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Bharat Ka Akhiri Hindu Raja: भारत के आखिरी हिंदू सम्राट "हेमचंद्र विक्रमादित्य" की कहानी

Bharat Ka Akhiri Hindu Raja: हेमचंद्र विक्रमादित्य भारत के आखरी हिंदू शासक थे जिन्होंने मुगलों के खिलाफ संघर्ष कर दिल्ली काबिज की थी। हेमचंद्र विक्रमादित्य ने आदिल शाह के लिए कुल 22 युद्धों में विजय हासिल की थी।

Shivani Jawanjal
Written By Shivani Jawanjal
Published on: 27 Jan 2025 7:33 PM IST
Bharat Ka Akhiri Hindu Raja Hemchandra Vikramaditya Life History
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Bharat Ka Akhiri Hindu Raja Hemchandra Vikramaditya Life History (Photo Credit - Social Media) 

History Of Hemchandra Vikramaditya In Hindi: हेमू(Hemu), जिन्हें ‘हेमचंद्र विक्रमादित्य’(Hemchandra Vikramaditya) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण लेकिन कम चर्चित योद्धा और शासक थे। वे 16वीं शताब्दी के दौरान मुगल साम्राज्य और अफगान वंशों के बीच सत्ता संघर्ष के समय प्रमुखता में आए। साधारण परिवार में जन्मे हेमचंद्र विक्रमादित्य ने अपनी बुद्धिमत्ता, रणनीतिक कौशल और नेतृत्व के बल पर आदिल शाह के शासनकाल में मुख्यमंत्री और सेनापति के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने आदिल शाह के लिए 22 युद्ध जीते, जिनमें पंजाब से लेकर बंगाल तक के युद्ध शामिल थे। वे न केवल एक सक्षम सेनापति थे, बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे। हेमू ने दिल्ली पर कब्जा कर "विक्रमादित्य" की उपाधि ग्रहण की। और इसतरह भारत के इस आखरी हिंदू शासक ने हेमू से हेमचंद्र विक्रमादित्य का सफर तय किया। पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमचंद्र विक्रमादित्य की मृत्यु के साथ भारत के आखरी हिंदू राजा, ‘हेमू’ की सत्ता का अंत हो गया। हेमचंद्र विक्रमादित्य भारतीय इतिहास में उस समय के प्रतीक हैं जब हिंदू शासकों ने बाहरी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष किया।

इस लेख के माध्यम से हम भारत के इस आखरी हिंदू शासक के जीवन का वर्णन करेंगे।

हेमचंद्र विक्रमादित्य का प्रारंभिक जीवन

राजा हेमचंद्र विक्रमादित्य के प्रारंभिक जीवन का विवरण ऐतिहासिक रूप से स्पष्ट नहीं है तथा इसमें काफी अटकलें भी शामिल हैं।

हेमचंद्र विक्रमादित्य का जन्म 1501 में राजस्थान के अलवर जिले में एक धूसर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके जीवन की शुरुआत एक साधारण धार्मिक पृष्ठभूमि से हुई थी, लेकिन बाद में उन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी अलग पहचान बनाई। उनके पिता का नाम पूरन दास था जो एक धार्मिक व्यक्ति और पुरोहित (पुजारी) थे। पूरन दास ने बाद में संन्यास ले लिया और वल्लभ संप्रदाय के प्रसिद्ध संत हरिवंश के साथ रहने के लिए वृंदावन चले गए।


बेहतर जीवनशैली की तलाश में हेमचंद्र विक्रमादित्य अपने परिवार सहित रेवाड़ी (वर्त्तमान हरियाणा) के कुतुबपुर नामक धूसर ब्राम्हणों के गावं में बस गए।यही उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। हेमू को हिंदी, संस्कृत, फ़ारसी और अरबी भाषा का ज्ञान था।तथा वे बचपन में कुश्ती और घुड़सवारी के भी शौक़ीन थे।

रेवाड़ी में रहते हुए हेमचंद्र विक्रमादित्य ने शेरशाह सूरी की सेना के लिए रसद तथा बारूद की आपूर्ति करने का काम शुरू किया।१५४५ में शेर शाह सूरी की मृत्यु के बाद, उनके पुत्र इस्लाम शाह सूरी साम्राज्य के शासक बने और उन्होंने हेमू की प्रशासनिक और सैन्य क्षमताओं को पहचानते हुए, उन्हें खुफिया प्रमुख और डाक अधीक्षक के तौर पर नियुक्त किया।इसी दौरान हेमू ने दिल्ली में बाज़ार के अधीक्षक के तौर पर भी कार्य किया । कहा ये भी जाता है, इस दौरान उन्होंने शाही रसोई के सर्वेक्षक के रूप में भी नियुक्त किया गया।

हेमू से प्रभावित इस्लाम शाह ने हेमचंद्र विक्रमादित्य को उच्च पदस्थ अधिकारी के बराबर जिम्मेदारियां सौपते हुए उन्हें मनकोट के पड़ोस में हुमायूँ के सौतेले भाई कामरान मिर्जा की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए भेजा । इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद,उनका पुत्र 12 वर्षीय पुत्र फिरोज खान शासक बना लेकिन 3 दिन के भीतर ही आदिल शाह ने उसकी हत्या कर दी।जिसके बाद हेमू ने आदिल शाह के पक्ष में खुद को स्थापित किया। तथा उनकी सैन्य सफलताओं ने उन्हें आदिल शाह का मुख्यमंत्री और राज्य का सामान्य पर्यवेक्षक बना दिया।

साधारण परिवार से शाही सिंहासन तक

आदिल शाह (Aadil Shah)के शासनकाल में मुख्य सलाहकार और सेनापति के तौर पर कार्य करते हुए,हेमचंद्र विक्रमादित्य ने आदिल शाह के लिए कुल 22 युद्धों में विजय हासिल की।इनमें से कई युद्ध उन अफगानों के खिलाफ थे,जिन्होंने आदिल शाह के खिलाफ विद्रोह किया था।इस दौरान हेमू ने कई युद्ध लड़े और उनमे जीत भी हासिल की।हेमू ने बंगाल के सुल्तान मोहम्मद को भी शिकस्त दी।सिंहासन पाने के लिए भारत लौटे हुमायु की आकस्मिक मृत्यु के बाद हेमू ने मुगलों को हराने और दिल्ली पर कब्जा करने का अभियान जारी रखते हुए अकबर को उसके पिता के सिंहासन पर कब्ज़ा करने से रोका।उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और आगरा की ओर बढ़ते हुए विजय हासिल कीं।


हेमू ने आगरा के मजबूत किले को जीत लिया और उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। इस दौरान उन्होंने आगरा के प्रसिद्ध मुगल अधिकारी "खान मीर बक्श" को हराकर क्षेत्र पर कब्जा किया।आगरा पर विजय प्राप्त करने के बाद, हेमू ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। दिल्ली के रक्षा के लिए नियुक्त मुगल अधिकारियों ने लड़ने के बजाय शहर छोड़ दिया। दिल्ली के तुगलकाबाद में हुए युद्ध में हेमू ने मुगल सेना को पराजित कर दिया। इस लड़ाई में लगभग 3,000 सैनिक मारे गए, और बाकी भाग खड़े हुए। 6 अक्टूबर 1556 को, हेमू ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और इसतरह हेमू दिल्ली का नया शासक बन गया।

राजा के रूप में हेमू

तुगलकाबाद में विजय प्राप्ति के बाद हेमू ने दिल्ली पर कब्ज़ा करते हुए स्वतंत्र स्वतंत्र शासन की घोषणा की। उन्होंने सभी अफगान और मुगल कमांडरों की मौजूदगी में पुराना किला में राज्याभिषेक किया और "विक्रमादित्य" या "राजा विक्रमजीत" की ऐतिहासिक उपाधि धारण की। राजा बनने के बाद उन्होंने अपने नाम के सिक्के भी जारी करवाए।


हेमू ने अपनी सेना का पुनर्गठन किया और नए सैनिकों की नियुक्ति की, हालांकि उन्होंने किसी भी अफगान कमांडर को उनके पद से नहीं हटाया। उन्होंने प्रशासनिक व्यवस्थाओं में सुधार किए और कई नई नियुक्तियां कीं। उन्होंने भ्रष्ट अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया और उनके स्थान पर नई, योग्य प्रतिभाओं को तैनात किया। हेमू ने गौ हत्या पूर्णतः प्रतिबंधित किया।इसतरह से मात्र 29 दिन के कार्यकाल में हेमचंद्र विक्रमादित्य ने कई महत्वपूर्ण कार्य किये।

पानीपत(Panipat) की दूसरी लड़ाई और आखरी हिंदू शासक का अंत

दिल्ली पर कब्जा करने के बाद, हेमू ने अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया। हालांकि, मुगल सेना ने हेमू के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। अकबर के हाथों से सत्ता छीन जाने की वजह से बौखलाए बैरम खान ने हेमू के साथ लड़ाई करने का निर्णय लिया और हेमू की सेना को चुनौती दी। जिसके बाद 5 नवंबर 1556 को पानीपत के मैदान में हेमू और मुगलों के बीच निर्णायक युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध के दौरान, संयोगवश एक तीर उनके आंख के पास लगा, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए और बेहोश हो गए। और अचेत अवस्था में ही मुग़ल सेना द्वारा हेमचंद्र विक्रमादित्य को बंदी बना लिया गया। बैरम खान ने निर्णय लिया कि अकबर को "गाजी" (धर्म योद्धा) का खिताब दिलाने के लिए हेमू का सिर अकबर के सामने कटवाया जाए। जिसके बाद बैरम खान ने हेमू का सर उनके धड़ से अलग करते हुए उनकी हत्या कर दी। और इस हत्या के साथ ही, हिंदू शासकों के संघर्ष का अंत हुआ।

भारत का नेपोलियन

हेमू को "भारत का नेपोलियन" कहा जाता है क्योंकि उनकी जीवन यात्रा साधारण शुरुआत से असाधारण सफलता तक की थी। उनकी सैन्य रणनीतियां और नेतृत्व शैली ने उन्हें इतिहास में विशेष स्थान दिलाया।


उन्होंने भारत को बाहरी आक्रमणकारियों से मुक्त करने और एक मजबूत राष्ट्र बनाने का सपना देखा।

विरासत

हेमचंद्र विक्रमादित्य, भारतीय इतिहास के उन योद्धाओं में से एक हैं, जिन्होंने अपने साहस, नेतृत्व, और रणनीतिक कौशल से मुगल साम्राज्य के खिलाफ एक शक्तिशाली चुनौती पेश की। हेमू को भारत के "आखिरी हिंदू सम्राट" के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने दिल्ली की गद्दी पर बैठकर "विक्रमादित्य" की उपाधि धारण की। साथ ही मध्यकालीन भारत में विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गए। पानीपत की दूसरी लड़ाई में उनकी हार के बावजूद, वह अपने सैन्य साहस के लिए हमेशा याद किए जाते हैं। 22 युद्ध जितने वाले इस योद्धा की सैन्य कुशलता ने उन्हें इतिहास के सबसे महान सेनापतियों में स्थान दिलाया।



Shivani Jawanjal

Shivani Jawanjal

Senior Content Writer

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