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Premanand Ji Maharaj: हमारे भीतर ही है भगवान, संत प्रेमानंद जी ने खोला आत्मज्ञान का रहस्य
Premanand Ji Maharaj: संत प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि भगवान हमारे भीतर ही हैं। जानिए आत्मज्ञान का रहस्य, नाम-जप की महिमा, सत्कर्म का महत्व और मुक्ति की ओर ले जाने वाले संत जी के प्रेरक संदेश।
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj Satsang: हम सभी अध्यात्म की राह पर चलकर सारी उम्र यही सोचते रहते हैं कि मंदिरों में, तीर्थ यात्राओं में या महान तपस्वी साधु संतों में ईश्वरीय शक्ति का अस्तित्व मौजूद है, जिनका साक्षात्कार करके ही परमात्मा को करीब से महसूस किया जा सकता है। लेकिन संत प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि 'जिसकी खोज में तुम बाहर भटक रहे हो, वही तुम्हारे भीतर मौजूद है।'
असल में इंसान खुद को सिर्फ देह मान बैठा है और विषय-वासनाओं के जाल में ऐसा उलझा है कि अपनी असली पहचान भूल गया है। यह स्थिति ठीक वैसी ही है जैसे मकड़ी अपने ही बुने जाल में पहले खेलती है फिर उसी में उलझकर अंत में उसी में मर जाती है। उसी तरह हम अपने ही रचे खेल में पूरा जीवन उलझे रहते हैं और बिना ईश्वरीय शक्ति को हासिल किए ही इस धरती से विदा ले लेते हैं। जिससे बार-बार धरती पर जन्म लेकर कर्मों का भोग भोगना पड़ता है।
परमात्मा एक, रूप अनेक
संत जी बताते हैं कि ईश्वर का अंश हर प्राणी में विद्यमान है। वे उदाहरण देते हैं अगर करोड़ों घड़ों में पानी भर दिया जाए तो हर घड़े में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई देगा, लेकिन सूर्य तो एक ही है। घड़े टूट जाएं तो भी सूर्य पर कोई असर नहीं पड़ता। उसी तरह शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन आत्मा और परमात्मा शाश्वत रहते हैं।
प्रेमानंद जी कहते हैं कि बिजली को देख लीजिए- वही ऊर्जा ट्रेन को भी चलाती है, एसी और हीटर को भी। काम अलग-अलग हैं, मगर शक्ति एक ही है। यही बात इस धरती पर मौजूद हर जीव पर भी लागू होती है।
जैसे विद्युत से संचालित यंत्र जिसने कार्य अलग अलग हैं लेकिन उनको संचालित करने वाली शक्ति निगेटिव और पोजिटिव गुणों से युक्त होकर एक ही है। ठीक वैसे ही ईश्वरीय शक्ति हर व्यक्ति में विराजमान है भले ही कोई व्यक्ति बुरा हो या अच्छा। ज्ञान न होने के कारण ये व्यक्ति अच्छा है या बुरा, हम स्त्री हैं या पुरुष जैसे भेद जैसे भाव अपने मन में रखते हैं।
न कोई अच्छा है न कोई बुरा, न कोई स्त्री है न कोई पुरुष ये सब माया रचित भेद हैं।
'अहम् ब्रह्मास्मि'- असली पहचान
जब साधक ज्ञान प्राप्त करता है तो उसके भीतर का भ्रम मिट जाता है और उसे 'अहम् ब्रह्मास्मि' का अनुभव होता है- यानी मैं ही ईश्वर हूं।
इस अवस्था में भेद-भाव खत्म हो जाता है। इंसान यह समझ जाता है कि इस धरती पर परमात्मा के सिवा कुछ भी नहीं है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि पवित्र आचरण करो, हमेशा भगवत शरण में रहो, तभी ऐसा संभव है। मलीन आचरण वाला, अशुद्धता के साथ रहने वाला व्यक्ति भगवत ज्ञान कभी प्राप्त नहीं कर सकता। तत्व का अनुभव करने के लिए पहले साधना जरूरी है।
साधना ही कुंजी
भगवत अनुभव पाना आसान नहीं, लेकिन असंभव भी नहीं। संत प्रेमानंद जी कहते हैं कि गृहस्थ जीवन में रहकर भी इसे पाया जा सकता है।
नाम-जप, परिवार की सेवा और परमार्थ - ये तीन रास्ते हैं जिन पर चलकर हर इंसान ईश्वर तक पहुंच सकता है।
वे कहते हैं। प्रेमानंद जी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि 'यदि मजबूरी वश किसी को दंड भी देना हो तो उसमें भी ईश्वर को शामिल करिए, उसी तरह किसी को सम्मान देना भी पूजा है। फर्क सिर्फ इतना है कि हर कर्म ईश्वर को समर्पित होना चाहिए।
कर्म का लेखा-जोखा
हर पल हमारा कर्म-खाता तैयार हो रहा है।
अच्छे कर्म ऊंचाई देते हैं, बुरे कर्म बंधन और दुख लाते हैं।
इसलिए वे चेताते हैं कि धन कमाओ, मगर ईमानदारी और धर्म के रास्ते से।
कुकर्मों से कमाया धन आगे चलकर सिर्फ दुख ही देगा। अंततः इंसान को उसी का फल भोगना पड़ता है। यही कारण है कि संत जी हमेशा सत्कर्म पर जोर देते हैं।
नाम-जप की महिमा
इतिहास में जिन महापुरुषों ने नाम-जप को जीवन का आधार बनाया, वे आज भी पूज्य हैं। नाम-जप से ईश्वर सीधे दिल से जुड़ते हैं। संत प्रेमानंद जी का विश्वास है कि 'जो प्रभु से जुड़ जाता है, उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं रहती। ईश्वर शरण में चले गए तो भगवत प्राप्ति के साथ ही धरती के ये सारे सुख खुद ही सुलभ हो जाते हैं।
लेकिन नाम-जप केवल होंठों से नहीं, बल्कि मन, आचरण और पूरी लगन से करना चाहिए।
स्वार्थ बनाम परमार्थ
अधिकतर लोग सामने वाले इंसान में सिर्फ शरीर और उससे मिलने वाले लाभ को देखते हैं यही स्वार्थ है।
परमार्थ यह है कि हम हर प्राणी में ईश्वर का अंश देखें और उसकी सेवा करें।
स्वार्थ बंधन में डालता है, परमार्थ मुक्ति की ओर ले जाता है। यही संत जी का सच्चा संदेश है।
प्रलोभन से सावधान
इस संसार में प्रलोभन हर जगह है- धन, शोहरत, पद, इंद्रिय-सुख। इंसान जब इनके पीछे भागता है तो अध्यात्म के मार्ग से फिसल जाता है। संत जी सलाह देते हैं कि 'ठान लो कि प्रलोभन में फंसकर कुछ नहीं चाहिए। जो हमारा ईश्वर देगा, उसी में संतोष रखो।' यही संतोष जीवन की सबसे बड़ी साधना है। जब यह शरीर छूटेगा तो कुछ भी साथ नहीं जाएगा। न धन, न मकान, न रिश्ते, सिर्फ नाम-जप और प्रभु का स्मरण हमारे साथ रहेगा। यही कारण है कि संत प्रेमानंद जी कहते हैं कि 'नाम-जप जीवन बदल देता है।' संत प्रेमानंद जी महाराज के ये प्रेरक संदेश हमें यह सिखाते हैं कि बाहर मत भटको, ईश्वर तुम्हारे भीतर ही है। साधना, नाम-जप, परमार्थ और पवित्र आचरण ही उस सत्य तक पहुंचने के रास्ते हैं। कुकर्मों से बचो, धर्म से कमाओ, हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश देखो, हर पल प्रभु को याद रखो। तभी जीवन सफल होगा और मुक्ति का द्वार खुलेगा।
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