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Jyoti Basu Biography in Hindi: नक्सलवाद का खात्मा करने वाले ज्योति बसु भारतीय राजनीति के महान मार्क्सवादी नेता, आइए जाने इनके बारे में

Jyoti Basu Ka Jivan Parichay: ज्योति बसु ने हमेशा समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा को प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि समाज में समानता, भाईचारा और न्याय को स्थापित करना आवश्यक है।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 17 Jan 2025 12:05 PM IST
Jyoti Basu Biography in Hindi: नक्सलवाद का खात्मा करने वाले ज्योति बसु भारतीय राजनीति के महान मार्क्सवादी नेता, आइए जाने इनके बारे में
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Jyoti Basu Biography in Hindi: ज्योति बसु भारतीय राजनीति के इतिहास में एक अद्वितीय और अमर नेता के रूप में जाने जाते हैं। वे मार्क्सवादी विचारधारा के दृढ़ समर्थक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के प्रमुख स्तंभ थे। उनका नेतृत्व और व्यक्तित्व भारतीय राजनीति में एक प्रेरणास्त्रोत रहा है। ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई, 1914 को कोलकाता के एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता, निशिकांत बसु, एक डॉक्टर थे और माता हेमलता बसु एक घरेलू महिला थीं। डॉक्टर पिता निशिकांत बसु और गृहणी मां हेमलता बसु की तीसरी और सबसे छोटी संतान के रूप में उनका बचपन बंगाल प्रांत के ढाका जिले के बार्दी में गुजरा, लेकिन स्कूली पढ़ाई कोलकाता में हुई. ज्योति बसु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे 1935 में कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए

इंग्लैंड में शिक्षा और मार्क्सवादी विचारधारा

अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए, बसु 1935 में इंग्लैंड गए। उन्होंने लंदन के लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में कानून का अध्ययन किया।


यहाँ वे मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित हुए और ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के संपर्क में आए। उन्होंने ब्रिटेन में मजदूर आंदोलन और ट्रेड यूनियन के कार्यों में सक्रिय भाग लिया। यहीं से उनके जीवन में मार्क्सवादी विचारधारा का स्थायी प्रभाव पड़ा।

भारतीय राजनीति में प्रवेश

भारत लौटने के बाद, ज्योति बसु भारतीय राजनीति में सक्रिय हो गए।


वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) में शामिल हुए, लेकिन 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद वे CPI (M) में शामिल हो गए।

पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री

  1. ज्योति बसु ने 1977 में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री का पद संभाला। वे 23 वर्षों तक (1977-2000) इस पद पर बने रहे, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। उनके कार्यकाल में उन्होंने राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
  2. भूमि सुधार कार्यक्रम: उन्होंने "ऑपरेशन बर्गा" के तहत भूमि सुधार किया, जिससे लाखों भूमिहीन किसानों को लाभ हुआ।
  3. पंचायती राज: पंचायत व्यवस्था को सशक्त और विकेंद्रित करके ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की नई दिशा दी।
  4. मजदूरों के अधिकार: मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कई श्रम नीतियाँ लागू कीं।
  5. शिक्षा और स्वास्थ्य: उनके कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हुआ।

ज्योति बसु की राजनीतिक विचारधारा

ज्योति बसु ने हमेशा समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा को प्राथमिकता दी। उनका मानना था कि समाज में समानता, भाईचारा और न्याय को स्थापित करना आवश्यक है।


उन्होंने पूंजीवादी विचारधारा का विरोध किया और समाज के गरीब और कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया।

प्रमुख उपलब्धियाँ

पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की मजबूती: उनके नेतृत्व में वाम मोर्चा पश्चिम बंगाल की राजनीति का अभिन्न हिस्सा बना।

राष्ट्रीय राजनीति में योगदान: उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई बार केंद्र सरकार को अपना समर्थन दिया।


लोकप्रियता और नेतृत्व: ज्योति बसु का नाम भारतीय राजनीति में एक लोकप्रिय और निष्ठावान नेता के रूप में लिया जाता है।

ज्योति बसु की छवि एक सख्त प्रशासक की थी, लेकिन उनकी लोकप्रियता में जबरदस्त इजाफा तब हुआ जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक लागू किया। उन्होंने जमींदारी प्रथा और भूमि असमानता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए भूमिहीन किसानों को जमीन का पुनर्वितरण किया। यह सुधार बंगाल के लिए क्रांतिकारी साबित हुआ, जहां जमींदारी प्रथा गहराई तक जमी हुई थी। इस कदम ने न केवल गरीब किसानों को सशक्त बनाया, बल्कि उन्हें वामपंथी विचारधारा और बसु के नेतृत्व के प्रति अटूट समर्थन से भी जोड़ा।

नक्सलवाद का खात्मा

1980 के दशक में पश्चिम बंगाल में नक्सलवाद का उदय हुआ था, जो स्थायी समस्या बन सकता था। लेकिन ज्योति बसु और उनकी सरकार की दूरदर्शी नीतियों और सख्त कार्रवाई ने इसे विस्तार से रोक दिया।


बसु ने न केवल नक्सलवाद के खिलाफ रणनीतिक उपाय किए, बल्कि गांवों और शहरों के लोगों को वामपंथ से जोड़ने की व्यवस्था भी की। यदि यह हस्तक्षेप नहीं होता, तो आज बंगाल छत्तीसगढ़ की तरह नक्सलवाद से बुरी तरह प्रभावित हो सकता था।

दूरसंचार में पहल और मोबाइल क्रांति

ज्योति बसु के कार्यकाल में देश में दूरसंचार का विस्तार हुआ। उस समय, केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुख राम ने जापान में एक ड्राइवर को मोबाइल फोन इस्तेमाल करते देखा और भारत में इस तकनीक को लाने की योजना बनाई।


हालांकि बाद में सुख राम को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल हुई, लेकिन इस पहल ने देश में मोबाइल क्रांति की नींव रखी। यह प्रयास ज्योति बसु के प्रगतिशील दृष्टिकोण और उनकी दूरदर्शिता का हिस्सा था, जिसमें उन्होंने राज्य और देश के विकास को प्राथमिकता दी।

वामपंथी किला और मुख्यमंत्री के रूप में उनकी भूमिका

ज्योति बसु ने 1977 से 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की। इस दौरान उन्होंने बंगाल को वामपंथी विचारधारा का अभेद्य किला बना दिया।


उन्होंने जनहितकारी नीतियों को लागू करते हुए किसानों, मजदूरों और गरीब वर्ग के कल्याण के लिए कई कदम उठाए। उनकी नीतियों ने बंगाल को एक नई दिशा दी, जहां सामाजिक न्याय और समानता पर जोर दिया गया।

प्रधानमंत्री पद को ठुकराना: ऐतिहासिक भूल

1996 में, बसु भारत के प्रधानमंत्री बनने के करीब थे। उस समय गठबंधन सरकार ने उन्हें प्रधानमंत्री पद की पेशकश की थी, लेकिन उनकी पार्टी सीपीआई(एम) ने सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया।


इसके परिणामस्वरूप, एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। बाद में, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने इसे "ऐतिहासिक भूल" के रूप में स्वीकार किया। अगर बसु प्रधानमंत्री बने होते, तो भारतीय राजनीति का परिदृश्य शायद अलग होता।

आलोचनाएँ और विवाद

ज्योति बसु को उनके लंबे कार्यकाल के दौरान कुछ आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। इनमें राज्य में औद्योगिक विकास की धीमी गति और कुछ श्रम नीतियों के कारण निजी निवेश में कमी शामिल है। हालांकि, उनकी समाजवादी नीतियों और नेतृत्व शैली ने इन आलोचनाओं को पीछे छोड़ दिया। ज्योति बसु के लंबे राजनीतिक करियर पर जहां एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी नेता की छवि छाई रही, वहीं उन पर निर्मम शासक होने के आरोप भी लगे।


उनके कार्यकाल में उद्योगों और शहरी विकास में कमी के लिए उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। पश्चिम बंगाल में उद्योगों के पलायन और आर्थिक गतिविधियों की धीमी प्रगति को उनके नेतृत्व की कमजोर कड़ी माना गया।उनका एक अत्यधिक विवादास्पद निर्णय प्राथमिक स्कूलों से अंग्रेजी शिक्षा को हटाना था। यह फैसला उनके आलोचकों के अनुसार राज्य के शैक्षिक और रोजगार परिदृश्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला साबित हुआ।

वन-मैन शो और अक्खड़ व्यक्तित्व

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि ज्योति बसु एक "वन-मैन शो" नेता थे। उनके नेतृत्व में सामूहिक निर्णय प्रक्रिया पर उनका दबदबा था।


उनकी शैली को अक्खड़ और कठोर माना जाता था। कई बार पत्रकारों के साथ उनका बेरुखी भरा व्यवहार सुर्खियों में आया। यह उनके व्यक्तित्व का एक ऐसा पक्ष था जिसने उन्हें विवादों के केंद्र में रखा।

सेवानिवृत्ति और अंतिम दिन

साल 2000 में ज्योति बसु ने मुख्यमंत्री पद से सेवानिवृत्ति लेते हुए अपनी जिम्मेदारी बुद्धदेव भट्टाचार्य को सौंपी। इसके बाद उनकी सेहत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। 2008 में उन्हें पार्टी के पोलितब्यूरो से हटा दिया गया, लेकिन वे मृत्यु तक पार्टी की केंद्रीय समिति के विशेष आमंत्रित सदस्य बने रहे।

17 जनवरी य, 2010 को ज्योति बसु का निधन हो गया। उनके फैसले चाहे लोकप्रिय रहे हों या विवादास्पद, यह निश्चित है कि वे हमेशा कड़े और प्रभावशाली रहे। उनकी दृढ़ता और स्पष्टता के कारण उन्हें "बंगाल का लौह पुरुष" कहा जाता है।

अंतिम दिनों की विचारधारा

अपने जीवन के अंतिम दिनों तक ज्योति बसु समाजवादी विचारधारा और गरीबों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध रहे। उन्होंने अपने हर फैसले में गरीबों के उत्थान और समानता को प्राथमिकता दी। उनकी राजनीतिक विरासत में उनकी कठोरता और दृढ़ नीतियों का महत्वपूर्ण स्थान है।


ज्योति बसु का योगदान केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं था, बल्कि उनका प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ा। एक दृढ़ प्रशासक और दूरदर्शी नेता के रूप में, उन्होंने विकास और समानता के अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किए। उनकी नीतियों और नेतृत्व ने न केवल वामपंथ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि आम जनता के जीवन को भी गहराई से प्रभावित किया।



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