मुमताज महल की असल कब्र! क्या ताजमहल में नहीं है ? जानिए एक शाश्वत प्रेम की अनकही हकीकत

Mumtaz Mahal History in Hindi: सफेद संगमरमर से बनी एक शानदार इमारत, जो प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल मानी जाती है उसका नाम है ताज महल जिसे मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था लेकिन क्या ये वाकई सच है?

Jyotsna Singh
Published on: 17 May 2025 6:16 PM IST
Mumtaz Mahal History and Intresting Facts
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Mumtaz Mahal History and Intresting Facts (Photo - Social Media)

Mumtaz Mahal History in Hindi: जब भी हम ताजमहल का नाम सुनते हैं, तो हमारे दिलो-दिमाग में सबसे पहले जो छवि उभरती है, वह है सफेद संगमरमर से बनी एक शानदार इमारत, जो प्यार की सबसे खूबसूरत मिसाल मानी जाती है। हर साल लाखों लोग आगरा के इस अजूबे को देखने आते हैं, इसकी दीवारों पर उकेरी गई मोहब्बत की दास्तान को महसूस करते हैं। कहा जाता है कि यह मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी प्रिय बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि जो कब्र ताजमहल के अंदर बनी है, क्या वो मुमताज की असली कब्र है?

स सवाल का जवाब हमें इतिहास के उन पन्नों में मिलेगा, जिन पर समय की धूल जमी है, लेकिन सच्चाई आज भी उसी धड़कन के साथ मौजूद है, जो शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत में थी। आइए जानते हैं इस रहस्य के बारे में -

मुमताज महल की मौत की दर्दनाक कहानी

मुमताज महल, जिनका असली नाम अरजुमंद बानो बेगम था, शाहजहां की चौथी और सबसे प्रिय पत्नी थीं। उनकी सुंदरता और समझदारी का जिक्र उस दौर के लगभग हर इतिहासकार ने किया है। शाहजहां और मुमताज का रिश्ता महज शाही नहीं था, बल्कि एक गहरे भावनात्मक बंधन से जुड़ा हुआ था।


सन 1631 में जब मुमताज महल अपने 14वें बच्चे को जन्म दे रही थीं, तब उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई। शाहजहां उस वक्त दक्षिण भारत में लोधियों के खिलाफ सैन्य अभियान पर निकले थे। मुमताज उनके साथ ही थीं। जगह थी बुरहानपुर, जो आज के मध्य प्रदेश में स्थित है। यहीं पर मुमताज ने आखिरी सांस ली।

क्या बुरहानपुर है मुमताज की असली कब्र का पहला ठिकाना

मुमताज महल की मृत्यु के बाद शाहजहां ने बुरहानपुर में ही उनके पार्थिव शरीर को दफन कराया। एक विशेष ‘जैनब तलाब’ खुदवाया गया, जिसमें दीपदान की व्यवस्था भी कराई गई। यह वह स्थान था जहां मुमताज की असली और पहली कब्र बनाई गई। यह जगह आज भी बुरहानपुर में अहुखाना के नाम से जानी जाती है। शाहजहां चाहते थे कि ताजमहल यहीं बुरहानपुर में बनवाया जाए। इसके लिए उन्होंने ताप्ती नदी के किनारे एक भूमि का चयन भी कर लिया था। लेकिन ईरान, मिस्त्र और इटली से बुलाए गए वास्तुकारों ने बताया कि यहां की जलवायु और मिट्टी इतनी मजबूत नहीं है कि एक भव्य इमारत लंबे समय तक टिक सके। इसके बाद शाहजहां ने बुरहानपुर से लगभग 800 किलोमीटर दूर आगरा को नया स्थल चुना और जहां इस खूबसूरत इमारत का निर्माण कार्य आरंभ हुआ।

ताजमहल एक प्रेम का अमर प्रतीक


आगरा में यमुना के किनारे शाहजहां ने मुमताज की याद में वह मकबरा बनवाना शुरू किया, जिसे आज पूरी दुनिया ‘ताजमहल” के नाम से जानती है। यह केवल एक मकबरा नहीं, बल्कि शिल्पकला, स्थापत्य और प्रेम की बेजोड़ मिसाल है। इस भव्य स्मारक को बनवाने में लगभग 22 वर्षों का समय लगा- वह समय था 1632 से 1653 तक। इसमें करीब 20 हजार मजदूरों ने काम किया, जो केवल भारत से ही नहीं, बल्कि ईरान, तुर्की, अफगानिस्तान, मिस्त्र जैसे देशों से भी बुलाए गए थे। इसकी सुंदरता के लिए केवल राजस्थान से ही नहीं, बल्कि चीन से हरिताश्म, श्रीलंका से नीलम, तिब्बत से फीरोजा और अफगानिस्तान से लौपिज लजूली जैसे कीमती पत्थरों को मंगवाया गया।

ताजमहल में दो कब्रें असली हैं या प्रतीकात्मक

ताजमहल के अंदर जब आप जाते हैं, तो एक सुंदर कक्ष में शाहजहां और मुमताज की दो संगमरमर की कब्रें नजर आती हैं। लेकिन यह वास्तव में प्रतीकात्मक (cenotaphs) कब्रें हैं। असली कब्रें ताजमहल के नीचे तहखाने में मौजूद हैं। इन्हीं कब्रों को दोबारा दफन किया गया था बुरहानपुर से लाकर।


अबुस्सलाम नामक किताब में उल्लेख है कि जब यह तय हुआ कि ताजमहल आगरा में बनेगा, तब मुमताज के शव को एक विशेष यूनानी औषधि से लेप कर संरक्षित किया गया था ताकि वह लंबे समय तक खराब न हो। 6 महीने बाद, मुमताज के शरीर को आगरा लाया गया और ताजमहल के अधूरे तहखाने में दफनाया गया। इसके बाद जब मकबरा पूरी तरह बनकर तैयार हुआ, तो शाहजहां ने खुद उस कब्र को खुलवाया और नक्काशी करवाई। उस पर अल्लाह के 99 नाम खुदवाए गए।

क्या मुमताज की कब्र आज भी बुरहानपुर में मौजूद है

ऐसा माना जाता है कि बुरहानपुर में मुमताज की पहली कब्र की जगह अब भी चिन्हित है, लेकिन वहां उनका शव नहीं है। वहां एक साधारण मकबरा या कब्रनुमा स्थान है, जिसे ‘असली दफन स्थली’ कहा जाता है, लेकिन वहां अब कोई शव मौजूद नहीं है।

कई इतिहासकार इस बात पर आज भी बहस करते हैं कि क्या मुमताज का शव वास्तव में आगरा लाया गया या नहीं। लेकिन मुख्यधारा का इतिहास यही कहता है कि उनकी ममी को आगरा लाकर दोबारा दफनाया गया। फिर भी यह सवाल इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं को बार-बार खींच लाता है “क्या आज भी मुमताज वहीं हैं जहां उन्होंने आखिरी सांस ली थी?”

शाहजहां का सपना काले पत्थर का ताजमहल

शाहजहां का प्रेम यहीं खत्म नहीं हुआ था। वे अपने लिए भी एक ताजमहल बनवाना चाहते थे काले संगमरमर का ताजमहल। जो मुमताज के ताजमहल के ठीक सामने यमुना के दूसरी ओर बनता। लेकिन उनके बेटे औरंगजेब ने उन्हें फिजूलखर्ची का आरोप लगाकर आगरा के लालकिले में कैद करवा दिया। शाहजहां ने अपनी जिंदगी के आखिरी आठ साल उसी किले में बिताए ताजमहल को दूर से निहारते हुए।



ताजमहल की दीवारों में आज भी वह प्रेम दफन है, जिसने एक सम्राट को घुटनों पर ला दिया था। मुमताज महल की असली कब्र एक दौर में बुरहानपुर थी, लेकिन आज वह ताजमहल के तहखाने में है। यह एक सच है, लेकिन इस सच में भी एक करुणा है एक ऐसा प्रेम जो मृत्यु के बाद भी खत्म नहीं हुआ।

यह कहानी सिर्फ प्रेम की नहीं, बल्कि त्याग, समर्पण और एक ऐसी विरासत की है, जिसे देखने आज भी दुनिया दूर-दूर से आती है। ताजमहल को देखकर लोग बस इतना कहते हैं "वाह! क्या मोहब्बत थी..." लेकिन शायद ही किसी को यह एहसास होता है कि उस मोहब्बत की असली कब्र पहले किसी और शहर बुरहानपुर में थी। ताज देखने जाएं तो ये बातें ज़रूर जानें कि मुमताज और शाहजहां की जो कब्रें आप अंदर देखते हैं, वो प्रतीकात्मक हैं। असली कब्र तहखाने में है साधारण, लेकिन बेहद भावुकता से बनाई गई।

मुमताज की ममी को विशेष हकीमी लेप से संरक्षित किया गया था। बुरहानपुर में आज भी मुमताज के पहले दफन स्थल के अवशेष देखे जा सकते हैं। ताजमहल के निर्माण में 28 देशों के पत्थर और कारीगरों की भागीदारी थी। शाहजहां के खुद के लिए बनाए जाने वाले काले ताजमहल का सपना कभी पूरा नहीं हुआ। ताजमहल केवल स्थापत्य कला नहीं, बल्कि एक अमर प्रेम गाथा का प्रतीक है।

बुरहानपुर का ऐतिहासिक महत्व

बुरहानपुर मध्य प्रदेश राज्य के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है। यह बुरहानपुर ज़िले का मुख्यालय है और ताप्ती नदी के किनारे बसा हुआ है। यह शहर महाराष्ट्र की सीमा के पास स्थित है और खंडवा से लगभग 55 किलोमीटर दक्षिण में है।


बुरहानपुर का ऐतिहासिक महत्व मुग़ल काल से जुड़ा हुआ है। यह शहर एक समय में मुग़ल साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण केंद्र था, जहां से दक्षिण भारत के अभियानों का संचालन किया जाता था। यहां कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जैसे असीरगढ़ किला, दर्गाह-ए-हकीमी, जामा मस्जिद, और कुंडी भंडारा, जो मुग़ल वास्तुकला और इंजीनियरिंग के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। बुरहानपुर अपने कपड़ा उद्योग, विशेष रूप से पावरलूम उद्योग के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कपास और तेल मिलें भी हैं, जो इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पर्यटन के दृष्टिकोण से, बुरहानपुर एक आकर्षक स्थल है, जहां इतिहास और संस्कृति के अनेक पहलू देखने को मिलते हैं। बुरहानपुर तक पहुंचने के लिए सड़क और रेल मार्ग उपलब्ध हैं। निकटतम हवाई अड्डा महाराष्ट्र के जलगांव में स्थित है, जो बुरहानपुर से लगभग 97 किलोमीटर दूर है।

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