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आपातकाल की ज्यादती पाठ्यक्रम का हिस्सा बने : उपराष्ट्रपति
नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने सोमवार को यहां कहा कि यह समय आपातकाल के अंधेरे युग को पाठ्यक्रम का एक हिस्सा बनाने का है, ताकि युवाओं को लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का महत्व पता चल सके। नायडू ने कहा कि आपातकाल का महत्वपूर्ण सबक यह है कि यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह अपने साथी नागरिक की आजादी बनाए रखे और असहिष्णुता को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
किताब 'आपातकाल : भारतीय लोकतंत्र का अंधेरा समय' के हिंदी, कन्नड़, तेलुगू व गुजराती संस्करणों के विमोचन के मौके पर नायडू ने कहा, "यह समय आपातकाल के अंधेरे युग को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने का है, ताकि मौजूदा पीढ़ी को 1975-77 की भयावह घटनाओं के प्रति संवेदनशील किया जा सके और उन्हें लोकतंत्र के महत्व व निजी स्वतंत्रता का महत्व पता चल सके, जिसका वे आज आनंद ले रहे हैं।"
उन्होंने कहा, "हमारी इतिहास की किताबें और पाठ्यपुस्तक मध्ययुगीन अंधेरे दिनों और ब्रिटिश राज की बातें करती हैं, जबकि आपातकाल के गलत कारणों व परिणामों से सीख लेने के लिए इसे हिस्सा नहीं बनाया गया है।"
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को आपातकाल लागू किया था और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था। वर्ष 1977 के आम चुनाव के साथ ही आपातकाल हटा लिया गया था।
नायडू ने आरोप लगाया कि सर्वोच्च न्यायालय भी एक मूक पक्ष बन गया और उसने कुछ लोगों को कानून से ऊपर रख दिया।
उन्होंने कहा, "यह केवल न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना थे, जिन्होंने सरकार के रुख से अलग जाने की हिम्मत की.. और उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत का संविधान और कानून जीवन और आजादी को सरकार की पूर्ण शक्ति की दया पर छोड़ने की अनुमति नहीं देता है।"
नायडू ने कहा, "उन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज की कीमत भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद गंवाकर चुकाई। मैं उन्हें दूसरे स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में से एक मानता हूं। दूसरे इंडियन एक्सप्रेस के रामनाथ गोयनका हैं।"
--आईएएनएस
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