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Umrah or Hajj Mein Fark: मुस्लिम धार्मिक यात्राएं उमराह और हज के बीच क्या होता है अंतर, क्या ये एक ही राह के दो मुक़ाम हैं, जानते हैं विस्तार से
Umrah or Hajj Mein Fark: इस्लाम धर्म में मक्का का विशेष महत्व है, जहां हर मुसलमान की दिली तमन्ना होती है कि वो वहां जाकर खुदा के घर काबा के सामने सर झुकाए।
Umrah or Hajj Mein Kya Fark Hai
Umrah or Hajj Mein Fark: जब एक मुसलमान अपने दिल की गहराइयों से अपने रब के करीब जाना चाहता है, तो वह मक्का की पवित्र ज़मीन की ओर रुख़ करता है। वहीं दो इबादतें उमराह और हज उसे आत्मशुद्धि, क्षमा और आत्मसमर्पण का मार्ग दिखाती हैं। दोनों ही इबादतें इस्लाम की अटूट आस्था और ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए हैं, परंतु इनके बीच कुछ अहम धार्मिक, ऐतिहासिक और व्यवहारिक अंतर हैं। उमराह और हज के बीच अंतर को और अधिक विस्तार से, गहराई और ऐतिहासिक संदर्भों के साथ समझते हैं:-
उमराह और हज: आत्मिक सफर के दो मुकाम
इस्लाम धर्म में मक्का का विशेष महत्व है, जहां हर मुसलमान की दिली तमन्ना होती है कि वो वहां जाकर खुदा के घर काबा के सामने सर झुकाए। इस पवित्र स्थल की ओर दो प्रकार की यात्राएं की जाती हैं-हज और उमराह। हालांकि दोनों का उद्देश्य अल्लाह की रज़ा पाना और आत्मा की शुद्धि है। लेकिन इन दोनों में कई अहम अंतर हैं धार्मिक, ऐतिहासिक, समयगत और अनुष्ठानिक दृष्टिकोण से।
सबसे पहले हज की बात करें तो यह इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और हर वह मुसलमान जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हो, उस पर जीवन में एक बार हज करना फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। हज साल में सिर्फ एक बार ज़िल-हिज्जा महीने की 8 से 13 तारीख़ के बीच होता है।
ज़िल-हिज्जा इस्लामी कैलेंडर का बारहवां और अंतिम महीना होता है। इसे हिंदी में आमतौर पर ‘हज का महीना’ या ‘कुर्बानी का महीना’ कहा जाता है।
हिंदी में इसे कुछ धार्मिक संदर्भों में ‘ज़िलहिज्जा’, ‘ज़िलहज’ या ‘धूल-हिज्जा’ भी कहा जाता है।
इसके लिए लाखों मुसलमान मक्का, मिना, अराफात, मुज़दलिफा जैसे स्थानों की यात्रा करते हैं और विभिन्न अनुष्ठान निभाते हैं। इनमें अराफात में ठहरना (वकूफे अराफात), मुज़दलिफ़ा में रात बिताना, जमरात पर कंकरी मारना (रमी), कुर्बानी देना, तवाफ-ए-जियारा और अंत में तवाफ-ए-विदा जैसे कई विशेष क्रियाएं शामिल हैं। ये सभी क्रियाएं समयबद्ध होती हैं और एक सामूहिक भावना को दर्शाती हैं, जिसमें इंसान अपनी जात-पात, वर्ग, भाषा सब भूलकर सिर्फ एक ‘अब्द’ (बंदा)बनकर अल्लाह के सामने हाज़िर होता है। दूसरी ओर, उमराह को ‘छोटी हज’ भी कहा जाता है, लेकिन यह हज की तरह फ़र्ज़ नहीं है। यह एक सुन्नत मुक्कदाह (प्रेरित इबादत) है और मुसलमान इसे साल के किसी भी समय कर सकते हैं, सिवाय हज के दिनों के। उमराह में अनुष्ठानों की संख्या कम होती है और यह समय में भी कम लगता है। आमतौर पर कुछ घंटों या एक-दो दिन में पूरा हो जाता है। उमराह के मुख्य चरणों में एहराम बांधना, तवाफ (काबा की सात परिक्रमाएं), सई (सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ना) और हल्क़ या क़स्सर (बाल मुंडवाना या कटवाना) शामिल हैं। इसमें अराफात, मिना या कुर्बानी जैसी प्रक्रियाएं नहीं होतीं।
हज की शुरुआत एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
ऐतिहासिक दृष्टि से, हज की शुरुआत हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के समय से मानी जाती है, जब उन्होंने अल्लाह के आदेश से अपने बेटे इस्माईल (अ.स.) और पत्नी हाजरा (र.अ.) को मक्का में बसाया और काबा का निर्माण किया। सफा और मरवा की सई उस समय की याद दिलाती है, जब हाजरा (र.अ.) ने अपने बेटे के लिए पानी की तलाश में इन पहाड़ियों के बीच दौड़ लगाई थी और ज़मज़म का चमत्कारी झरना फूटा।
जमरात पर पत्थर मारना उस घटना की पुनरावृत्ति है जब शैतान ने इब्राहीम (अ.स.) को अल्लाह के हुक्म से रोकने की कोशिश की और उन्होंने उसे कंकरी मारकर भगा दिया। ये सभी उनके बलिदान, सब्र और अल्लाह पर भरोसे की याद दिलाते हैं।
उमराह की शुरुआत
उमराह भी हज़रत इब्राहीम और बाद में पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समय से प्रचलित है। इस्लाम में इसे ‘छोटी हज’ भी कहा जाता है। पैग़म्बर साहब ने कई बार उमराह किया और इसे अत्यंत पुण्यदायक बताया।
उमराह, हालांकि अपने आप में एक पवित्र सफर है। लेकिन उसका ऐतिहासिक आधार हज जितना विस्तृत नहीं है। यह एक निजी इबादत के रूप में जाना जाता है, जिसे पैग़म्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी कई बार किया और इसके महत्व को बताया।
धार्मिक नियमों की दृष्टि से, हज के लिए नीयत (इरादा), समय, स्थलों का क्रम और उनका पालन अत्यंत सख्ती से किया जाता है, क्योंकि थोड़ा भी उल्लंघन करने पर ‘दम’ ( प्रायश्चित) देना पड़ता है। वहीं उमराह में यह प्रक्रिया थोड़ी सरल और लचीली होती है।
सरकारी वीजा में अंतर
आधुनिक युग में, दोनों ही यात्राओं का आयोजन सऊदी अरब सरकार द्वारा सुनियोजित ढंग से किया जाता है। हज के लिए वीज़ा और सरकारी कोटे की आवश्यकता होती है, जबकि उमराह का वीज़ा अधिक सुलभ होता जा रहा है और मुस्लिम देश इसमें यात्रा एजेंसियों के माध्यम से भाग लेते हैं। कोविड-19 के बाद इन दोनों यात्राओं के डिजिटल प्रबंधन को और अधिक सशक्त किया गया है।
भावनात्मक दृष्टि से, उमराह आत्मा की सादगी और आत्मनिरीक्षण का मार्ग है, जबकि हज एक व्यापक, थकाऊ परंतु अत्यंत आध्यात्मिक रूप से ऊंचा अनुभव है, जिसमें एक इंसान अपने ईमान की बुलंदियों को छूता है।
धार्मिक अनुष्ठान और नियम
उमराह के मुख्य चरण:
1. एहराम बंधना(नियत और विशेष वस्त्र पहनना)।
2. तवाफ – काबा की सात बार परिक्रमा।
3. सई – सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ना।
4. हल्क़/क़स्सर – पुरुषों के लिए सिर मुंडवाना या बाल कटवाना, स्त्रियों के लिए थोड़ा बाल काटना।
हज के मुख्य चरण:
1. एहराम (वर्जित करना)बांधना।
2. अराफात में ठहराव – हज का मूल स्तंभ।
3. मुज़दलिफ़ा में रात बिताना।
4. जमरात (शैतान को कंकरी मारना)।
5. कुर्बानी देना।
6. तवाफ-ए-जियारा।
7. सई और फिर विदाई तवाफ।
हज में कई दिन और स्थान शामिल होते हैं जो उसे विस्तृत और अनुशासित बनाते हैं।
उमराह और हज के बीच आध्यात्मिक महत्व
उमराह की यात्रा में व्यक्ति गुनाहों का प्रायश्चित, आत्मिक शुद्धि, और हर बार इस पवित्र यात्रा में नया अनुभव हासिल करता है।
हज की पवित्र यात्रा संपूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इसमें व्यक्ति जीवन का सबसे बड़ा आध्यात्मिक अनुभव, एकता, समानता और अल्लाह से निकटता के भाव को बेहद करीब से महसूस करता है।
वर्तमान में आयोजन और प्रबंधन
सऊदी अरब सरकार द्वारा हज और उमराह का आयोजन अत्यंत व्यवस्थित रूप से किया जाता है। हज के लिए सीमित कोटा होता है और पंजीकरण जरूरी होता है। उमराह की अनुमति अब वीज़ा प्रक्रिया के तहत आसान हो गई है और सालभर तीर्थयात्री मक्का जाते हैं।
उमराह और हज दोनों ही इस्लाम की बेहद पवित्र और भावनात्मक यात्राएं हैं। हज जहां एक बार जीवन में अनिवार्य इबादत है, वहीं उमराह आत्मिक सुकून और रब की बारगाह में विनम्र उपस्थिति का माध्यम है। दोनों ही इबादतें इंसान को अपनी वास्तविकता, विनम्रता और अल्लाह की रहमत का एहसास कराती हैं। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, हज यात्रा हर साल ज़िल-हिज्जा महीने में आयोजित की जाती है, जो इस्लामी वर्ष का बारहवा और अंतिम महीना है। चूंकि इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है, इसलिए ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हज की तिथियां हर वर्ष बदलती रहती हैं। वर्ष 2025 में हज यात्रा के लिए विभिन्न स्रोतों के अनुसार , हज 2025 में 4 जून से 9 जून तक आयोजित होने की संभावना है। लेकिन ये तिथियां अंतिम तौर पर चांद पर निर्भर करती हैं।