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धनतेरस पर क्यों जलाए जाते हैं 13 दीपक? यमराज से लेकर मां लक्ष्मी तक हर दीपक की अपनी कहानी और महत्व
धनतेरस पर 13 दीपक जलाने की परंपरा का गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। हर दीपक मां लक्ष्मी, यमराज और घर की सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा होता है। जानिए इन 13 दीपों के स्थान, महत्व और इनके पीछे की पौराणिक कथा।
Dhanteras 2025 (Image Credit-Social Media)
Dhanteras 2025: दिवाली की रौनकों से घर- आंगन, हाट-बाजार यानी धरती का कोना- कोना जगमगा उठता है। इसकी शुरुआत जिस दिन से होती है वह है धनतेरस। इस पर्व का अपना ही एक अलग आकर्षण है। इस दिन न सिर्फ़ सोने-चांदी के सिक्के या नए बर्तन खरीदे जाते हैं, बल्कि एक ऐसी परंपरा निभाई जाती है जो सदियों से घर-घर की ऊर्जा को रोशन करती आ रही है वह है 13 दीपक जलाने की परंपरा। यह सिर्फ़ दीपक नहीं होते, बल्कि हर एक दीप अपने भीतर एक आशीर्वाद, एक सुरक्षा कवच और एक शुभ संकेत लेकर आता है। कहा जाता है कि ये 13 दीपक मां लक्ष्मी की कृपा को घर में स्थायी बनाते हैं, यमराज को प्रसन्न करते हैं और हर तरह की नकारात्मकता को दूर भगाते हैं। आइए इस बारे में जानते हैं विस्तार से -
समृद्धि और आरोग्य की कृपा का प्रतीक है धनतेरस पर्व
धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। वे आयुर्वेद के जनक और स्वास्थ्य के देवता माने जाते हैं। इसलिए यह दिन धन के साथ-साथ आरोग्य और दीर्घायु का प्रतीक है। इस पर्व से जुड़ी पुराणों में एक और कथा लोकप्रिय है - राजा हिम की पुत्रवधू ने अपने पति की अकाल मृत्यु से बचाने के लिए उस रात दीप जलाए थे ताकि यमराज उसके पति के पास न पहुंच पाए। कहा जाता है कि दीपों के उस प्रकाश ने मृत्यु तक को टाल दिया। तभी से धनतेरस की रात दीपदान की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक कायम है।
जानिए धनतेरस पर जलाए जाने वाले मिट्टी के 13 दीपकों का क्रम, स्थान और महत्व
पहला दीपक – यमराज के लिए (मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में)
इस दीपक को घर के मुख्य द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा की ओर जलाया जाता है। यह दीपक अकाल मृत्यु से रक्षा का प्रतीक है। इसमें सरसों का तेल और चार बत्तियां डालना शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इसका प्रकाश यमराज को प्रसन्न करता है और घर के हर सदस्य पर उनकी कृपा बनी रहती है।
दूसरा दीपक – मां लक्ष्मी के लिए (पूजाघर में)
यह दीपक घी से जलाया जाता है और देवी लक्ष्मी के चरणों में रखा जाता है। इसमें केसर या कमल का तंतु डालना बहुत शुभ होता है। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर में धन, वैभव और स्थायी सुख का आशीर्वाद देती हैं।
तीसरा दीपक – घर के प्रवेश द्वार पर
यह दीप नकारात्मक ऊर्जा को रोकने के लिए होता है। जब घर में कोई प्रवेश करता है तो सबसे पहले यह दीपक उसका स्वागत करता है और शुभता का वातावरण बनाता है।
चौथा दीपक – तुलसी के पौधे के पास
तुलसी को लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है। इस दीपक से घर में सौहार्द, शांति और वैवाहिक सुख की ऊर्जा फैलती है।
पांचवां दीपक – छत या ऊंचे स्थान पर
यह दीप घर की सुरक्षा का प्रतीक है। ऊंचे स्थान पर रखा दीपक आस-पास की नकारात्मक लहरों को नष्ट करता है और वास्तु दोष दूर करता है।
छठा दीपक - पीपल के पेड़ के नीचे
पीपल देवताओं का वास स्थल है। यहां सरसों के तेल का दीपक जलाने से स्वास्थ्य में सुधार होता है और धन संबंधित बाधाएं दूर होती हैं।
सातवां दीपक – श्रद्धा का दीप
यह दीप किसी शांत स्थान पर मन की शुद्धता के साथ जलाया जाता है। यह आत्मा की शुद्धि और आंतरिक प्रकाश का प्रतीक है।
आठवां दीपक – कूड़े या स्टोर रूम के पास
यह दीपक घर से दरिद्रता, जड़ता और नकारात्मक ऊर्जा को हटाने का कार्य करता है।
नौवां दीपक – वॉशरूम या टॉयलेट के बाहर
यह दीप घर की नकारात्मक तरंगों को निष्क्रिय करता है और शुद्धता का संतुलन बनाए रखता है।
दसवां दीपक – बुरी नज़र से बचाव के लिए
इसे घर के किसी कोने या बैठक में जलाया जाता है। यह दीपक नज़र दोष, ईर्ष्या और बुरी शक्तियों से रक्षा करता है।
ग्यारहवां दीपक – उल्लास और आनंद के लिए (छत पर)
यह दीपक घर के वातावरण में सकारात्मकता भरता है। इससे परिवार में उत्साह और आपसी प्रेम बना रहता है।
बारहवां दीपक – बेल के वृक्ष के नीचे
बेल वृक्ष भगवान शिव को प्रिय है। इसके नीचे दीपक जलाने से न केवल धन की प्राप्ति होती है बल्कि शिव और लक्ष्मी दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
तेरहवां दीपक – घर के चौराहे या गली के मोड़ पर
यह दीपक सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और जीवन की राह में शुभ अवसरों का मार्ग खोलता है।
दीपदान के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ
हमारी भारतीय संस्कृति में दीपक केवल रोशनी का ही नहीं, बल्कि ऊर्जा संतुलन और शुभता का प्रतीक भी माना जाता है। सरसों के तेल का दीपक वातावरण की नकारात्मकता को दूर करता है, जबकि घी का दीप आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाता है। धनतेरस की रात इन दीपों का प्रकाश घर- आंगन के साथ ही हमारी मानसिक स्थिति, स्वास्थ्य और समृद्धि को भी आलोकित करता है।
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