-पीडीपी गठजोड़ को चुनौती देता दिखाई नहीं दे रहा। ओडिशा में सत्ताधारी बीजू जनता दल किसी पाले में नहीं है। भाजपा उसे साथ लाने की कोशिश कर सकती है। इसलिए यहां किसे फायदा हो सकता है, फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
11 अहम राज्यों की 374 सीटों का ‘गठबंधन गणित’
राज्य सीटें एनडीए महागठबंधन बढ़त
उत्तर प्रदेश 80 42.65% 50.51% महागठबंधन
प. बंगाल 42 17.02% 49.37% महागठबंधन
कर्नाटक 28 43.37% 53.08% महागठबंधन
आंध्र-तेलंगाना 42 8.52% 56.57%* महागठबंधन
असम 14 42.94% 44.88% महागठबंधन
बिहार 40 51.52% 32.41% एनडीए
झारखंड 14 44.48% 37.91% एनडीए
महाराष्ट्र 48 48.38% 38.65% एनडीए
तमिलनाडु 39 50.48% 33.47% एनडीए
जम्मू-कश्मीर 6 53.37% 42.14% एनडीए
ओडिशा 21 21.88% 27.41% साफ नहीं
- एनडीए तथा महागठबंधन का वोट प्रतिशत, 2014 के आम चुनाव के अनुसार।
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