Rapidly rising sea temperatures: समुद्र का बढ़ता पारा बनेगा कयामत का कारण? वैज्ञानिकों ने बताए दो खतरनाक हॉटस्पॉट, समय रहते नहीं संभले तो हो जाएगी देर...!

Rapidly rising sea temperatures: धरती की जलवायु तंत्र एक जटिल और संवेदनशील प्रणाली है, जिसमें महासागर एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। समुद्रों का तापमान अब तक के सबसे अधिक गर्म होने के स्तर पर पहुंच चुका है और इसका प्रभाव पूरी पृथ्वी की जलवायु पर पड़ सकता है।

Priya Singh Bisen
Published on: 17 May 2025 6:21 PM IST
Rapidly rising sea temperatures
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Rapidly rising sea temperatures (photo: social media)

Rapidly rising sea temperatures: धरती पर जिस रफ़्तार से तापमान बढ़ रहा है उसे देखते हुए लगता है कि जल्द ही धरती की आधी आबादी ख़त्म हो जाएगी। बढ़ते तापमान के कारण जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं, जिससे पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, मानव जीवन हर कोई परेशान है। जिस पर आये दिन कई खबरें सामने आती रहती हैं। लेकिन आज हम आपको यह बताने जा रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के बुरे असर अब महासागरों पर भी पड़ना शुरू हो गए हैं, जो भविष्य में आने वाले संकट की ओर साफ़ इशारा कर रहे हैं।


धरती की जलवायु तंत्र एक जटिल और संवेदनशील प्रणाली है, जिसमें महासागर एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन हाल ही में हुए एक शोध ने विश्व भर के वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। इस अध्ययन में सामने आया है कि, समुद्रों का तापमान अब तक के सबसे अधिक गर्म होने के स्तर पर पहुंच चुका है और इसका प्रभाव पूरी पृथ्वी की जलवायु पर पड़ सकता है। विशेष तौर पर यह गर्मी कोई आम रूप से नहीं बढ़ रही, बल्कि दो बड़े अक्षांशीय पट्टियों में सबसे ज्यादा तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, एक उत्तरी गोलार्ध में और दूसरी दक्षिणी गोलार्ध में।

अध्ययन से क्या पता चला ?

हाल ही में ऑकलैंड विश्वविद्यालय में जलवायु पर शोध हुआ था, जो कि प्रतिष्ठित जर्नल ऑफ क्लाइमेट में प्रकाशित हुआ है। इसमें साल 2000 से साल 2023 के बीच समुद्री तापमान और वायुमंडलीय डेटा का गंभीरता से खंगाला गया है। शोध का उद्देश्य यह जानना था कि किस क्षेत्र में समुद्री जल सबसे ज्यादा गर्म हो रहा है और इसके पीछे कौन-कौन सी बड़ी वजह हैं।

डॉ. ट्रेनबर्थ और उनके सहयोगियों चीनी विज्ञान अकादमी के लिजिंग चेंग और युयिंग पैन, एनसीएआर (National Center for Atmospheric Research) के जॉन फासुलो, और यूरोपीय मौसम संस्थान के माइकल मेयर ने एक साथ इस पर अध्ययन कर गहराई से जांच किया जिसके अनुसार, समुद्रों में तापमान वृद्धि मुख्य रूप से दो पट्टियों में हो रही है:

1. दक्षिणी गोलार्ध (40°-45° दक्षिण अक्षांश के बीच):

दक्षिणी गोलार्ध क्षेत्र दक्षिणी अटलांटिक, दक्षिण प्रशांत और दक्षिणी हिंद महासागर के हिस्सों को घेरता है। खासतौर से न्यूजीलैंड, तस्मानिया और अर्जेंटीना के पूर्वी हिस्सों में अटलांटिक महासागर की सतह पर तापमान काफी तेजी से बढ़ रहा है।

2. उत्तरी गोलार्ध (लगभग 40° उत्तर अक्षांश):

उत्तरी गोलार्ध क्षेत्र अमेरिका के पूर्वी तट से लेकर उत्तरी अटलांटिक और जापान के पूर्व में उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर तक फैला हुआ है। यहां की समुद्री सतह पर भी असामान्य रूप से अधिक गर्मी दर्ज की गई है।

गौर करने वाली बात - साल 2005 इन दोनों क्षेत्रों में तापमान तेजी से बढ़ने के साफ संकेत मिले हैं। यह रुझान हर साल और ज्यादा तीव्र होता जा रहा है।

हिंद महासागर पर भी मंडरा रहा खतरा


हिंद महासागर के भी खतरे में होने की आशंका जताई जा रही है। शोध में यह भी सामने आया है कि हिंद महासागर का तकरीबन 50% भाग पहले ही जलवायु परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। यह न सिर्फ समुद्री जीवन के लिए बड़ा संकट है, बल्कि इससे मानसून, बरसात और मौसमी चक्रों पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में दिखने लगा है असर

शोध के मुताबिक, 10° उत्तर से 20° दक्षिण अक्षांश तक के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में भी समुद्री तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि, यहां यह प्रभाव थोड़ा नासाफ रहा क्योंकि इस क्षेत्र पर 'अल नीनो' और 'ला नीना' जैसे जलवायु घटनाओं का प्रभाव भी पड़ता है।

क्या है 'अल नीनो' और 'ला नीना'

अल नीनो- अल नीनो एक गर्म चरण है, जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में पानी के तापमान के सामान्य से ज्यादा गर्म होने से बनता है। यह अल नीनो-दक्षिणी दोलन के गर्म चरण को दर्शाता है। अल नीनो के वक़्त, पूर्वी व्यापारिक हवाएँ कमजोर हो जाती हैं, जिसके कारण गर्म पानी पश्चिम की तरफ बहने लगता है।


ला नीना- ला नीना एक ठंडा चरण है, जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में पानी के तापमान के सामान्य से ज्यादा ठंडा होने से बनता है। अल नीनो-दक्षिणी दोलन के ठंडे चरण को दर्शाता है। ला नीना के वक़्त, हवाहों में दम होता है जिसके कारण ठंडा पानी पूर्व की तरफ बहता है।


बता दे, अल नीनो और ला नीना, दोनों अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) के प्रमुख भाग हैं। ENSO एक जलवायु पैटर्न है जो उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र के तापमान और हवा के दबाव में परिवर्तन को दर्शाता है।

इसका प्रभाव

अल नीनो और ला नीना दोनों का विश्वभर की जलवायु पर गहरा असर पड़ता है। मुख्यतः अल नीनो के दौरान, कुछ क्षेत्रों में सूखा और बाढ़ की संभावना बन जाती है, जबकि अन्य क्षेत्रों में तापमान बढ़ जाता है। ला नीना के दौरान, कुछ जगहों में तेज बरसात होने लगती है, जिससे कई क्षेत्रों में तापमान गिर जाता है।

जेट स्ट्रीम और समुद्री धाराओं में परिवर्तन

शोधकर्ताओं ने यह भी खुलासा किया है कि इन हॉटस्पॉट इलाकों का संबंध जेट स्ट्रीम (Jet Stream) के ध्रुवों की तरफ खिसकने और समुद्री धाराओं में आए बदलावों से है।

'जेट स्ट्रीम' यानी जो पृथ्वी की सतह से ऊंचाई पर पश्चिम से पूर्व की तरफ बहती तेज हवाएं होती हैं, जो कि अब अपनी पारंपरिक दिशा से खिसक रही हैं। इससे वायुमंडलीय संतुलन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है और समुद्रों में ज्यादा गर्मी इकठ्ठा हो रही है।

गहराई तक हो रहा है तापमान में परिवर्तन

शोधकर्ताओं ने समुद्र की सतह से लेकर लगभग 2000 मीटर की गहराई तक हर एक डिग्री अक्षांश पर तापमान में हुए परिवर्तनों को गहराई से खंगाला है। तापमान में वृद्धि को जेटाजूल्स (Zetajoules) में मापा गया है, जो ऊर्जा की एक बड़ी इकाई है। यह दर्शाता है कि समुद्रों में कितनी मात्रा में अतिरिक्त ऊष्मा जमा हो रही है।

ग्रीनहाउस गैसें हैं मुख्य कारण


ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जन महासागरों में अधिक ऊष्मा जमा कर रही है। चूंकि महासागर पृथ्वी की सतह के लगभग 70% भाग को कवर करते हैं, इसलिए जलवायु परिवर्तन के असर का ज्यादातर भार यही वहन कर रहे हैं। डॉ. ट्रेनबर्थ के मुताबिक, इस तापमान में लगातार हो रही वृद्धि के पीछे सबसे बड़ा कारण ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा है। आमतौर पर यही ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में गर्मी को फंसा लेती हैं और इसका बड़ा हिस्सा समुद्रों की ओर चला जाता है। यह गर्मी वहां लंबे समय तक जमा रहती है जिससे गर्मी लगातार बढ़ती जाती है।

इसके प्रभाव से बढ़ता संकट -

समुद्रों का गर्म होना कई बड़े संकट की ओर इशारा करता है:

- समुद्री जैव विविधता पर प्रभाव: कोरल रीफ्स (प्रवाल भित्तियों) जैसे संवेदनशील समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकते हैं।

- जलवाष्प की वृद्धि: गर्म समुद्र वातावरण में ज्यादा जलवाष्प उत्सर्जित होते हैं, जो ग्रीनहाउस प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है।

- बढ़ती मौसमी घटनाएं: इससे बड़े तूफानों की तीव्रता और भारी बारिश की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

- मानव जीवन पर असर: समुद्रों में गर्मी के कारण तटीय इलाकों में जलवायु असंतुलन, बाढ़ और खाद्य सुरक्षा जैसी बड़ी दिक्कतें पैदा कर सकती हैं।

प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों जिम्मेदार


हालांकि ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका मुख्य है, लेकिन शोध में यह भी बताया गया है कि इन बदलावों में कुछ हद तक प्राकृतिक जलवायु चक्रों की भी अहम भूमिका है। समुद्रों की धाराएं, पृथ्वी का झुकाव, सूर्य की किरणों की तीव्रता ये सभी मिलकर समुद्री तापमान को अधिक प्रभावित करते हैं।

भविष्य में होने वाले परिणाम

विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर यही प्रवृत्ति लगातार चलती रही तो वो समय दूर नहीं है जब समुद्रों का बढ़ता तापमान तटीय क्षेत्रों के लिए बड़ा संकट बन सकता है। समुद्री जल स्तर में वृद्धि, बर्फ की परतों का पिघलना और मौसम के खतरनाक रूपों की तीव्रता में इजाफा इसके साफ़ परिणाम हो सकते हैं। तटीय शहरों में बाढ़, समुद्री तूफान और जैव विविधता का क्षय जैसी बड़ी दिक्कतें आम हो जाएंगी। कृषि, मत्स्य पालन और पर्यटन जैसे क्षेत्रों पर भी इसका गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

इसका समाधान क्या हो सकता है

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी और कठोर कटौती ही इस खतरे को कम कर सकती है। वैश्विक स्तर पर कार्बन न्यूट्रल रणनीतियों को अपनाना, नवीनीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का निर्माण, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और लगतार विकास की दिशा में सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की सटीक निगरानी और पूर्वानुमान प्रणाली को सुदृढ़ करना भी बेहद जरूरी है, ताकि समय रहते चेतावनी दी जा सके और आपदाओं से बचाव के उपाय किए जा सकें।


अब अगर अभी भी हमने कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले दशक और भी अधिक खतरनाक साबित हो सकते हैं। समुद्रों में लगातार बढ़ती गर्मी का यह नया पैटर्न दुनियाभर के लोगों के लिए एक बड़ी चेतावनी है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब और घातक रूप ले रहा है। वैज्ञानिकों की यह रिसर्च न केवल समुद्री जीवन बल्कि पूरे पृथ्वी के पर्यावरण और मानव जीवन के लिए भी चिंता का विषय है। आज समय रहते कदम उठाए गए तो इस संकट को रोका या कम जरूर किया जा सकता है।

Priya Singh Bisen

Priya Singh Bisen

Content Writer

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