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गोरखपुर में मासूमों की मौत पर सांसत में योगी आदित्यनाथ सरकार !
संजय तिवारी
लखनऊ : गोरखपुर में मेडिकल कॉलेज में बच्चो की लगातार मौतों ने उतर प्रदेश सरकार के होश उड़ा दिए हैं। पिछले साल तक गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के मुद्दों को लेकर संसद में लंबे-लंबे भाषण देने वाले योगी आदित्यनाथ आज खुद मुख्यमंत्री हैं। लेकिन वह खुद पूरे मामले में बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं, वह आश्चार्यचकित करने वाला है। यह हकीकत है कि गोरखपुर मेडिकल कॉलेज की दुर्दशा और यहां इंसिफेलाइटिस के समस्या को लेकर खुद योगी ही आवाज़ उठाते रहे हैं लेकिन उन्ही के राज में यह भयावह घटना हो गयी।
जिस ऑक्सीजन की आपूर्ति के मुद्दे पर लापरवाह बता कर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पर कार्रवाई की वह बात कह रहे हैं वही चिट्ठी प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा निदेशक को भी मिली थी। उसने इतनी बड़ी और गंभीर बात दबा ली। यह चिट्ठी तो गोरखपुर के जिलाधिकारी को भी मिली थी। लेकिन उससे किसी प्रकार की पूछताछ तक नहीं हुई। गोरखपुर में सबकुछ लीपने पोतने का जुगाड़ होता रहा और लखनऊ के जिम्मेदार अपने दफ्तरों से भी गायब थे , फिर भी मुख्यमंत्री ने प्रेस को नसीहत दे डाली। वह मीडिया को समझाने पर उतर आये। जिन मौतों को उन्ही की पार्टी के सांसद साक्षी महाराज ने सामूहिक नर संहार बताया , उन मौतों का कारण गन्दगी को बताया जाने लगा। यहाँ तक कि नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने भी इस मामले को नरसंहार की ही संज्ञा दी है।
यह भी विचित्र बात है कि जिस मेडिकल कॉलेज का डॉक्टर खुद ऑक्सीजन की व्यवस्था करता रहा और खूब मेहनत कर कुछ बचाव की कोशिश कर सका , उसकी पूरी कहानी सामने आने के बाद भी बड़ी आसानी से योगी के मंत्रियों ने प्रेस को बता दिया कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई। लेकिन एक सवाल का जवाब कोई नहीं दे पा रहा कि बच्चो की मौतों के गुनहगार आखिर क्यों अकेले प्रिंसिपल बना ? बाकी के गुनाहगारो को कब सजा मिलेगी ?
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इस बीच गोरखपुर के सरकारी बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 60 बच्चों समेत 63 मौतों पर केंद्र ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है।इस बीच नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, "इस मामले पर मेरी नजर है। मैं लगातार केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों से संपर्क में हूं। मोदी ने गोरखपुर मामले पर योगी आदित्यनाथ से फोन पर बात की। ये बात करीब 15 मिनट तक चली। गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला के मुताबिक, 10 अगस्त से अब तक करीब 30 बच्चों की मौत हुई है।
उधर, यूपी के हेल्थ मिनिस्टर सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि 7 अगस्त से अब तक 60 बच्चों की मौत हुई है।
सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा- ''2015 में अगस्त महीने में 668 मौतें हुई, जिसका एवरेज 22 लोग प्रतिदिन है। 2016 के अगस्त महीने में 587 मौतें हुईं, इसका एवरेज 19 प्रतिदिन है। साल भर में भी 17-18 प्रतिदिन मौतें होती हैं। मेडिकल कॉलेज में लोग लास्ट स्टेज में आते हैं। यही कारण है कि किसी भी मेडिकल कॉलेज में डेथ का ये ट्रेंड दिखेगा।.बच्चों की मौतों का मामला सामने आने के बाद बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को यूपी सरकार ने सस्पेंड कर दिया है।हालांकि प्रिंसिपल ने इससे पहले ही इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी।
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, "इस मामले में अब जवाब मांगने की गुंजाइश नहीं है। क्या हुआ, कैसे हुआ.. इसकी जांच की जा रही है। दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।यूपी सरकार ने कहा है कि बच्चों भी मौत ऑक्सीजन सप्लाई में कमी के चलते नहीं हुई। यूपी हेल्थ मिनिस्टर ने सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा, "मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई बंद हुई थी, लेकिन इसकी वजह से बच्चों की मौत नहीं हुई है। मौतों की अलग-अलग वजह है।
गोरखपुर के डीएम ने कहा- डॉक्टरों का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी की चलते कोई मौत नहीं हुई, क्योंकि उनके पास वैकल्पिक व्यवस्था थी। 7 बच्चों की मौत इन्सेफलाइटिस से हुई। इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है। वास्तव में ये वायरल इन्फेक्शन है। गोरखपुर और आसपास के इलाकों में यह समस्या लंबे समय से है। बच्चे इसके ज्यादा शिकार होते हैं। तेज बुखार, दर्द के साथ शरीर पर चकत्ते आ जाते हैं। 25 बच्चों की मौत दूसरी बीमारियों की वजह से होने का भी दावा किया जा रहा है।
ऑक्सीजन सप्लाई रुकने का मामला
समझौते के अनुसार काॅलेज 10 लाख रु. ही उधार कर सकता है। बिल देने के 15 दिन में पेमेंट जरूरी है। पुष्पा सेल्स के 83 लाख रु. बकाया हैं। कंपनी 6 महीने से पैसे मांग रही थी। कंपनी के अधिकारी दीपांकर शर्मा ने चिट्ठी लिख 40 लाख रु. तुरंत मांगे। नहीं मिले तो 4 अगस्त को सप्लाई बंद कर दी। मौतें होने पर एडमिनिस्ट्रेशन ने 22 लाख रु. देने का प्रॉसेस शुरू किया। इस पर कंपनी सप्लाई देने को तैयार हो गई। हालांकि यह सप्लाई शनिवार शाम या रविवार तक ही पहुंचेगी। हालांकि सरकार का कहना है कि प्रिंसिपल 7 तारीख को पेमेंट मिलने की बात कह रहे हैं और डीलर 11 को पेमेंट मिलने की बात कह रहा है। देरी कहां और कैसे हुई, इसकी जांच कराई जा रही है।
सरकार का दावा है कि मेडिकल कॉलेज में मौतों की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं बीमारी है, लेकिन इंटरनल रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार शाम से ही ऑक्सीजन की कमी थी। कोई ठोस बैकअप नहीं था। गुरुवार शाम 7.30 बजे 52 सिलेंडर लगाकर सप्लाई शुरू की गई। रात 1.30 बजे फैजाबाद से 50 सिलेंडर पहुंचे। शुक्रवार सुबह 8.30 बजे फिर जरूरत पड़ी। दोपहर 1.30 बजे गोरखपुर के मोदी फार्मा से 22 सिलेंडर लाए। 4.30 बजे 36 सिलेंडर मंगवाए। फैजाबाद की एक फर्म से 100 सिलेंडर मंगवाए। शुक्रवार सुबह बच्चों को एम्बु बैग से ऑक्सीजन दी जा रही थी। सशस्त्र सुरक्षा बल से भी 10 ऑक्सीजन सिलेंडर मंगवाए गए थे। अस्पताल की रिपोर्ट में मौतों का भी ब्यौरा दिया गया है।
हॉस्पिटल को ऑक्सीजन सिलेंडर पुष्पा सेल्स नाम की कंपनी सप्लाई करती है। इसके यूपी डीलर मनीष भंडारी ने कहा, “मेडिकल कॉलेज पर हमारा 69 लाख रुपए बकाया है। आज (शुक्रवार) 22 लाख का पेमेंट मिला। कल (शनिवार को) 40 लाख और मिलेगा। राजस्थान से एक ट्रक लिक्विड ऑक्सीजन भेजा गया है। ये आज रात (शुक्रवार को) पहुंच जाएगा। 6 महीने से पेमेंट नहीं मिला था। लड़के जाते थे तो दिन भर खड़े रहते थे लेकिन प्रिंसिपल उनसे नहीं मिलते थे। 3 साल पहले कॉन्ट्रैक्ट हुआ था, लेकिन कभी पेमेंट नहीं रुका। इस बार 6 महीने से पेमेंट रुका हुआ है।''
मुख्यमंत्री को क्यों नहीं दी गयी जानकारी ?
9 अगस्त को योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर का दौरा किया था। वे इस अस्पताल भी आए। लेकिन उन्होंने वही देखा जो प्रशासन ने दिखाया। वो सच मुख्यमंत्री नहीं देख पाए जिसे मिटाने के लिए जनता ने उन पर भरोसा किया था। वे नहीं जान पाए कि ऑक्सीजन सप्लाई का पेमेंट महीनों से बकाया है। मुख्यमंत्री ने इस बात को अपनी प्रेस वार्ता में भी कही। आखिर इतनी गंभीर दशा को मुख्यमंत्री से छिपाने की वजह क्या थी ?
बेबसी की दो कहानियां...
सीओ के पैर पकड़ बोली मां- साहब, बॉडी दिला दो
मेडिकल कॉलेज में एक के बाद एक लगातार हो रहीं मौतों के बीच हर ओर बेबसी का आलम था। यहां 9 दिन के एक बच्चे की भी मौत हुई। जब पिता ने बॉडी मांगी तो कहा गया कि अधिकारियों के जाने के बाद देंगे। इसी बीच, बच्चे की मां ने सीओ रचना मिश्रा के पैर पकड़कर कहा, 'साहब, बच्चा तो मर गया। अब उसकी बॉडी तो दिला दो।' बच्चे के पिता नंदलाल ने कहा, 'ऑक्सीजन की कमी से 9 दिन के बाद मेरा बच्चा मर गया।' करीब 4 घंटे बाद सीओ के कहने पर उन्हें बॉडी मिली।
दोस्त डॉक्टर्स से सिलेंडर लाते रहे डॉ. कफील
ऑक्सीजन संकट के बीच कुछ डॉक्टर भी दिन-रात जूझते रहे। रात 2.00 बजे इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी डॉ. कफील खान अस्पताल पहुंचे। सुबह 7.00 बजे तक जब किसी बड़े अधिकारी और गैस सप्लायर ने फोन नहीं उठाया तो अपनी कार लेकर निकल पड़े। प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर दोस्तों से मदद मांगी। कार से 12 सिलेंडर लाए। फिर एक कर्मचारी की बाइक पर एसएसबी के डीआईजी के पास पहुंचे। वहां से 10 सिलेंडर लाए। सिलेंडर ढोने के लिए एसएसबी ने ट्रक भी भेजा।
चार दशक का अभिशाप
पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के बीच से होकर बहने वाली सरयू नदी के समीपवर्ती गावों में सत्तर के दशक में एक ऐेसी बीमारी ने जन्म लिया, जो न सिर्फ सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए अभिशाप बन गया है. आज भी इस बीमारी ने हज़ारों-हज़ार हंसते खेलते परिवार को पंगु बनाकर रख दिया है. इसका दंश आज भी बीमारी के शिकार हुए सदस्यों के परिजन झेलने को विवश हैं।
बात 1977 की है जब गोरखपुर के मेडिकल कालेज में बुखार से तड़पता एक मरीज़ आया था. ज्वर से उसका शरीर तप रहा था, दिमाग पर गर्मी छिटक रही थी, बदन में थोड़ी अकडऩ थी... और उसकी सोंचने की भी क्षमता क्षींण हो चली थी। चिकित्सकों ने उसे भी आम मरीज़ की ही तरह सामान्य वार्ड में डाल दिया... और शुरू कर दिया रूटीन का इलाज. वक्त गुज़रता गया, मगर मरीज़ की हालत में कोई सुधार तो नहीं आया उल्टे हालत और बिगड़ गई...अन्तत: उसकी मौत को गई. वक्त आगे बढ़ा तो ऐसे मरीज़ों की तादाद भी बढऩे लगी ,लक्षण सभी का एक जैसा. लेकिन दवाएं थीं कि असर करने का नाम तक नहीं ले रही थीं।
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मौत का सिलसिला बढऩे लगा। इससे चिकित्सा जगत में घबराहट आ गई... फिर शुरू हुई जांच और शोध. फलत: इसमें जब एण्टी वायरस मिले तो फिर नज़ऱ में आई एक नई बामारी, जिसे नाम दिया गया दिमा$गी बुखार. समय का चक्र बढ़ा तो चिकित्सा जगत में इसे इंसेफेलाइटिस...और फिर जापानी इंसेफेलाइटिस का नाम दे दिया गया. जांच और शेाध का सिलसिला अब भी जारी है. सरकारों का भी ध्यान इस ओर है. दौरे पर दौरे चलते रहते हैं पर नहीं थम रहा है तो बस इंसेफेलाइटिस के मरीजों के आने का सिलसिला...और नहीं लगा तो उससे हो रही मौतों पर विराम।
चार दशक से पूर्वांचलवासी इसी बीमारी के दहशत के साये में जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत पश्चिमी बिहार और नेपाल तक में इसकी साया से लोग दहशतज़दा हैं. पर मर्ज है कि थमने का नाम तक नहीं ले रही है।
इसकी वजह क्या है?
वाकई में इस बुखार के फैलने का मुख्य कारक सुअर है. सुअरों में पाए जाने वाले आरबो वायरस इस बुखार का प्रमुख वजह है. जब किसी सुअर को क्यूलेक्स मच्छर काटता है तो वह सुअर आरबो वायरस के कारण इस बुखार से पीडि़त हो जाता है. जब क्यूलेक्स मच्छर में आरबो नामक वायरस जाता है और यह मच्छर जब किसी को काटते हैं तो वह जेई अर्थात जापानी इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी से पीडि़त हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि यह बीमारी ब्रेन के थैलसम को प्रभावित करती है जिसके कारण इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है।
दिमागी बुखार के दौरान मरीज की याददाश्त तक जाने का खतरा रहता है. इसके अलावा कोमा में जाना, आवाज बंद हो जाना, लकवा मार जाना, लिस्म के एक हिस्से में कंपन शुरू हो जाना आदि जैसे लक्षण पैदा हो जाते हैं. इतना ही नहीं दिमागी बुखार से जान तक जा सकती है. वाकई में दिमागी बुखार के दौरान अचानक मिर्गी के दौरे की ही तरह झटका लगता है और अचानक बुखार बहुत बढ़ जाता है।
. दिमागी बुखार के लिए हालांकि अब तक कोई ठोस इलाज मौजूद नहीं है लेकिन उसका निदान संभव है.साफ सफाई के साथ ही दिमागी बुखार को लेकर अवाम में पैदा जागरुकता व इसके प्रति गंभीरता बरतने से ही दिमागी बुखार से बचाव संभव है.जापान से आए एक वैक्टीरिया ने पूरब का चैन छीन लिया, इसीलिए इसे जापानी इंसेफेलाइटिस के नाम से जाना गया. इस मामले में डा.गजेन्द्र बहादुर सिंह सरकारी के नाम को नहीं भुलाया जा सकता।
जिन्होंने इस बीमारी को अन्तर्राष्टï्रीय स्तर पर पहुंचाने का काम उस दौर में किया था.तब जाकर उत्तर भारत में फैली इस महामारी पर समूचा अमला जागृत हुआ... और फिर खोज शुरू हुई इंसेफेलाइटिस और जापानी बुखार के बैक्टीरिया की. लेकिन इसमें समय दर समय लगता गया... और होती रहीं अकाल मौतें. जो आज भी जारी है. हालांकि शासनस्तर पर इस पर बहुत काम हुआ है. गोरखपुर मेडिकल कालेज में 100 शय्या वाला इंसेफेलाइटिस वार्ड स्थापित किये जाने के साथ ही यहंा जांच व रिसर्च सेंटर खोले गए हैं. हम काफी आगे भी बढ़े हैं...पर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
उत्तर प्रदेश ही नहीं पूरे देश में है इसका प्रभाव
भले ही जापानी बुखार और इंसेफेलाइटिस के प्रभाव का केन्द्र बिन्दु पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र समेत पश्चिमी बिहार और पड़ोसी मुल्क नेपाल हो लेकिन उसका प्रभाव पूरे देश में देखने को मिला है. इन प्रदेशों में मौतें भी कम नहीं हुईं. जापानी बुखार का प्रभाव असम और पश्चिम बंगाल से लेकर दिल्ली होते हुए गोवा तक देखने को मिला है. इन प्रदेशों में पिछले 38 वर्षों के दौरान मौतें भी कम नहीं हुईं. यदि इंसेफेलाइटिस के मामले में पूरे देेश पर नज़र दौड़ाई जाये तो पता चलता है कि दिमागी बुखार से हर साल औसतन एक हज़ार मौतें हो जाती हैं, जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस से दो सौ से तीन सौ मौतें हो जाती हैं. स्वास्थ्य विभाग इस मामले में अपने आप को लाचार पा रहा है।
दुखद स्थिति तो यह है कि देश की राजधानी दिल्ली में वर्ष 2011 में इंसेफेलाइटिस के 18 मामले नज़र में आए थे, तब स्वास्थ्य विभाग के होश उड़ गए. अब यहां इस पर कंट्रोल पा लिया गया है.गोवा में भी इस बीमारी का प्रभाव है, मौतें भी हो चुकी हैं. उत्तर प्रदेश, असम और बिहार ऐसे प्रदेश हैं जहां इसकी वीभत्स छाया अब भी कायम है...और मंज़र अब भी नज़र आते हैं. पिछले 38 वर्ष से अपना रौद्र रूप दिखाने वाले इंसेफेलाइटिस से पूरा इलाका अब भी दहशतज़दा है, हालत यह है कि अब भी कई गांव दहशत और वीरानी के साये में जीने को विवश हैं. मरने का सिलसिला अब भी नहीं थमा है...और हर वर्ष हो जाती है सैकड़ो मौतें. इस वर्ष इंसेफेलाइटिस और जापानी बुखार से प्रभावित जनवरी माह से अब तक 305 मरीज गोरखपुर मेडिकल कालेज में दाखिल हो चुके हैं. इनमें से 82 की मौत तक हो चुकी है. मरने वालों में 67 बच्चे शामिल हैं. 242 बच्चे मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग में भर्ती हुए थे।
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अब यदि वार्षिक आंकड़े पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि इसका सर्वाधिक प्रभाव उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में देखने को मिला है. यहंा हर वर्ष तीन हज़ार से चार हज़ार के बीच जापानी बुखार और इंसेफेलाइटिस प्रभावित मरीज विभिन्न अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में दाखिल हुए जिनमें से सात सौ से एक हज़ार के बीच मौतें हो गईं. यहां वर्ष 2008 में दिमागी बुखार के 3012 मरीज आए, जिनमें से 537 की मौत हो गई जबकि इंसेफेलाइटिस प्रभावित 193 मरीजों में से 36 मरे. 2009 में दिमागी बुखार से 3073 प्रभावित हुये इनमें से 556 की मौत हो गई, इस वर्ष इंसेफेलाइटिस के 302 मरीजों में से पचास की मौत हो गई. 2010 में दिमागी बुखार प्रभावित 3540 मरीज अस्पताल में भर्ती हुए जिनमें से 494 की मौत हो हुई।
इस वर्ष इंसेफेलाइटिस ने प्रभावित 325 मरीजों में से 59 को लील लिया. 2011 में दिमागी बुखार से प्रभवित 3492 मरीजों में से 579 की मौत हो गई वहीं इंसेफेलाइटिस के 224 में से 27 ने इस दुनिया को अलविदा कहा. यदि 2012 की बात करें तो पता चलता है कि दिमागी बुखार प्रभावित 3401 मरीज आए जिनमें से 525 की मौत हो गई. इसी प्रकार इंसेफेलाइटिस प्रभावित 134 मरीजों में से 23 ने दुनिया से कूच किया. वर्ष 2013 में दिमागी बुखार के 3712 मरीजों में से 701 की मौत हो गई. वहीं इंसेफेलाइटिस प्रभावित 213 में से 156 मरे।
बीते वर्ष 2014 में दिमागी बुखार के 3368 मरीजों में से 563 ने दुनिया से कूच किया, जबकि इंसेफेलाइटिस के 196 प्रभावित मरीजों में से 86 की मौत हो गर्ई. इस वर्ष अब भी मरीजों के आने का सिलसिला जारी है।
जल जनित बीमारी है एईएस : डा. कुशवाहा
गोरखपुर मेडिकल कालेज के पूर्व प्राचार्य, बाल रोग विशेषज्ञ और इंसेफेलाइटिस जैसे मर्ज पर शोध करने वाले डा. केपी कुशवाहा कहते हैं कि जिसे लोग इंसेफेलाइटिस का नाम देते हैं वास्तव में वह एईएस अर्थात एण्टी इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी जल जनित बीमारी मानते हुए कहते हैं कि इंसेफेलाइटिस की बीमारी तो कंट्रोल में है, जबसे एण्टी जेई. वैक्सीन लगनी शुरू हुई है यह जानलेवा बीमारी कण्ट्रोल में है. अलबत्ता दिमागी बुखार जल जनित बीमारी है जो कि अशुद्घ जल के सेवन से होती है. इसके लिए ज़रूरत इस बात की है कि पेयजल व्यवस्था को शुद्घ बनाया जाये।
छोटे हैण्ड पम्पों से निकलने वाले पानी का प्रयोग वर्जित किया जाय... इसके साथ ही साथ खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता पैदा की जाए. इंसेफेलाइटिस पर चल रहे शोध भी चले, वैक्सीन भी बने पर जागरुकता भी पैदा किया जाए. बस यही है जापानी इंसेफेलाइटिस और दिमागी बुखार से बचाव के सही तरीके। उन्होंने बताया कि अवाम में इसके प्रति जागरुकता पैदा करके ही इंसेफेलाइटिस और दिमागी बुखार को दूर भगाया जासकता है. साफ सफाई रखना और गंदगी से दूर रहकर इस बीमारी से बचा जा सकता है.
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