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सेना मुख्यालय ने जारी किया फरमान, हर यूनिट लड़ाकू कैडर जैसी
विशेष संवाददाता
नई दिल्ली: सेना मुख्यालय ने स्पष्ट किया है, कि देश की सेना में काम करने वाला कोई भी जवान या अधिकारी इस बात का बहाना नहीं बना सकता, कि उसके काम की प्रकृति चूंकि गैर लड़ाकू कैडर में आती है इसलिए वह दुर्गम या युद्ध क्षेत्रों में ड्यूटी नहीं करेगा।
सेना की ओर से इस भ्रांति को मिटाते हुए स्पष्ट किया गया, कि सेना में सभी तरह की सेवाओं को लड़ाकू कैडर माना जाता है। इसलिए यह कहना गलत है कि कोई कैडर गैर लड़ाकू कैडर में आता है तो उसमें काम करने वाले लोगों को फील्ड ड्यूटी पर नहीं भेजा जा सकता। सेना सूत्रों का कहना है, कि पिछले दिनों संपन्न कमांडर कॉन्फ्रेंस में सेना सेवा कोर की ओर से आए इस प्रतिरोध पर चर्चा हुई थी। जिसमें गैर लड़ाकू कैडर वाले सैन्य कर्मचारियों ने सुदूर क्षेत्रों में तैनाती का विरोध किया था।
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यह मसला कानूनी दांव-पेंचों का भी सबब बना
सेना के लिए कई बार यह मसला गहरे कानूनी दांव-पेंचों का भी सबब बनता रहा है। इसीलिए सेना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में यह बाकायदा शपथ पत्र भी पेश किया गया, कि सेना चाहे युद्ध हो या शांति दोनों में ही अपनी अहम भूमिका निभाती है। सैन्य मुकदमों में मैकेनिकल,इलेक्ट्रॉनिक्स, आर्डिनेंस के सैन्यकर्मियों का तर्क होता है कि चूंकि उनका काम सैन्य ऑपरेशनों या युद्ध में भाग लेना नहीं है इसलिए उनको इस तरह की दुर्गम तैनातियां दिया जाना गलत है।
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...ताकि वे भी किसी क्षण हमले का जवाब दे सकें
सेना ने आगे कहा है, कि 'लाईन ऑफ कंट्रोल में कम गति की मुठभेड़ें, घुसपैठ की घटनाएं लगातार होती रहती हैं। इसलिए उन स्थानों पर बड़ी तादाद में अधिकारियों, जूनियर कमीशंड अधिकारियों, सेना के साजो-सामान से जुड़ी यूनिटों के जवानों को सेवा अवधि की एक निश्चित समयावधि वहां गुजारनी होती है। ऐसी सूरत में इन क्षेत्रों में तैनात जवानों को लड़ाकू सेना की तरह युद्ध लड़ने का पूरा प्रशिक्षण प्राप्त होता है, ताकि वे किसी भी क्षण किसी अप्रत्याशित हमले का जवाब दे सकें।'
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इन अधिकारियों को भी मिलता है प्रशिक्षण
ज्ञात रहे, कि सेना में मेडिकल कोर के अलावा न्यायिक सेवाओं के अधिकारियों यानि जज, एडवोकेट जनरल सेवा के अधिकारियों को भी प्रशिक्षण के दौरान युद्ध की सूरत में हथियार चलाने का पूरा प्रशिक्षण दिया जाता है।
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