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Bharat Ke Prachin Vishwavidyalaya: गौरवशाली अतीत की झलक हैं ये भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय, बौद्ध धर्म और शिक्षा की द्वितीय विरासत
Ancient Universities of India: प्राचीन भारत के विश्वविद्यालय न केवल देश के लिए बल्कि विश्व भर के ज्ञान-पिपासुओं के लिए भी प्रकाश-स्तंभ थे।
Ancient Universities Of India (फोटो साभार- सोशल मीडिया)
Ancient Universities Of India: जब हम आधुनिक विश्वविद्यालयों की चमचमाती इमारतों और तकनीकी सुविधाओं की बात करते हैं, तो यह जानकर गर्व होता है कि शिक्षा का यह विशाल वृक्ष भारत की प्राचीन धरती पर ही पनपा था। भारत वह देश है जहां ज्ञान को सर्वोपरि माना गया और "सर्वे भवंतु सुखिनः" जैसी भावना के साथ विद्या दान को जीवन का प्रमुख उद्देश्य समझा गया। प्राचीन भारत के विश्वविद्यालय न केवल देश के लिए बल्कि विश्व भर के ज्ञान-पिपासुओं के लिए भी प्रकाश-स्तंभ थे। आज जब हम शिक्षा के वैश्विक स्वरूप की बात करते हैं, तब हमें अपने उन ऐतिहासिक केंद्रों की ओर भी झांकना चाहिए जिन्होंने हजारों वर्षों पहले ही शिक्षा का सुनहरा अध्याय लिखा था। आइए जानते हैं भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों से जुड़े अतीत के बारे में-
1. तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila University)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्थान: वर्तमान पाकिस्तान का रावलपिंडी ज़िला
स्थापना काल: लगभग 600 ईसा पूर्व
विशेषताएं:
इसे विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है। तक्षशिला विश्वविद्यालय (Takshashila University) प्राचीन भारत का एक अत्यंत प्रसिद्ध और ऐतिहासिक शिक्षण केंद्र था। यह विश्वविद्यालय न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में प्राचीनतम विश्वविद्यालयों में गिना जाता है। यह वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के रावलपिंडी जिले के पास स्थित था। यहां तक्षशिला विश्वविद्यालय से जुड़े मुख्य ऐतिहासिक और शैक्षणिक विवरण दिए जा रहे हैं:-
1. स्थापना और स्थान:-
तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व में मानी जाती है। यह गंधार जनपद का हिस्सा था और आधुनिक तक्षशिला (Taxila) नगर में स्थित था, जो अब पाकिस्तान में है। माना जाता है कि इसकी स्थापना राजा उज्जैन के भरत वंश के समय में हुई थी।
2. प्रमुख शिक्षक और विद्वान:-
आचार्य चाणक्य (कौटिल्य):- मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के गुरु और अर्थशास्त्र के लेखक, यहीं के प्रमुख शिक्षक थे।
पाणिनि:- विश्व प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणाचार्य, जिन्होंने अष्टाध्यायी की रचना की, तक्षशिला के छात्र थे।
चरक:- आयुर्वेदाचार्य और चरक संहिता के लेखक।
जीवक:- भगवान बुद्ध के चिकित्सक, जिन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा यहीं से प्राप्त की।
3. शिक्षा की विशेषताएं:-
यह कोई एक केंद्रीकृत संस्थान नहीं था, बल्कि गुरुकुल-आधारित व्यवस्था पर आधारित था, जहाँ विभिन्न शिक्षक अपने निवास पर छात्रों को पढ़ाते थे। तक्षशिला में कोई औपचारिक “विश्वविद्यालय” भवन नहीं था, परंतु यह ज्ञान का एक विशाल केंद्र था जिसमें विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती थी।
4. पढ़ाए जाने वाले विषय:-
तक्षशिला में विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी, जैसे: वेद, वेदांग, दर्शनशास्त्र, गणित, आयुर्वेद राजनीति और अर्थशास्त्र (राजनीति विज्ञान), युद्ध और शस्त्र-विद्या (Dhanurveda), खगोलशास्त्र, संगीत और कला आदि।
5. प्रवेश प्रक्रिया:-
छात्रों को तक्षशिला में अध्ययन के लिए चयनित किया जाता था। 15-16 वर्ष की आयु में छात्र प्रवेश लेते थे। चयन बहुत कठिन था, केवल योग्य और मेधावी छात्रों को ही प्रवेश मिलता था।
6. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:-
तक्षशिला का नाम यूनानी, चीनी और अन्य प्राचीन यात्रियों के विवरणों में आता है। चीनी यात्री फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी इसका उल्लेख किया है। यह विश्वविद्यालय पूरे मध्य एशिया, चीन और सुदूर पूर्व तक शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
7. पतन और अंत:-
लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी में हूणों के आक्रमण के कारण तक्षशिला विश्वविद्यालय का पतन हो गया। इसके बाद धीरे-धीरे यह शिक्षा केंद्र समाप्त हो गया। इसमें 10,000 से अधिक छात्र और 200 से अधिक शिक्षक हुआ करते थे।
2. नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्थान: बिहार, भारत
स्थापना काल: प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय (5वीं से 12वीं शताब्दी)
विशेषताएं:-
यह विश्वविद्यालय 700 वर्षों तक शिक्षा का केन्द्र बना रहा।
नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) प्राचीन भारत का एक विश्वविख्यात बौद्ध शिक्षा केंद्र था, जिसे आधुनिक काल में पुनः स्थापित किया गया है। यहाँ प्राचीन और आधुनिक दोनों संस्करणों की शिक्षा से जुड़ी तथ्यात्मक जानकारी दी जा रही है:-
1. स्थापना:-
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 450 ई.) ने की थी।
2. स्थान:-
यह वर्तमान बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है।
3. शैक्षिक विशेषताएं:-
यह एक आवासीय विश्वविद्यालय था, जहां लगभग 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे।
यहां बौद्ध धर्म के अलावा चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, तर्कशास्त्र, दर्शन, व्याकरण और वेदों की शिक्षा दी जाती थी।
शिक्षा पद्धति मौखिक एवं संवादात्मक थी।
4. प्रसिद्ध शिक्षक और छात्र:-
धर्मपाल, नागार्जुन, और आर्यदेव जैसे बौद्ध दार्शनिक यहाँ से जुड़े थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) और ई-चिंग (Yijing) ने यहां अध्ययन किया और इसका विस्तृत विवरण दिया।
5. विनाश:-
1193 ई. में बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।
आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय (Modern Nalanda University)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1. स्थापना:-
इसकी स्थापना 2010 में संसद के अधिनियम के माध्यम से हुई थी, और इसका संचालन 2014 में आरंभ हुआ।
2. स्थान:-
यह प्राचीन नालंदा के निकट, राजगीर (बिहार) में स्थित है।
3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग:-
यह एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, जिसमें भारत समेत 17 देशों ने समर्थन दिया है, जिनमें चीन, जापान, थाईलैंड, सिंगापुर आदि शामिल हैं।
4. शैक्षणिक संकाय (Schools):-
School of Historical Studies
School of Ecology and Environment Studies
School of Buddhist Studies, Philosophy and Comparative Religions
School of Languages and Literature
School of International Relations and Peace Studies
School of Management Studies
5. शिक्षा प्रणाली:-
यह शोध आधारित, बहु-विषयक और नवोन्मेषी शिक्षा पर आधारित है। अंग्रेजी भाषा में शिक्षा दी जाती है।
6. प्रवेश प्रक्रिया:-
छात्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवेदन कर सकते हैं।
इसमें इंटरव्यू और शैक्षिक योग्यता के आधार पर प्रवेश होता है।
3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय (Vikramshila University)
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
स्थान:- भागलपुर, बिहार
स्थापना काल:- 8वीं-12वीं शताब्दी (मुख्य रूप से 9वीं से 12वीं सदी तक सक्रिय) (पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा)
विशेषताएं:-
यह विशेष रूप से तंत्र विद्या और बौद्ध शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
यहां 100 से अधिक शिक्षक और लगभग 1000 छात्र पढ़ाई करते थे। विक्रमशिला विश्वविद्यालय (Vikramshila University) प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना 8वीं या 9वीं शताब्दी में पाल वंश के राजा धर्मपाल (शासनकाल: 770–810 ई.) ने की थी। यह विश्वविद्यालय भारत के बिहार राज्य में भागलपुर जिले के अंतर्गत अंतिचक गांव के पास स्थित था।
शिक्षा का माध्यम:- मुख्य रूप से बौद्ध दर्शन (विशेषकर वज्रयान), व्याकरण, तर्कशास्त्र, और अन्य शास्त्र।
प्रसिद्ध आचार्य:- अतिश दीपंकर श्रीज्ञान, जो तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले एक प्रमुख बौद्ध विद्वान थे।
वास्तुकला और संरचना:-
विशाल परिसर में एक केंद्रीय मठ (महाविहार), स्तूप, मंदिर, छात्रावास, व्याख्यान कक्ष और पुस्तकालय थे। खुदाई से प्राप्त अवशेषों में जली हुई ईंटों से बने बड़े स्तूप, मूर्तियां, मिट्टी के पात्र और शिलालेख शामिल हैं।
विनाश:-
12वीं शताब्दी के अंत में, मोहम्मद बख्तियार खिलजी के आक्रमण के दौरान नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया।हाल ही में बिहार सरकार ने अंतीचक गांव में 202.14 एकड़ भूमि पर एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भूमि चिह्नित की है, जिससे इस ऐतिहासिक स्थल का पुनरुद्धार हो सके ।
4. वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi University)
स्थान:- गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में
स्थापना काल:- 6वीं शताब्दी
विशेषताएं:-
वल्लभी विश्वविद्यालय (Vallabhi University) भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन और प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था। यह विश्वविद्यालय आज के गुजरात राज्य के भावनगर जिले के वल्लभीपुर (Vallabhipur) में स्थित था। इसका स्वर्ण युग 6वीं से 8वीं शताब्दी के बीच माना जाता है।
वल्लभी विश्वविद्यालय का इतिहास :-
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
1. स्थापना:- वल्लभी विश्वविद्यालय की स्थापना मैत्रक वंश के शासक कुमारगुप्त I (लगभग 480 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान हुई थी। यह विश्वविद्यालय 6वीं शताब्दी में एक महत्वपूर्ण बौद्ध शिक्षा केंद्र बन गया।
2. शासक और संरक्षण:- मैत्रक वंश के शासकों ने इस विश्वविद्यालय को संरक्षण और आर्थिक सहायता दी। यह संस्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र था।
3. नालंदा के समकालीन:- वल्लभी को नालंदा विश्वविद्यालय का समकक्ष माना जाता है। दोनों ही शिक्षा केंद्र भारत के साथ-साथ विदेशों के छात्रों को भी आकर्षित करते थे।
शिक्षा और अध्ययन:-
1. शिक्षा की विधा:-
यहां धर्मशास्त्र, दर्शनशास्त्र, नीति शास्त्र, व्याकरण, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, ध्यान और तर्कशास्त्र आदि विषय पढ़ाए जाते थे।
विशेष रूप से बौद्ध धर्म (हीनयान संप्रदाय) की शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था।
2. शिक्षक और विद्यार्थी:-
वल्लभी में लगभग 6000 विद्यार्थी और 100 से अधिक शिक्षक हुआ करते थे।
दूर-दूर से विद्वान और छात्र अध्ययन के लिए आते थे, जिसमें भारत के साथ-साथ तिब्बत, चीन, और दक्षिण-पूर्व एशिया के लोग भी शामिल थे।
3. प्रसिद्ध विद्वान:-
चंद्रपाल, गुणमति, शीलभद्र जैसे महान शिक्षक वल्लभी से जुड़े हुए थे।
महत्व और योगदान:-
1. शैक्षिक समृद्धि:- वल्लभी ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में उत्कृष्टता और विद्वत्ता का योगदान दिया। यह भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक था जिसने उच्च शिक्षा का आदर्श प्रस्तुत किया।
2. बौद्ध धर्म का प्रसार:- वल्लभी से अनेक बौद्ध भिक्षु विदेशों में गए और धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया।
3. राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रभाव:- इस विश्वविद्यालय ने गुजरात और पश्चिमी भारत के सांस्कृतिक और शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वल्लभी विश्वविद्यालय का पतन और नष्ट होना एक ऐतिहासिक रहस्य की तरह है, क्योंकि इसके विनाश के बारे में बहुत स्पष्ट या विस्तृत जानकारी नहीं मिलती, लेकिन इतिहासकारों द्वारा कुछ प्रमुख कारणों का अनुमान लगाया गया है:-
1. अरब आक्रमण (8वीं शताब्दी):-
सन् 775 ई. के आसपास, अरब सेनाओं ने सिंध और गुजरात के कुछ भागों पर आक्रमण किया।
इतिहासकार मानते हैं कि मोहम्मद बिन कासिम के उत्तराधिकारियों या अन्य अरब सेनाओं द्वारा वल्लभीपुर पर हमला किया गया था।
इस आक्रमण में वल्लभी नगर और विश्वविद्यालय को भारी क्षति पहुंची, जिससे इसका पतन शुरू हो गया।
2. मैत्रक वंश का अंत:-
वल्लभी विश्वविद्यालय मैत्रक वंश के संरक्षण में फला-फूला।
जब यह वंश कमजोर हुआ या समाप्त हुआ (लगभग 775 ई.), तो विश्वविद्यालय को आर्थिक और प्रशासनिक सहायता मिलनी बंद हो गई। इसके कारण संस्थान धीरे-धीरे कमजोर होता गया और अंततः बंद हो गया।
3. धार्मिक और राजनीतिक अस्थिरता:-
8वीं शताब्दी के बाद भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और धार्मिक संघर्ष बढ़े। बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा और ब्राह्मणवाद या शैव-वैष्णव परंपराएँ फिर से शक्तिशाली होने लगीं। इससे बौद्ध शिक्षा संस्थानों का महत्व घटने लगा, वल्लभी भी इसका शिकार हुआ।
4. प्राकृतिक आपदाएं (संभावित कारण):-
कुछ स्थानीय कथाओं में यह भी उल्लेख मिलता है कि भूकंप या बाढ़ जैसी किसी प्राकृतिक आपदा के कारण भी वल्लभीपुर उजड़ गया हो सकता है।
हालांकि इसका कोई ठोस पुरातात्विक प्रमाण नहीं है।
5. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri University):-
(फोटो साभार- सोशल मीडिया)
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय (Pushpagiri University) का उल्लेख ऐतिहासिक रूप से एक प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालय के रूप में मिलता है, जिसका अस्तित्व वर्तमान आंध्र प्रदेश राज्य के क्षेत्र में माना जाता है, विशेष रूप से श्रीकाकुलम जिले के पास। यह विश्वविद्यालय बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था और उसे नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला आदि जैसे अन्य प्राचीन विश्वविद्यालयों के समकक्ष माना जाता है।
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय का इतिहास:-
1. स्थान– यह विश्वविद्यालय "लंगुला दुर्ग" या "लंगुला कोटा" के पास स्थित माना जाता है, जो आज के आंध्र प्रदेश में आता है।
2. समयकाल– पुष्पगिरी का इतिहास लगभग 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 12वीं शताब्दी ईस्वी तक का माना जाता है।
3. बौद्ध धर्म केंद्र– यह एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा केंद्र था, जहाँ दर्शन, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र आदि की पढ़ाई होती थी।
4. अंतरराष्ट्रीय छात्र- जैसे नालंदा में, यहां भी तिब्बत, चीन, श्रीलंका आदि देशों से छात्र आते थे।
शिक्षा प्रणाली:-
गुरुकुल परंपरा के आधार पर, विद्वान भिक्षु शिष्य बनाते थे।
पुस्तकें ताड़पत्रों पर लिपिबद्ध होती थीं। मौखिक परंपरा का भी बहुत योगदान था।
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय का नष्ट होना:-
1. इस्लामी आक्रमण– 12वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान जब दिल्ली सल्तनत और अन्य इस्लामी आक्रमणकारी दक्षिण भारत तक पहुंचे, तो कई बौद्ध विहारों और शिक्षण संस्थानों को नष्ट किया गया। पुष्पगिरी भी इन्हीं में से एक था।
2. बौद्ध धर्म का पतन– भारत में बौद्ध धर्म धीरे-धीरे ब्राह्मणवाद और भक्ति आंदोलन के चलते कमजोर हुआ, जिससे ऐसे बौद्ध विश्वविद्यालयों को सामाजिक और आर्थिक समर्थन कम मिलने लगा।
3. प्राकृतिक आपदाएं– कुछ विद्वानों का मानना है कि क्षेत्रीय भूकंप या बाढ़ से भी आंशिक रूप से संरचनाएं नष्ट हुईं।
4. भूल और उपेक्षा– मुगलों और फिर अंग्रेजों के समय इस विश्वविद्यालय का कोई पुनरुद्धार नहीं हुआ और यह इतिहास के गर्भ में खो गया।
आधुनिक काल में स्थिति:-
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय के अवशेष अब खंडहरों के रूप में देखे जा सकते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कुछ स्थानों को "Protected Monument" घोषित किया है।
अब वहां कुछ बौद्ध स्तूप और विहारों के अवशेष मिलते हैं।ओडिशा के जाजपुर जिले में स्थित ललितगिरि, रत्नगिरि और उदयगिरि तीनों को मिलाकर एक विशाल बौद्ध शिक्षण केंद्र माना जाता है। इन स्थलों को सामूहिक रूप से "पुष्पगिरि विश्वविद्यालय" का हिस्सा कहा जाता है। ललितगिरि में खुदाई में बौद्ध स्तूप, विहार, और तांत्रिक बौद्ध परंपरा से जुड़ी मूर्तियां मिली हैं।
2006 में ASI ने पुष्पगिरि विश्वविद्यालय की पहचान ललितगिरि से जोड़ने की पुष्टि की थी। अब यह क्षेत्र एक महत्वपूर्ण बौद्ध पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है।
जिसकी जड़ें मौर्य काल (3rd century BCE) तक जाती हैं।
रत्नगिरि और उदयगिरि:-
ये दोनों स्थल भी भव्य बौद्ध स्मारकों और मठों से युक्त हैं।
यहां से भी विद्यार्थी और भिक्षु शिक्षा ग्रहण करते थे।
इन विश्वविद्यालयों ने न केवल भारत को, बल्कि समस्त विश्व को ज्ञान, दर्शन और विज्ञान की अमूल्य धरोहरें दीं। आज जब हम "विकसित भारत" की बात करते हैं, तो हमें अपने अतीत से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारत केवल सोने की चिड़िया नहीं था, बल्कि यह ज्ञान, शोध और सांस्कृतिक समरसता का भी केंद्र था। प्राचीन विश्वविद्यालयों की यह विरासत हमें यह सिखाती है कि शिक्षा वह प्रकाश है, जो युगों-युगों तक सभ्यता को उजागर करता है।