कश्मीर में तूफान बनी इंदिरा गांधी! सोच से शुरू हुई 'तुलबुल परियोजना', क्या है पानी के बहाने राजनीति और परस्पर तनाव की कहानी

Indira Gandhi Tulbul Project History: क्या आप जानते हैं कि तुलबुल नेविगेशन बैराज परियोजना क्या है और कैसे इसने कश्मीर की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था। आइये इसे विस्तार से समझते हैं।

Jyotsna Singh
Published on: 17 May 2025 7:32 PM IST
Indira Gandhi Tulbul Project History
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Indira Gandhi Tulbul Project History

Indira Gandhi Tulbul Project History: कश्मीर की वादियों में बहती झेलम नदी और उसके किनारे बसी वुलर झील न सिर्फ प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक हैं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के जल-संबंधों और क्षेत्रीय राजनीति का भी केंद्र रही हैं। 2025 में एक बार फिर यह झील सुर्खियों में है, और वजह है तुलबुल नेविगेशन बैराज परियोजना। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के बीच इस परियोजना को लेकर सार्वजनिक विवाद ने न केवल कश्मीर की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच टूटे सिंधु जल समझौते के बाद के जल समीकरण को भी पुनर्जीवित कर दिया है। आईए जानते हैं क्या है वुलर झील तुलबुल परियोजना, इससे जुड़ी ऐतिहासिक, तकनीकी और राजनीतिक पृष्ठभूमि, और भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों पर इसके प्रभाव के बारे ने विस्तार से-

वुलर झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील

वुलर झील जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में स्थित है और इसे एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झीलों में से एक माना जाता है। यह झेलम नदी से पोषित होती है और कश्मीर घाटी के पर्यावरणीय संतुलन का अभिन्न अंग है। यह न केवल जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है, बल्कि हजारों स्थानीय मछुआरों और किसानों की आजीविका का भी साधन है।जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में स्थित है। वुलर झील का औसत व्यास लगभग 16 किलोमीटर (कभी-कभी वर्षा और मौसम के अनुसार भिन्नता हो सकती है) और इसका क्षेत्रफल 30 से 260 वर्ग किलोमीटर के बीच बदलता रहता है, जो झील में पानी की मात्रा पर निर्भर करता है।


यह झील झेलम नदी द्वारा पोषित होती है और इसका निर्माण एक प्राचीन टेक्टोनिक गतिविधि के कारण हुआ था। यह न केवल पारिस्थितिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि क्षेत्रीय जलवायु, मत्स्य पालन, और नौवहन के लिए भी बेहद उपयोगी है। इस परियोजना को पुनः आरंभ किए जाने में आवश्यकता है जिम्मेदार नेतृत्व, पारदर्शिता और संवेदनशील कार्यान्वयन की।

तुलबुल नेविगेशन परियोजना: शुरुआत कैसे हुई

भारत सरकार ने 1984 में ‘तुलबुल नेविगेशन बैराज’ (जिसे वुलर बैराज भी कहा जाता है) परियोजना का कार्य आरंभ किया था। इसका उद्देश्य था वुलर झील के मुहाने पर एक नियंत्रण ढांचा (navigation lock-cum-control structure) बनाना, जिससे झेलम नदी में जल प्रवाह को नियमित किया जा सके और कश्मीर घाटी में जल-परिवहन को पुनर्जीवित किया जा सके। जिसका मुख्य उद्देश्य-

  • झेलम नदी के जल स्तर को नियंत्रित करना और नौवहन को बढ़ावा देना (लगभग 100 किमी का जलमार्ग),
  • सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिए जल संग्रहण, सूखा और बाढ़ दोनों की स्थितियों में नियंत्रण करना था।

सिंधु जल संधि और पाकिस्तान की आपत्ति


1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि हुई थी। इसके अनुसार, तीन पूर्वी नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी) पर भारत का पूर्ण अधिकार और तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का प्राथमिक अधिकार तय किया गया। जब भारत ने 1984 में तुलबुल परियोजना शुरू की, तो पाकिस्तान ने इसका कड़ा विरोध किया। पाकिस्तान का दावा था कि यह परियोजना संधि की भावना के खिलाफ है क्योंकि भारत को झेलम नदी पर ऐसा कोई नियंत्रण ढांचा बनाने की अनुमति नहीं है जिससे जल प्रवाह को रोका जा सके। 1987 में पाकिस्तान की आपत्ति के बाद भारत ने निर्माण कार्य रोक दिया, हालांकि तब तक करीब ₹20 करोड़ का कार्य पूर्ण हो चुका था।

राजनीतिक पहलू परियोजना की नींव और अंतरराष्ट्रीय विरोध

इस परियोजना की नींव 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में डाली गई थी। भारत की ओर से इस पर कार्यभार जल संसाधन मंत्रालय और जम्मू-कश्मीर की सरकार ने साझा रूप से संभाला।

वहीं तुलबुल नेविगेशन परियोजना (वुलर बैराज) पर आपत्ति 1987 में पाकिस्तान ने दर्ज कराई थी। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जूनजो (Mohammad Khan Junejo) थे। वे 1985 से 1988 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे और जनरल जिया-उल-हक के कार्यकाल में उन्होंने एक सीमित लोकतांत्रिक शासन के तहत पद संभाला था। इस अवधि में भारत और पाकिस्तान के बीच कई द्विपक्षीय मुद्दों पर तनाव रहा, जिनमें सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताकर तुलबुल परियोजना पर आपत्ति जताना एक अहम उदाहरण है। पाकिस्तान का आरोप था कि यह परियोजना सिंधु जल संधि के खिलाफ है और भारत इससे झेलम नदी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है। प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जूनजो थे, जिन्होंने खुलकर भारत के इस कदम की आलोचना की। इसके बाद भारत-पाक के बीच कई दौर की वार्ताएं हुईं, लेकिन समाधान नहीं निकल पाया।


एक बार फिर परियोजना को लेकर उमर अब्दुल्ला-महबूबा मुफ्ती में टकराव

22 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि तोड़ने की घोषणा कर दी। इसके बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक वीडियो साझा किया जिसमें उन्होंने तुलबुल परियोजना को फिर शुरू करने की वकालत की। उन्होंने लिखा:

“अब जब संधि निलंबित है, तो क्या हम इस परियोजना को फिर शुरू कर पाएंगे? इससे विद्युत उत्पादन और नौवहन में बड़ा सुधार होगा।”इस पर महबूबा मुफ्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि, “ऐसे नाजुक समय में पानी को हथियार बनाना खतरनाक है। यह बयान गैर-जिम्मेदाराना और भड़काऊ है।”

सोशल मीडिया पर ‘एक्स युद्ध’: आरोपों की झड़ी

मुफ्ती के आरोपों का जवाब देते हुए उमर अब्दुल्ला ने उन्हें ‘सीमा पार के लोगों को खुश करने वाला’ बताया। बदले में महबूबा मुफ्ती ने अब्दुल्ला के दादा शेख अब्दुल्ला पर कटाक्ष किया कि उन्होंने पाकिस्तान से विलय की बात कही थी। इस निजी हमले के बाद उमर ने इसे समाप्त करते हुए कहा “हम अपने जल संसाधनों का पूरा उपयोग करेंगे। झेलम हमारी है, और कश्मीर के विकास के लिए आवश्यक है।”

इस परियोजना के तकनीकी लाभ

440 फीट लंबी यह संरचना 3 लाख एकड़ फीट (MAF) जल संग्रह कर सकती है। इससे झेलम नदी का जल प्रवाह साल भर बना रहता। 1 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई संभव होती।

  • स्थानीय जल परिवहन को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
  • विद्युत उत्पादन के लिए जल प्रबंधन आसान होता।

पर्यावरणीय और सामरिक दृष्टिकोण

जहां परियोजना के समर्थक इसे आर्थिक और सामरिक रूप से महत्वपूर्ण मानते हैं, वहीं आलोचक इसे झील के पर्यावरणीय संतुलन के लिए खतरा बताते हैं। पाकिस्तान की चिंता यह भी है कि भारत इस ढांचे का उपयोग झेलम नदी के प्रवाह को सीमित करने के लिए कर सकता है, जिससे पाकिस्तान में बाढ़ या सूखा आ सकता है। इसी आशंका के कारण वह इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाता रहा है।

क्या होगी आगे की राह समाधान या टकराव

सिंधु जल संधि का टूटना कोई मामूली घटना नहीं है। यह दुनिया की सबसे लंबी चलने वाली जल संधियों में एक थी। यदि भारत तुलबुल परियोजना को पूर्ण रूप से शुरू करता है, तो यह भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया मोड़ ला सकता है।


यह भी संभव है कि यह परियोजना क्षेत्रीय आत्मनिर्भरता और विकास की नई कहानी लिखे, बशर्ते इसका कार्यान्वयन पर्यावरण, कानून और जनता के हितों के अनुरूप हो। तुलबुल नेविगेशन परियोजना केवल एक जल संरचना नहीं, बल्कि कश्मीर की जटिल राजनीति का प्रतीक वुलर झील सदियों से कश्मीर की शांति और प्राकृतिक सुंदरता का प्रतीक रही है। पर अब यह झील राजनीति, कूटनीति और रणनीति की नई लहरों की साक्षी बन रही है। तुलबुल नेविगेशन परियोजना केवल एक जल संरचना नहीं, बल्कि कश्मीर की जटिल राजनीति, भारत-पाक जल विवाद और पर्यावरणीय चिंताओं की प्रतीक बन चुकी है। राजनीतिक दलों के बीच इस मुद्दे पर भले ही मतभेद हों, लेकिन यदि इसे विकास और जनहित के नजरिये से देखा जाए, तो यह परियोजना कश्मीर की तस्वीर बदल सकती है।

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