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लग जा गले: कड़वाहट भूल चुनाव से पहले साथ आ सकते हैं मुलायम-अजित
लखनऊ एक दो अपवाद को छोड़ दें तो राजनीति में ना कोई स्थाई दोस्त होता है और ना दुश्मन । जी हां यूपी में अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर दो तीन दिन बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह की संभावित मुलाकात के बाद राजनीति के लिए कही गई ये कहावत सही साबित होती है ।
मुलायम और अजित सिंह दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते। दोनों के बीच तकरार की कहानी 1989 में शुरू हुई थी जब कांग्रेस के सपोर्ट से मुलायम यूपी के सीएम बने थे ।अजित सिंह खुद को पिता चरण सिंह का सही उत्तराधिकारी मानते हैं जबकि मुलायम भी ऐसा ही कहते हैं। बस 1989 के बाद से ही दोनों के बीच हेट और लव का खेल चल रहा है। चरण सिंह के 1987 में निधन के बाद से ही दोनों के बीच तकरार बढ़ गई थी।
यूपी के विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों के अध्यक्षों की दिल्ली में होने वाली बैठक काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अभी तक तो ये लग रहा था कि अजित सिंह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ सीटों का तालमेल या गठबंधन करेंगे। कांग्रेस के यूपी के प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री ने भी हाल में ऐसे ही संकेत दिए थे ।
इसी तरह के संकेत अजित सिंह की ओर से भी मिले थे। कुछ महीने पहले तक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यू और अजित सिंह के रालोद के विलय की चर्चा जोरों पर थी। शरद यादव के जनता दल यू के अध्यक्ष रहते इस दिशा में बात आगे बढ़ी थी, लेकिन उनके हटते ही बात शुरुआती दौर तक ही सीमित रह गई।
रालोद का मजबूत किला पश्चिमी यूपी का जाट बेल्ट है, जो अजित सिंह को पिता चरण सिंह से विरासत में मिला है। रालोद की यहां अच्छी पकड़ भी है। ये और बात है कि लोकसभा के पिछले चुनाव में रालोद के हाथ कुछ नहीं लगा था और बागपत सीट से अजित सिंह खुद चुनाव हार गए थे। विधानसभा के 2012 में हुए चुनाव में रालोद को 9 सीटें मिली थीं। वर्तमान में रालोद के यूपी विधानसभा में आठ सदस्य हैं। अजित भले ही चुनाव हार गए थे, लेकिन जाट बेल्ट में वो बड़ी ताकत हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।
सपा और रालोद के अध्यक्षों की बातचीत में विधानसभा के अगले चुनाव में दोनों दल अपना फायदा देख रहे हैं। विधानसभा का 2012 का चुनाव जीतने के बावजूद सपा को पश्चिमी यूपी में कोई खास सीटें नहीं मिली थी। सपा को पश्चिमी यूपी से कम सीटें मिली थीं। मुलायम चाहते हैं कि विधानसभा के अगले चुनाव में जाट वोट पार्टी को मिले जो आजतक कभी नहीं मिला है ।
साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे का फायदा बीजेपी लोकसभा के 2014 के चुनाव में उठा चुकी है ।
इसके अलावा मुजफ्फरनगर और देवबंद में हुए विधानसभा के उपचुनाव में भी बीजेपी और अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस जीत गई। सपा ने जीतने के लिए पूरा जोर लगाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। हाल में आए चुनाव सर्वे ने भी मुलायम को सतर्क कर दिया है। राज्य की खुफिया एजेंसी और एक खबरिया चैनल के आए सर्वे में सपा को तीसरे स्थान पर दिखाया गया है। मुलायम ये भी नहीं चाहते कि रालोद का कोई चुनावी समझौता कांग्रेस के साथ हो ताकि इसका फायदा उस पार्टी को मिले।
यूपी के विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों के अध्यक्षों की दिल्ली में होने वाली बैठक काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। अभी तक तो ये लग रहा था कि अजित सिंह विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ सीटों का तालमेल या गठबंधन करेंगे। कांग्रेस के यूपी के प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री ने भी हाल में ऐसे ही संकेत दिए थे। इसीतरह के संकेत अजित सिंह की ओर से भी मिले थे।
कुछ महीने पहले तक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जनतादल यू और अजित सिंह के रालोद के विलय की चर्चा जोरों पर थी। शरद यादव के जनतादल यू के अध्यक्ष रहते इस दिशा में बात आगे बढ़ी थी, लेकिन उनके हटते ही बात शुरुआती दौर तक ही सीमित रह गई।
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