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Nimisha Priya Case: भारतीय नर्स को यमन में क्यों दी जा रही है फांसी?

Nimisha Priya Case: भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन में 16 जुलाई को फांसी दी जानी है। उनकी जान बचाने के लिए यमनी नागरिक के परिवार को ब्लड मनी के रूप में 1 मिलियन डॉलर (करीब 8.6 करोड़ रुपये) की पेशकश की है।

Shivani Jawanjal
Published on: 16 July 2025 8:30 AM IST (Updated on: 16 July 2025 8:30 AM IST)
Nimisha Priya Case
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Nimisha Priya Case (Image Credit-Social Media)

Nimisha Priya Case: 16 जुलाई 2025 यह सिर्फ एक तारीख नहीं बल्कि केरल(kerala) की नर्स निमिषा प्रिया के जीवन और मृत्यु के बीच की आखिरी सीमा बन गई है। यमन(Yaman) की जेल में बीते सात वर्षों से बंद निमिषा को एक यमनी नागरिक की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई गई है। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी को नशीला इंजेक्शन देकर मार डाला और फिर शव को टुकड़ों में काटकर पानी की टंकी में छिपा दिया। यमन की ट्रायल कोर्ट, सुप्रीम ज्यूडिशियल काउंसिल और राष्ट्रपति तीनों ने इस फैसले को बरकरार रखा, जिससे उनके बचने की उम्मीद लगभग क्षीण हो चुकी है।

यह मामला अब कानून से बढ़कर इंसानियत, कूटनीति और संवेदनाओं की लड़ाई बन चुका है। भारतीय सरकार, सामाजिक कार्यकर्ता और निमिषा की माँ ने उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए। लेकिन यमन के कठोर शरिया कानून और पीड़ित परिवार द्वारा ‘ब्लड मनी’ ठुकराए जाने ने सारी उम्मीदों को लगभग खत्म कर दिया है।

ऐसे में सवाल उठता है, कौन हैं निमिषा प्रिया? क्या है इस पूरे मामले की सच्चाई? और क्यों आज पूरा देश एक महिला की फांसी टालने की कोशिश में जी-जान से जुटा है? आइए जानते हैं पूरी कहानी।

कौन हैं निमिषा प्रिया?


निमिषा प्रिया केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे की रहने वाली एक प्रशिक्षित नर्स हैं, जिन्होंने भारत में नर्सिंग की शिक्षा पूरी करने के बाद बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में यमन का रुख किया। वहां उन्होंने एक नर्स के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे एक छोटा मेडिकल क्लिनिक भी शुरू किया। लेकिन सफलता की यह राह अधिक समय तक स्थिर नहीं रही। जल्द ही उनकी जिंदगी एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई, जब वे एक हत्या के मामले में उलझ गईं, जिसने उन्हें कानूनी जटिलताओं और अब फांसी की सजा तक पहुँचा दिया।

निमिषा प्रिया की पारिवारिक और पेशेवर यात्रा

निमिषा प्रिया(37), केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे गांव की निवासी हैं और एक साधारण परिवार से संबंध रखती हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से उन्होंने 2008 में यमन जाने का साहसिक फैसला लिया, जहां वे एक अस्पताल में बतौर नर्स कार्यरत रहीं। 2011 में भारत लौटकर उन्होंने टॉमी थॉमस से विवाह किया, जो पेशे से एक ऑटो ड्राइवर थे। शादी के बाद दोनों यमन लौट गए और वहां टॉमी ने भी छोटा-मोटा काम करना शुरू किया। 2012 में उनकी एक बेटी का जन्म हुआ लेकिन 2014 में यमन में बढ़ते गृहयुद्ध और आर्थिक संकट के कारण टॉमी थॉमस अपनी बेटी को लेकर भारत वापस लौट आए। वहीं, निमिषा प्रिया ने अकेले यमन में रुकने और काम जारी रखने का निर्णय लिया ताकि अपने परिवार की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा कर सकें। यही वह दौर था जब उनकी ज़िंदगी ने एक ऐसा मोड़ लिया जिसने आने वाले वर्षों में उन्हें फांसी की सजा तक पहुंचा दिया।

क्या है पूरा मामला?


यमन में अपने भविष्य को संवारने के प्रयास में निमिषा प्रिया ने एक बड़ा कदम उठाते हुए खुद का मेडिकल क्लिनिक खोलने की योजना बनाई। लेकिन यमन के कानून के तहत विदेशी नागरिक को किसी स्थानीय नागरिक के साथ साझेदारी करनी होती है। इसलिए उन्होंने एक यमनी नागरिक 'तलाल अब्दो महदी'(Talal Abdo Mahdi) को अपना बिजनेस पार्टनर बनाया। शुरुआत में क्लिनिक अच्छा चला लेकिन जल्द ही साझेदार महदी का व्यवहार बदल गया। निमिषा की मां और वकील के अनुसार महदी ने ना केवल निमिषा के पैसों पर हक जताना शुरू कर दिया, बल्कि उसका पासपोर्ट जब्त कर उसे घर में कैद कर लिया और मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने लगा। उसने निमिषा से जबरन शादी का दावा भी किया। प्रताड़ना से तंग आकर निमिषा ने सना पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई लेकिन पुलिस ने उल्टा उन्हें ही छह दिन के लिए जेल में डाल दिया। रिहा होने के बाद महदी का अत्याचार और बढ़ गया। जुलाई 2017 में निमिषा ने खुद को इस बर्बरता से मुक्त कराने की योजना बनाई । जिसके लिए निमिषा ने महदी को नींद की दवा देकर बेहोश किया और डीएनए टेस्ट के लिए उसका खून निकालने की कोशिश की लेकिन यह प्रयास महदी के लिए घातक साबित हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। महदी की मौत के लगभग एक महीने बाद निमिषा प्रिया को सऊदी-यमन सीमा पर उस वक्त गिरफ्तार किया गया, जब वे कथित रूप से देश छोड़कर भागने की कोशिश कर रही थीं। उनकी गिरफ्तारी ने मामले को और गंभीर बना दिया और इसके बाद उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज़ हो गई।

कानूनी लड़ाई और भारत सरकार की भूमिका

निमिषा प्रिया को बचाने के लिए भारत सरकार और केरल सरकार ने मानवीय आधार पर लगातार प्रयास किए हैं। विदेश मंत्रालय, भारतीय दूतावास (जो वर्तमान में जिबूती से यमन मामलों को संभाल रहा है) और केरल सरकार ने उनकी सजा को माफ करवाने या कम करवाने के लिए कई स्तरों पर हस्तक्षेप किया है। यह बात विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी बयानों से स्पष्ट होती है। वहीं निमिषा की माँ प्रीमा ने भी भारत सरकार से भावनात्मक अपील करते हुए अनुरोध किया है कि ब्लड मनी (दिया) की व्यवस्था की जाए ताकि उनकी बेटी को फांसी से बचाया जा सके। हालांकि इस दिशा में सबसे बड़ी बाधा यह रही कि यमन के युद्धग्रस्त हालातों के चलते पीड़ित परिवार से सीधा संपर्क स्थापित नहीं हो पा रहा है। जब तक महदी (या अल खदर) के परिजनों से संपर्क नहीं होता तब तक ब्लड मनी के माध्यम से सुलह की संभावना भी अधर में बनी हुई है। यही कारण है कि दूतावास और अधिकारी चाहकर भी इस प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं।

जनता और मानवाधिकार संगठनों का समर्थन


निमिषा प्रिया को फांसी से बचाने के लिए देशभर में एक भावनात्मक और सामाजिक आंदोलन खड़ा हो गया है जिसे #SaveNimishaPriya नाम से जाना जाता है। खासकर प्रवासी भारतीयों, विशेष रूप से खाड़ी देशों में बसे केरलवासियों ने इस अभियान को व्यापक समर्थन दिया है। हजारों लोगों ने ऑनलाइन याचिकाओं पर हस्ताक्षर कर भारत सरकार से अपील की है कि मानवीय आधार पर निमिषा की जान बचाई जाए। इस आंदोलन को संगठित रूप देने के लिए 'सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल' जैसी संस्थाएँ भी सक्रिय हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों ने भी इसे एक असाधारण मामला बताया है। यमन में जारी राजनीतिक अस्थिरता, गृहयुद्ध और जटिल न्यायिक प्रक्रिया के चलते भारत के लिए यह एक गंभीर कूटनीतिक चुनौती बन गई है। हालांकि भारत सरकार, केरल सरकार और विदेश मंत्रालय इस पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट में भी मामला उठाया गया है। लेकिन सरकार ने स्पष्ट किया है कि यमन की परिस्थितियों और सीमित कूटनीतिक संपर्कों के चलते उसके प्रयासों की सीमा तय है।

क्या है 'ब्लड मनी' (दिया) और इससे उम्मीद क्यों?

यमन समेत कई इस्लामिक देशों में शरीयत कानून के तहत 'ब्लड मनी' (दिया) की व्यवस्था मौजूद है। जिसमें किसी हत्या के मामले में पीड़ित परिवार एक निश्चित धनराशि लेकर आरोपी को माफ कर सकता है। इस व्यवस्था के तहत फांसी की सजा को टाला जा सकता है या उसे उम्रकैद में बदला जा सकता है। निमिषा प्रिया के मामले में यही एकमात्र विकल्प बचा है जिससे उनकी जान बच सकती है। इसी उद्देश्य से भारत में Nimisha Priya Action Council नामक समिति ने ब्लड मनी इकट्ठा करने के लिए एक फंडरेजिंग अभियान शुरू किया है। इस प्रयास का मुख्य उद्देश्य है कि जैसे ही महदी के परिवार से संपर्क स्थापित हो, यह राशि उन्हें पेश कर समझौता किया जा सके और निमिषा की फांसी की सजा को रोका जा सके।

क्या होगा निमिषा का फैसला?

निमिषा प्रिया को बचाने के प्रयासों में सबसे बड़ी चुनौती यमन की अस्थिर राजनीतिक स्थिति है। वर्षों से चले आ रहे गृहयुद्ध और कमजोर प्रशासनिक ढांचे के चलते भारत सहित किसी भी देश के लिए यमन में कूटनीतिक या कानूनी हस्तक्षेप करना बेहद कठिन हो गया है। भारतीय दूतावास की वहाँ पहुँच सीमित है और स्थानीय अधिकारियों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। दूसरी बड़ी बाधा यह है कि पीड़ित परिवार का अब तक कोई ठोस पता या संपर्क नहीं मिल सका है। शरीयत कानून के तहत ब्लड मनी देकर समझौता तभी संभव है जब परिवार से सीधा संपर्क हो, जो अब तक नहीं हो पाया है। साथ ही समय भी बेहद कम बचा है क्योंकि निमिषा प्रिया की फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय की जा चुकी है। अगर निकट भविष्य में कोई समाधान चाहे वह ब्लड मनी हो या राजनयिक हस्तक्षेप नहीं निकला तो निमिषा को फांसी कभी भी दी जा सकती है। न्यायिक स्तर पर भी अब कोई बड़ी राहत मिलने की संभावना लगभग समाप्त हो चुकी है।

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