क्या यह मायावती की अपने सियासी वजूद बचाने की आखिरी कोशिश है?

aman
By aman
Published on: 18 July 2017 8:58 PM IST
क्या यह मायावती की अपने सियासी वजूद बचाने की आखिरी कोशिश है?
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योगेश मिश्र

लखनऊ: अपने छीझते जनाधार को बचाने की यह मायावती की अंतिम कोशिश है। दलितों के साथ उत्तर प्रदेश में जुल्म और ज्यादती के सवाल पर राज्यसभा से अपने इस्तीफे के मार्फत अपने मतदाताओं को सहेजने का उनका यह एक नया फार्मूला है।

हालांकि, उनका फार्मूला कितना काम आएगा या फिर सधी हुई इस चाल का 'टाइम स्ट्रोक' है या नहीं यह चुनाव बताएगा, पर रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के बाद से मायावती के लिए जो दिक्कत नरेंद्र मोदी ने खड़ी की थी, उनके इस्तीफे ने गहराई से उसके असर को बयान कर दिया है।

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पुराना पड़ा सहारनपुर कांड

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर इलाके में दलित ठाकुर संघर्ष की कहानी पुरानी पड़ गई। मौका-ए-वारदात पर न जाने की अपनी आदत के ठीक उलट वह सहारनपुर गईं। उनके सहारनपुर जाने से दलितों का मनोबल तो बढ़ा, पर जिस तरह भीम आर्मी के साथ बसपा के रिश्तों को खारिज किया गया, उससे दो कदम आगे चलकर 4 कदम पीछे आ गईं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर को छोड़ दलित और सवर्ण अथवा ओबीसी के बीच कोई बड़ी वारदात सामने नहीं आई है। ऐसे में मायावती का राज्यसभा में यह कहना, कि 'उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ जुल्म और ज्यादती हो रही है।' इस मुद्दे पर उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है। इसलिए वह इस्तीफा दे रही हैं। उतना जायज नहीं जितना वह साबित करना चाह रही हैं।

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हैरत में डालता है फैसला

मायावती के राजनैतिक शैली के जानकारों के लिए जरूर उनका इस्तीफा हैरतंगेज फैसला है। मायावती के लिए सदन से बाहर रह पाना बेहद मुश्किल काम है। एक ऐसे समय उनकी पार्टी का लोकसभा में खाता न खुला हो, राज्यसभा में वह मजबूत न हों, तब मायावती ने राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर जिस तरह अपने मतदाताओं को सहेजने की दिशा में कदम बढ़ाया है वह फलीभूत होता इसलिए नहीं दिख रहा है कि मायावती जमीनी सियासत नहीं करती हैं। उन्हें असुरक्षा का बोध इतना है कि जमीनी सियासत से वह खुद को दूर रखती हैं।

'कास्ट केमिस्ट्री' और 'ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स' उनकी राजनीति का खाद-पानी है। भारतीय लोकतंत्र ने जिन भी नेताओं ने किसी भी सदन की सदस्यता छोड़ी, उन्हें जनता के बीच जाना पड़ा है। मायावती जनता के बीच सिर्फ

चुनावी रैलियों में होती हैं।

मोदी ने लगाई सियासत में सेंध

मायावती का कार्यकाल अगले साल अप्रैल में खत्म हो रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में उनके महज 19 सदस्य हैं ऐसे में विधान परिषद अथवा राज्यसभा में अपनी पार्टी के बूते जाने के उनके रास्ते बंद हो गये। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर नरेंद्र मोदी ने दलित वोटों की इकलौती थाती वाली मायावती की सियासत में सेंध लगा दी है। जाटव और गैरजाटव वोटों के बीच विभाजन रेखा दिखने लगी है। कोविंद कोरी जाति के हैं। वाल्मीकी धानुक मतदाताओं का सॉफ्ट कार्नर पहले भी बीजेपी के साथ रहा है। मायावती को कमजोर होते देख गैरजाटव वोट बीजेपी की ओर देखने को तैयार हो सकते हैं। मायावती के लिए इन्हें सहेजना बड़ा काम है।

कभी नहीं की इस तरह राजनीति

दलित के सवाल पर इस्तीफा देकर वह नरेंद्र मोदी द्वारा उनके वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश का जवाब दे सकती हैं। हालांकि, सदन से बाहर रहकर मायावती ने अब तक कभी राजनीति नहीं की है। जब कांशीराम ने उन्हें बिजनौर से चुनाव मैदान में उतारा था, उसके बाद से वह चुनाव लड़ने की जगह पिछले दरवाजे से सदन में बने रहना जरूरी समझती रही हैं।

मायावती की अग्निपरीक्षा

यह मायावती की पहली अग्निपरीक्षा है। निरतंर घट रहे जनाधार को खड़ा करने के लिए वह कौन सी सियासी चालें चलेंगी, यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा। क्योंकि, अब मायावती खुद सियासी अखाड़े से बाहर हैं।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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