Elaichi Kaise Banta Hai: इलायची की यात्रा, खेत से लेकर रसोई तक, जानें इस मसाले की रोचक उत्पत्ति

Cardamom Making Process in Hindi: इलायची की खेती से लेकर बाजार तक पहुँचने की प्रक्रिया जटिल जरूर है, लेकिन इसकी मांग और महत्ता इसे एक लाभदायक फसल बनाती है।

Shivani Jawanjal
Published on: 17 April 2025 1:26 PM IST
Elaichi Kaise Banta Ha
X

Elaichi Kaise Banta Ha (Photo - Social Media)

Elaichi Kaise Banta Hai: इलायची, जिसे ‘मसालों की रानी’ कहा जाता है, सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि भारतीय स्वाद और परंपरा का एक अनमोल हिस्सा है। इसकी मीठी, ताज़गी भरी सुगंध और अनोखा स्वाद न सिर्फ चाय में जान डाल देता है, बल्कि मिठाइयों और खास व्यंजनों को भी एक अलग ही पहचान देता है। छोटी-सी यह हरी फली जितनी सुंदर दिखती है, उतना ही रोचक है इसका बनने का सफर।

क्या आपने कभी सोचा है कि यह खुशबूदार मसाला खेतों में कैसे उगाया जाता है? इसकी खेती कितनी मेहनत और धैर्य की मांग करती है? इलायची सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि एक जटिल कृषि प्रक्रिया का परिणाम है जिसमें मौसम, मिट्टी, देखभाल, और समय सबका सही संतुलन ज़रूरी होता है। इस लेख में हम आपको ले चलेंगे इलायची के खेतों तक, जहाँ इसकी बुआई से लेकर कटाई, सुखाने, और अंततः बाज़ार तक पहुँचने की पूरी यात्रा को करीब से देखेंगे।

अगर आप भी जानना चाहते हैं कि आपकी चाय में पड़ने वाली एक छोटी सी इलायची कैसे बनती है, तो यह लेख आपके लिए है।

इलायची क्या है?( What is cardamom?)

इलायची एक प्रकार का पौधा है जो जिंजिबरेसी (Zingiberaceae) परिवार से संबंधित है, जिसमें अदरक भी शामिल है। इसकी दो मुख्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं:

हरी इलायची (Elettaria cardamomum) - मुख्य रूप से भारत और श्रीलंका में उगाई जाती है।

काली इलायची (Amomum subulatum) - इसका आकार बड़ा होता है और इसे हिमालय क्षेत्र में उगाया जाता है।

यहाँ हम विशेष रूप से हरी इलायची की खेती और निर्माण प्रक्रिया पर ध्यान देंगे।

इलायची की खेती के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ

इलायची की खेती एक संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसमें विशेष प्रकार की जलवायु, मिट्टी, नमी और छाया की आवश्यकता होती है। इसे "मसालों की रानी" कहा जाता है और यह मुख्यतः दक्षिण भारत के कुछ विशेष क्षेत्रों में उगाई जाती है। यदि सही परिस्थितियाँ उपलब्ध हों, तो इलायची की खेती अत्यधिक लाभकारी हो सकती है। आइए विस्तार से समझते हैं कि इलायची की सफल खेती के लिए किन-किन प्राकृतिक कारकों की आवश्यकता होती है।

जलवायु - इलायची उष्णकटिबंधीय (tropical) और अर्ध-उष्णकटिबंधीय (sub-tropical) जलवायु में पनपती है। इसके विकास के लिए तापमान का दायरा 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर 35 डिग्री सेल्सियस तक उपयुक्त माना जाता है। बहुत अधिक ठंड या अत्यधिक गर्मी इसकी वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, इलायची को उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह नमी-प्रिय पौधा है। वर्ष भर लगभग 1500 मिमी से 4000 मिमी तक की वर्षा इसके लिए अनुकूल मानी जाती है। भारत में केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के कुछ जिलों जैसे वायनाड, इडुक्की और कोडगु में यह जलवायु स्वाभाविक रूप से पाई जाती है, इसलिए ये क्षेत्र इलायची उत्पादन के लिए प्रमुख माने जाते हैं।

मिट्टी- इलायची की खेती के लिए मिट्टी का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। इसे ऐसे क्षेत्र में उगाना चाहिए जहाँ दोमट मिट्टी (loamy soil) हो, जिसमें जलनिकास (drainage) की अच्छी व्यवस्था हो। इलायची की जड़ें काफी संवेदनशील होती हैं और अगर मिट्टी में पानी जमा हो जाए तो जड़ सड़ने की संभावना रहती है। इस वजह से जलभराव वाले क्षेत्रों से बचना चाहिए। इसके अलावा, मिट्टी का पीएच स्तर (pH value) 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए। यह न तो बहुत अम्लीय (acidic) और न ही बहुत क्षारीय (alkaline) होनी चाहिए। कार्बनिक पदार्थों से भरपूर, उपजाऊ और जीवांशयुक्त मिट्टी इसकी वृद्धि में सहायक होती है।

छाया - इलायची का पौधा प्राकृतिक रूप से छायादार और नम क्षेत्रों में उगता है। इसे सीधे धूप की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह आंशिक छाया (partial shade) में ही अच्छे से विकसित होता है। इस कारण से इलायची को प्रायः बड़े वृक्षों की छाया में उगाया जाता है। यह वृक्ष पौधों को अत्यधिक धूप से बचाते हैं और तापमान को स्थिर बनाए रखते हैं, जिससे पौधों को तनाव नहीं होता और उनका विकास सुचारू रूप से होता है। छाया के कारण मिट्टी की नमी भी बनी रहती है, जो इलायची के लिए आवश्यक है।

नमी और आर्द्रता - इलायची की खेती के लिए उच्च स्तर की आर्द्रता (humidity) अत्यंत आवश्यक है। वायुमंडलीय नमी इसकी वृद्धि और फलों के विकास में सहायक होती है। वर्ष भर 70% से 90% तक की आर्द्रता इसके लिए उपयुक्त मानी जाती है। यदि वातावरण बहुत शुष्क हो जाए, तो पौधे मुरझाने लगते हैं और फसल की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। इसी कारण इसे प्रायः ऐसे क्षेत्रों में उगाया जाता है जहाँ नमी स्वाभाविक रूप से बनी रहती है।

इलायची उगाने की प्रक्रिया

इलायची की खेती एक बहुस्तरिय प्रक्रिया है जिसमें कई चरण शामिल होते हैं , बीज या कंद से रोपण, पौधों की देखभाल, सिंचाई, और अंततः फूलों से फलों का विकास। यह एक समयसाध्य फसल है, लेकिन यदि सही तरीके से की जाए तो यह अत्यधिक लाभदायक सिद्ध होती है। नीचे इलायची की खेती की प्रमुख प्रक्रियाओं को विस्तार से समझाया गया है।

बीज या कंद से रोपण (Planting) - इलायची को दो तरीकों से उगाया जा सकता है, बीज द्वारा या कंदों (rhizomes) द्वारा। हालांकि बीजों से उगाना भी संभव है, लेकिन व्यावसायिक दृष्टिकोण से कंदों से उगाना अधिक सफल और तेज़ परिणाम देने वाला तरीका माना जाता है। बीजों से पौधा तैयार करने के लिए सबसे पहले नर्सरी में अंकुरण की प्रक्रिया की जाती है, जिसमें बीजों को उपजाऊ मिट्टी में बोया जाता है और 60 से 90 दिनों तक उनकी देखभाल की जाती है। अंकुरण के बाद जब पौधे पर्याप्त मजबूत हो जाते हैं, तब उन्हें मुख्य खेत में स्थानांतरित किया जाता है।

जब पौधे खेत में लगाए जाते हैं, तो उनके बीच कम से कम 2 फीट की दूरी रखी जाती है। इससे पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है फैलने और विकसित होने के लिए। रोपण का कार्य आमतौर पर वर्षा ऋतु की शुरुआत में किया जाता है, ताकि प्राकृतिक नमी पौधों की शुरुआती वृद्धि में सहायक हो।

देखभाल और सिंचाई - इलायची के पौधों की नियमित देखभाल अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह एक नमी-प्रिय और छायादार फसल है। इसे विशेष रूप से गर्मियों और सूखे मौसम में नियमित रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग इस फसल के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि इससे मिट्टी में लगातार नमी बनी रहती है और जल की बचत भी होती है।

साथ ही, पौधों के आसपास खरपतवार को समय-समय पर हटाना भी ज़रूरी होता है, ताकि वे पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा न करें। जैविक खादों और कम्पोस्ट का प्रयोग पौधों की गुणवत्ता और उत्पादन को बेहतर बनाता है। इसके अलावा, कीटों और बीमारियों की रोकथाम के लिए फसल का नियमित निरीक्षण आवश्यक है। प्रारंभिक अवस्था में ही यदि रोगों का पता लगा लिया जाए, तो उचित उपायों से पौधों को बचाया जा सकता है।

फूल और फल का आना - इलायची का पौधा आमतौर पर रोपण के दो से तीन वर्ष बाद फूल देना शुरू करता है। यह एक धीमी प्रक्रिया है, परंतु जब पौधे पूर्ण रूप से विकसित हो जाते हैं, तो इनमें छोटे-छोटे सफेद या हल्के हरे रंग के फूल निकलते हैं। इन फूलों से धीरे-धीरे फलों का निर्माण होता है, जिन्हें कैप्सूल कहा जाता है। इन कैप्सूल के भीतर छोटे-छोटे बीज होते हैं , यही बीज बाद में सुखाकर इलायची के रूप में उपयोग किए जाते हैं।

फलों को उचित समय पर तोड़ना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि बहुत देर कर दी जाए तो फलों के फटने का खतरा रहता है जिससे बीज खराब हो सकते हैं। फलों की तुड़ाई के बाद उन्हें धूप में या कृत्रिम विधियों से सुखाया जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता बनी रहे और उन्हें लंबे समय तक भंडारित किया जा सके।

कटाई और संग्रहण की प्रक्रिया

फल तोड़ना (Harvesting) - इलायची के पौधे लगभग 2 से 3 वर्षों में फल देने लगते हैं। प्रत्येक फली को हाथ से तोड़कर सावधानीपूर्वक इकट्ठा किया जाता है। कटाई का समय अगस्त से दिसंबर के बीच होता है।

सुखाना (Drying) - तोड़े गए फलों को धूप या कृत्रिम ताप में सुखाया जाता है। इन्हें लकड़ी के ओवन या गैस ड्रायर में 50-60°C पर धीरे-धीरे सुखाया जाता है ताकि रंग और सुगंध बनी रहे। सही ढंग से सुखाई गई इलायची 6-8% नमी स्तर तक पहुँच जाती है।

छंटाई और ग्रेडिंग (Sorting and Grading) - सूखने के बाद इलायची को आकार, रंग और गुणवत्ता के आधार पर छांटा जाता है। सर्वोत्तम किस्म की इलायची गहरे हरे रंग की, सुवासित और मोटी होती है।

प्रसंस्करण और पैकिंग

सुखाने के बाद इलायची की छंटाई की जाती है, यानी अच्छी गुणवत्ता की फलियों को चुना जाता है। फिर इसे सफाई के बाद अच्छी तरह पैक किया जाता है, ताकि वह नमी से सुरक्षित रहे और लंबे समय तक टिके। आधुनिक यंत्रों की मदद से ग्रेडिंग और क्वालिटी कंट्रोल किया जाता है।

बाज़ार तक पहुँचने की प्रक्रिया

किसान या उत्पादक इलायची को स्थानीय मंडियों, ट्रेडिंग एजेंसियों या निर्यात कंपनियों को बेचते हैं। भारत इलायची का प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश है। अच्छी गुणवत्ता वाली इलायची की अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भारी माँग होती है, खासकर मध्य पूर्व, अमेरिका और यूरोप में।

भारत में इलायची का उत्पादन और बाजार

भारत इलायची उत्पादन में विश्व का प्रमुख देश माना जाता है। यहाँ की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियाँ इलायची की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं। देश के दक्षिणी राज्यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु, इस सुगंधित मसाले के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। खासकर केरल का इडुक्की जिला इलायची उत्पादन के लिए विश्वप्रसिद्ध है। भारतीय इलायची की गुणवत्ता और सुगंध के कारण इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारी माँग रहती है। भारत से प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में इलायची खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों में निर्यात की जाती है। यही कारण है कि इलायची भारतीय कृषि निर्यात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। उच्च गुणवत्ता वाली हरी इलायची की कीमत बाज़ार में ₹1500 से ₹3000 प्रति किलो तक पहुँच सकती है, जिससे यह एक महंगा और मूल्यवान मसाला बन जाता है। इसके उत्पादन से न केवल देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है, बल्कि लाखों किसानों को भी स्थायी रोज़गार और आय का साधन मिलता है।

इलायची की मांग और उपयोग

इलायची की माँग न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निरंतर बनी रहती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से खाद्य क्षेत्र, औषधीय उद्देश्य और सुगंध उद्योग में किया जाता है। भारतीय रसोई में इलायची का स्थान बहुत खास है। मिठाइयों, चाय, बिरयानी, खीर और कई पारंपरिक व्यंजनों में इसकी मीठी और ताज़गी भरी सुगंध स्वाद को और भी बेहतरीन बना देती है। इलायची पाउडर भी खासा लोकप्रिय है, जिसे अक्सर मीठे व्यंजनों या पेय पदार्थों में डाला जाता है।

इसके अलावा, आयुर्वेद में भी इलायची का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे पाचन क्रिया को बेहतर बनाने, श्वास संबंधी समस्याओं से राहत दिलाने और मुख की दुर्गंध दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इलायची में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक होते हैं।

सुगंध उद्योग में भी इलायची का विशेष उपयोग होता है। इसके बीजों से निकाले गए तेल का इस्तेमाल परफ्यूम, अगरबत्ती और अन्य सुगंधित उत्पादों में किया जाता है। इस तरह इलायची न केवल स्वाद और स्वास्थ्य का संगम है, बल्कि इसकी सुगंध भी अनेक उद्योगों में अपनी अहम भूमिका निभाती है।

Admin 2

Admin 2

Next Story