सात समंदर पार गूंजी 'कांच ही बांस के बहंगिया'- आरा के घाट से न्यू जर्सी की झील तक पहुंची आस्था

आरा के घाटों से लेकर न्यू जर्सी की झीलों तक, छठ पूजा आज सात समंदर पार आस्था का प्रतीक बन चुकी है। जानिए कैसे 'कांच ही बांस के बहंगिया' की गूंज ने बिहार की परंपरा को वैश्विक पहचान दिलाई और यह पर्व भारतीय संस्कृति की एकता का प्रतीक बना।

Jyotsana Singh
Published on: 25 Oct 2025 11:39 AM IST
Chhath Puja
X

Chhath Puja (Image Credit-Social Media)

Chhath Puja: नदी की लहरों की गुनगुनाहट के बीच हवा में चाशनी घोलता 'कांच ही बांस के बहंगिया' छठ पर्व का वो प्रचलित लोकगीत जिसे सुनकर कोई भी भावविभोर हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसे में अस्ताचल भगवान भास्कर, सिंदूरी रंग में नहाया आकाश और असंख्य दीपों की जगमगाहट से स्वर्ग सरीखे नजर आते नदियों के किनारे छठ पर्व पर इसकी महिमा का बखान करते नजर आते हैं। जहां असंख्य सुहागिनें कठिन उपवास के साथ सूर्य देवता से अपने सुहाग और अपने परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करने के लिए जब घाट पर अर्घ्य देने के लिए उपस्थित होती हैं तो आस्था और परंपरा में डूबा हुआ वो नजारा इतना दिव्य होता है कि हर कोई बस इसमें रच बस जाना चाहता है। भारत में त्योहार सिर्फ पूजा-पाठ नहीं होते, बल्कि भावनाओं का उत्सव होते हैं। और इन्हीं में से एक है छठ पूजा, जो हर साल सूर्य देव और छठी मैया के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक बनकर लाखों लोगों के दिलों को जोड़ती है। कभी बिहार और झारखंड के घाटों पर गूंजने वाला यह लोकपर्व आज ग्लोब के हर कोने में अपनी रौशनी फैला रहा है। आरा- बिहार के गंगाघाट से लेकर अमेरिका के कैलिफोर्निया तक छठ की महिमा उन्हीं पारंपरिक लोकगीतों, उन्हीं संवेदनाओं और अडिग आस्था के साथ अब सीमाओं से परे अपना विस्तार कर चुकी है।

सदियों पुरानी परंपरा, पर आज भी कायम है अटूट आस्था

छठ पूजा की जड़ें उतनी ही गहरी हैं जितनी गंगा की धार। माना जाता है कि यह पर्व वैदिक काल से प्रचलित है, जब लोग सूर्य की उपासना करके जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते थे।


चार दिनों का यह व्रत न सिर्फ धार्मिक कर्मकांड है। बल्कि यह अनुशासन और आत्मसंयम का अभ्यास भी है। व्रती महिलाएं बिना जल ग्रहण किए अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह आस्था, त्याग और नारीशक्ति का अनूठा संगम है।

बिहार से नेपाल और अब पूरी दुनिया भर में मनाया जा रहा ये पर्व

बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों से उठी यह आस्था आज नेपाल के मधेशी इलाकों में भी गहराई तक रच-बस गई है। जनकपुर, वीरगंज और बारा जैसे शहरों में जब घाटों पर दीपों की कतारें जलती हैं, तो पूरा वातावरण भक्ति में डूब जाता है। इसी परंपरा को लेकर जब लोग अपनी रोज़ी-रोटी की तलाश में विदेश गए, तो अपने साथ छठ की संस्कृति भी ले गए। मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और त्रिनिदाद जैसे देशों में भारतीय मूल के लोग इस पर्व को उसी भाव से मनाते हैं जैसे अपने गांव में बड़े बुजुर्गों के साथ मनाते चले आ रहे थे।

जब न्यू जर्सी में भी अब गूंजते हैं छठ के प्रचलित लोकगीत

छठ की महिमा की बात करें तो आज स्थिति यह है कि छठ पूजा का आयोजन न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और दुबई जैसे देशों में भी बेहद श्रद्धा और उत्साह से होता है।


अमेरिका के न्यू जर्सी में जब झील के किनारे महिलाएं मिट्टी के दीये जलाकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं, तो वहां मौजूद हर प्रवासी भारतीय का दिल अपने गांव की यादों में डूब जाता है। साथ ही विदेशी धरती पर भारतीय परम्पराओं का हर कोई साक्षी बनता है।

मॉरीशस में तो इस पर्व को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं लंदन, सिडनी, टोरंटो और दुबई जैसे शहरों में प्रवासी समुदाय स्थानीय प्रशासन की अनुमति लेकर झीलों या कृत्रिम घाटों पर सामूहिक पूजा करते हैं।

छठ पर्व अब महानगरों की भी बन गई है नई पहचान

भारत के महानगरों में भी छठ का रंग अब बदल चुका है। दिल्ली के यमुना घाट से लेकर मुंबई के जुहू बीच तक, हजारों की संख्या में श्रद्धालु एक साथ अर्घ्य देने जुटते हैं।

यह दृश्य केवल पूजा का नहीं, बल्कि अपनों के संग मिलने और अपनी जड़ों को महसूस करने का होता है। कामकाजी महिलाएं, युवा पीढ़ी और बच्चे सभी इस पर्व के जरिए अपनी परंपरा से दोबारा जुड़ते हैं।

सोशल मीडिया ने बनाया छठ को ग्लोबल पर्व

इंटरनेट ने इस परंपरा को नई उड़ान दी है। अब छठ पूजा सिर्फ घाटों तक सीमित नहीं रही यह लाइव स्क्रीन और डिजिटल आस्था का हिस्सा बन चुकी है। लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपने पूजा अनुष्ठान की लाइव स्ट्रीमिंग करते हैं। सिडनी या न्यूयॉर्क में बैठा व्यक्ति भी अपने गांव के घाट से सूर्य को अर्घ्य देने का अनुभव साझा कर सकता है।


यही तकनीकी जुड़ाव छठ पूजा को एक वैश्विक परिवार की भावना में बदल रहा है, जहां न दूरी मायने रखती है, न सीमाएं।

अब विदेश में रहने वाले भारतीयों और नेपाली समुदायों के लिए छठ पूजा सिर्फ पूजा नहीं बल्कि यह अपनी पहचान का उत्सव बन चुका है। जब सात समंदर पार रहने वाले लोग मिट्टी के दीपक जलाकर सूर्य को प्रणाम करते हैं, तो वे न सिर्फ देवता को धन्यवाद दे रहे होते हैं, बल्कि अपनी जड़ों को याद कर रहे होते हैं। छठ पूजा इस बात की साक्षी है कि संस्कृति कभी मरती नहीं, वह सिर्फ रूप बदलती है।

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी परंपरागत मान्यताओं, सांस्कृतिक प्रथाओं और ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी धार्मिक विचारधारा को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा की वैश्विक यात्रा को समझना है।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!