कश्मीर पर ट्रंप ने फिर की मध्यस्थता की पेशकश: अमेरिका के पिछले प्रयासों और उनके परिणामों पर एक नजर

Trump Mediate between Ind-Pak:अमेरिकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता के बाद भारत पाक युद्ध विराम को तैयार हुए लेकिन इसके कुछ समय बाद ही राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक पोस्ट शेयर की है।

Neel Mani Lal
Published on: 11 May 2025 5:20 PM IST
Trump Mediate between Ind-Pak
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नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर कश्मीर विवाद में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को लेकर बहस को हवा दे दी है। रविवार को ट्रुथ सोशल पर पोस्ट करते हुए ट्रंप ने लिखा—“साथ ही, मैं आप दोनों (भारत और पाकिस्तान) के साथ मिलकर यह देखने का प्रयास करूंगा कि क्या ‘हज़ार वर्षों’ के बाद भी कश्मीर को लेकर कोई समाधान निकाला जा सकता है।”

यह टिप्पणी 2019 में कश्मीर पर मध्यस्थता की उनकी पूर्व पेशकश की याद दिलाती है, जिसे बाद में उन्होंने वापस ले लिया था। यह बयान भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए युद्धविराम समझौते के बाद आया है, जिसके बारे में ट्रंप का दावा है कि अमेरिका की कोशिशों से यह संभव हुआ, हालांकि भारतीय अधिकारियों का कहना है कि यह सीधा सैन्य संवाद था, न कि किसी तीसरे पक्ष की पहल।

भारत ने 1972 के शिमला समझौते का हवाला देते हुए हमेशा किसी भी बाहरी मध्यस्थता को सख्ती से खारिज किया है, जिसमें यह स्पष्ट कहा गया है कि कश्मीर सहित सभी मुद्दों का द्विपक्षीय समाधान किया जाएगा।


कांग्रेस पार्टी ने ट्रंप की इस ताज़ा टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए दोहराया कि कश्मीर कोई “हज़ार साल पुराना बाइबिलीय संघर्ष” नहीं, बल्कि पाकिस्तान द्वारा 1947 में जम्मू-कश्मीर पर किए गए आक्रमण से उपजा 78 वर्ष पुराना विवाद है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने इस मसले पर सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है।

इतिहास में अमेरिका के मध्यस्थता प्रयास:

1962: भारत-चीन युद्ध के बाद मध्यस्थता प्रयास


1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, भारत की सैन्य स्थिति कमजोर थी और वह अमेरिकी सैन्य सहायता पर निर्भर था। इस स्थिति को देखते हुए तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की संभावना देखी। राजनयिक एवरेल हैरिमन को नई दिल्ली भेजा गया, जिन्होंने ब्रिटेन के साथ मिलकर भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच वार्ता कराने का प्रयास किया। हालांकि नेहरू बातचीत के लिए तैयार हुए, लेकिन 1963 में भारत ने कश्मीर घाटी देने से इनकार कर दिया, जिससे वार्ता टूट गई। इस विफलता के बाद भारत ने बाहरी मध्यस्थता से दूरी बना ली, क्योंकि उसे लगा कि यह पाकिस्तान को लाभ देगा।

1999: कारगिल युद्ध में अमेरिका की भूमिका


1999 के कारगिल युद्ध के दौरान, पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा पार कर भारत के क्षेत्र में घुसपैठ की, जिसके जवाब में भारत ने सैन्य कार्रवाई की। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने राजनयिक हस्तक्षेप करते हुए पाकिस्तान को आक्रामक करार दिया और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ पर सेना वापस बुलाने का दबाव बनाया। इससे स्थिति युद्ध से पहले के हालात पर लौट आई, लेकिन कश्मीर विवाद की मूल समस्या का समाधान नहीं हुआ। हालांकि, यह अमेरिकी हस्तक्षेप का एक दुर्लभ उदाहरण था जो भारत के हितों के अनुरूप था।

2019: ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश


जुलाई 2019 में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बैठक के दौरान, ट्रंप ने दावा किया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने G20 समिट (ओसाका) के दौरान उनसे कश्मीर पर मध्यस्थता की मांग की थी। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस दावे को तुरंत स्पष्ट रूप से खारिज किया और शिमला समझौते के तहत केवल द्विपक्षीय बातचीत की नीति को दोहराया। भारत में ट्रंप की यह पेशकश संदेह और आलोचना का कारण बनी और बाद में इसे अमेरिका ने खुद भी वापस ले लिया। यह प्रकरण भारत के तीसरे पक्ष की भूमिका को लेकर गहरे अविश्वास को दर्शाता है।

परिणाम और चुनौतियाँ

अब तक के अमेरिकी मध्यस्थता प्रयासों ने मुख्यतः तनाव कम करने (crisis management) में सफलता पाई है, जैसे कि युद्धविराम करवाना, लेकिन कश्मीर के अंतिम समाधान में ये प्रयास असफल रहे हैं। भारत हमेशा से द्विपक्षीय समाधान पर ज़ोर देता आया है, और खुद को एक क्षेत्रीय शक्ति मानते हुए वह बाहरी हस्तक्षेप को अस्वीकार करता है। इसके उलट, पाकिस्तान मध्यस्थता का समर्थन करता है, क्योंकि उसे लगता है कि इससे वह भारत के सैन्य और राजनयिक प्रभाव को संतुलित कर सकता है। 1972 का शिमला समझौता भारत की नीति की रीढ़ की हड्डी बना हुआ है, जिसमें स्पष्ट रूप से किसी तीसरे पक्ष की भूमिका से इनकार किया गया है। हालाँकि, पाकिस्तान इस समझौते की भिन्न व्याख्या करता है और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की वकालत करता है, यह कहते हुए कि द्विपक्षीय बातचीत में कोई प्रगति नहीं हो रही। शीत युद्ध के दौर में अमेरिका का पाकिस्तान की ओर झुकाव, और 9/11 के बाद भारत के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी ने अमेरिका की तटस्थता को और अधिक संदिग्ध बना दिया है।

ट्रंप की नई पेशकश और संभावनाएं

ट्रंप की नई मध्यस्थता पेशकश भी पिछले प्रयासों की तरह ही भारत के विरोध के चलते विफल रहने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका तनाव कम करने में भूमिका निभा सकता है, लेकिन स्थायी समाधान केवल भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद से ही संभव है। जैसे-जैसे यह क्षेत्र अस्थिर बना हुआ है, अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे करीबी से देख रहा है। मलेशिया और ईरान जैसे देशों ने संयम बरतने की अपील की है, जो दर्शाता है कि कश्मीर विवाद वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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