World Heritage Day 2025: विश्व धरोहर क्या है? आइए जानते हैं इसके महत्व

World Heritage Day: विश्व धरोहर दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 17 April 2025 12:43 PM IST
World Heritage Day 2025: विश्व धरोहर क्या है? आइए जानते हैं इसके महत्व
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World Heritage Day 2025 (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

World Heritage Day 2025: धरती पर ऐसी अनेक धरोहरें हैं जो न केवल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, या प्राकृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समस्त मानवता की साझी विरासत मानी जाती हैं। इन धरोहरों को संरक्षित रखना और भावी पीढ़ियों तक पहुँचाना हम सभी का दायित्व है। इस उद्देश्य को लेकर यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइज़ेशन (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थलों (World Heritage Sites) की अवधारणा को जन्म दिया गया।

विश्व धरोहर की परिभाषा (Definition Of World Heritage)

विश्व धरोहर (World Heritage) उन स्थलों, स्मारकों, भवनों, संरचनाओं, या प्राकृतिक क्षेत्रों को कहा जाता है जिन्हें यूनेस्को द्वारा विश्व की सामूहिक विरासत के रूप में मान्यता दी जाती है। यह ऐसे स्थल होते हैं जो असाधारण सार्वभौमिक मूल्य (Outstanding Universal Value) रखते हैं।

विश्व धरोहर कार्यक्रम का इतिहास (History Of The World Heritage Program)

वर्ष 1972 में यूनेस्को की महासभा में "The Convention Concerning the Protection of the World Cultural and Natural Heritage" को अपनाया गया।इस समझौते का उद्देश्य था – प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा, संरक्षण और उन्हें मान्यता देना।भारत ने 14 नवंबर 1977 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए।

विश्व धरोहर के प्रकार (Types of World Heritage)

विश्व धरोहर स्थलों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा गया है:-

(i) सांस्कृतिक धरोहर (Cultural Heritage)

ऐतिहासिक इमारतें, मंदिर, मस्जिदें, गुफाएँ, किले आदि।

जैसे– ताजमहल (भारत), पिरामिड (मिस्र), कोलोसियम (रोम)।

(ii) प्राकृतिक धरोहर (Natural Heritage)

वन क्षेत्र, जलप्रपात, पर्वत श्रृंखलाएँ, दुर्लभ जैवविविधता वाले क्षेत्र।

जैसे– काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (भारत), ग्रेट बैरियर रीफ (ऑस्ट्रेलिया)।

(iii) मिश्रित धरोहर (Mixed Heritage)

जहाँ सांस्कृतिक और प्राकृतिक दोनों महत्व मौजूद हों।

जैसे– माचू पिचू (पेरू), माउंट अथोस (ग्रीस)।

विश्व धरोहर स्थल का महत्व (Importance of World Heritage Site)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

ये स्थल हमारे अतीत से जुड़ाव को बनाए रखते हैं।विरासत के माध्यम से हमें सभ्यता, संस्कृति और कला का ज्ञान प्राप्त होता है। इन स्थलों को देखने के लिए लाखों पर्यटक आते हैं। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। यूनेस्को की मान्यता स्थल को वैश्विक मान्यता देती है। राष्ट्र की प्रतिष्ठा को भी बढ़ाती है।अंतरराष्ट्रीय सहयोग, वित्तीय मदद और तकनीकी सहायता मिलती है।

खतरे में पड़ी विश्व धरोहरें

कुछ स्थल युद्ध, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक पर्यटन, शहरीकरण और उपेक्षा के कारण खतरे की सूची (Endangered List) में आ जाते हैं। उदाहरण: दमिश्क का प्राचीन शहर (सीरिया)– युद्ध के कारण।वनीसा का पुराना शहर (वेनिस)– समुद्री जलस्तर बढ़ने के कारण।

भारत में संरक्षण से जुड़ी संस्थाएं (Conservation Organizations In India)

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) – सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 – प्राकृतिक स्थलों की रक्षा।

राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) – स्मारकों के चारों ओर विकास नियंत्रण।

INTACH (इंटैक) – विरासत संरक्षण हेतु गैर-सरकारी संगठन।

विश्व धरोहर और जलवायु परिवर्तन (World Heritage and Climate Change)

जलवायु परिवर्तन ने विश्व धरोहर स्थलों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. हिमालयी ग्लेशियर पिघल रहे हैं।तटीय धरोहरों को समुद्री जलस्तर से खतरा है।गर्मी और सूखे से जैवविविधता पर असर पड़ा है।यूनेस्को अब जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों को संरक्षण योजना में शामिल कर रहा है।

रोचक तथ्य

पहला विश्व धरोहर स्थल: गालापागोस द्वीपसमूह (इक्वाडोर), 1978।

सबसे ज्यादा विश्व धरोहर स्थल वाले देश: इटली और चीन (50+ साइट्स प्रत्येक)।

भारत की पहली विश्व धरोहर स्थलें: अजंता, एलोरा, और आगरा किला (1983)।

विश्व धरोहर स्थल किसी देश की संस्कृति, सभ्यता और प्राकृतिक वैभव के प्रतीक होते हैं। ये स्थल न केवल अतीत की गौरवगाथा सुनाते हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। इनका संरक्षण केवल सरकारी तंत्र का काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है।

सही नीति, जनसहभागिता और तकनीकी सहायता के ज़रिए हम इन धरोहरों को बचा सकते हैं ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इनका वैभव देख सकें और अपनी पहचान को समझ सकें।

भारत के विश्व विरासत स्थल– सांस्कृतिक स्थल

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

आगरे का किला, उत्तर प्रदेश (1983 में शामिल): अकबर के शासनकाल में 1565 से 1573 के दौरान बना यह किला ताजमहल से थोड़ी ही दूर पर, यमुना नदी के तट पर स्थित है। इसका निर्माण लाल बलुआ पत्थरों से किया गया है। इसे लाल किला भी कहा जाता था (यह दिल्ली के लाल किले से अलग है)। इसमें जहाँगीर महल और खास महल मौजूद हैं।

अजंता की गुफाएँ, महाराष्ट्र (1983 में शामिल): शम्भाजी नगर (पूर्व में औरंगाबाद) जिले में स्थित ये 28 गुफाएँ बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। इनमें से अधिकतर वाकाटक काल में निर्मित हैं और शेष सातवाहन काल की हैं (200 ई.पू. से 650 ईस्वी)। इनमें 25 विहार और शेष चैत्य हैं।

एलोरा की गुफाएँ, महाराष्ट्र (1983 में शामिल): एलोरा की 34 "रॉक-कट गुफाओं" का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा 5वीं से 10वीं सदी के बीच हुआ। इनमें 12 बौद्ध, 17 हिन्दू और 5 जैन गुफाएँ हैं।

ताज महल, उत्तर प्रदेश (1983 में शामिल): मुगल बादशाह शाहजहाँ द्वारा अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया गया यह स्मारक सफेद संगमरमर से निर्मित है। इसका निर्माण 1628 से 1648 तक हुआ। यह विश्व के 8 आश्चर्यों में शामिल है और प्रतिवर्ष लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।

महाबलीपुरम के स्मारक समूह, तमिलनाडु (1984 में शामिल): पल्लव राजाओं द्वारा 7वीं और 8वीं शताब्दी के मध्य निर्मित ये स्मारक द्रविड़ शैली में निर्मित हैं। अर्जुन की तपस्या, गंगा का अवतरण, पंच रथ, तट मंदिर आदि मुख्य आकर्षण हैं।

कोणार्क सूर्य मंदिर, उड़ीसा (1984 में शामिल): चंद्रभागा तट पर स्थित यह मंदिर एक विशाल रथ की आकृति में निर्मित है। इसमें 24 पहिए और सात घोड़े दर्शाए गए हैं। इसका निर्माण गंग वंश के नरसिंह देव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी में किया गया था। इसे ब्लैक पैगोडा भी कहा जाता है।

पुराने गोवा के चर्च और मठ (1986 में शामिल): पुर्तगाली काल में बनाए गए इन चर्चों में बेसिलिका ऑफ बॉम जीसस, सेंट कैथेड्रल, चर्च ऑफ सेंट फ्रांसिस ऑफ असीसी प्रमुख हैं।

फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश (1986 में शामिल): अकबर द्वारा 1571-72 में बसाई गई इस नगरी में जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा, दीवान-ए-खास, पंच महल आदि स्थापत्य चमत्कार हैं।

हम्पी में स्मारकों का समूह, कर्नाटक (1986 में शामिल): विजयनगर साम्राज्य की अंतिम राजधानी रही हम्पी में तुंगभद्रा नदी के तट पर विरूपाक्ष मंदिर, विट्ठल मंदिर, कृष्ण बाज़ार आदि स्थित हैं।

खजुराहो के स्मारक समूह, मध्य प्रदेश (1986 में शामिल): चंदेल राजवंश द्वारा 950 से 1050 ईस्वी के मध्य निर्मित ये मंदिर नागर शैली में बने हैं। मैथुन मुद्राओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध ये मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला के अद्भुत उदाहरण हैं।

एलीफेंटा की गुफाएँ, महाराष्ट्र (1987 में शामिल): एलीफेंटा द्वीप पर स्थित इन गुफाओं में शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा प्रमुख है। इनका निर्माण 5वीं से 6ठी शताब्दी ईस्वी के मध्य हुआ था।

महान जीवंत चोल मंदिर, तमिलनाडु (1987 में शामिल): इनमें तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर, गंगैकोण्डचोलपुरम का बृहदेश्वर मंदिर और दारासुरम का एरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर वास्तुकला, मूर्ति कला और कांस्य ढलाई के उत्तम उदाहरण हैं।

पट्टदकल समूह के स्मारक, कर्नाटक (1987)- यह स्थल चालुक्य युगीन मंदिरों का समूह है जिसमें नागर और द्रविड़ शैलियाँ मिलती हैं। विरूपाक्ष मंदिर यहाँ का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।

साँची के बौद्ध स्मारक, मध्य प्रदेश (1989)- सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया यह स्तूप बुद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र है। यहाँ जातक कथाओं की सुंदर नक्काशी मिलती है।

हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली (1993)- यह भारत का पहला चारबाग शैली वाला मकबरा है. इसने ताजमहल जैसे स्मारकों की प्रेरणा दी।

कुतुब मीनार, दिल्ली (1993)- 73 मीटर ऊँची यह मीनार भारत की सबसे ऊँची ईंट मीनार है।यह इस्लामिक स्थापत्य कला का प्रतीक है।

भारत के पर्वतीय रेलवे- दार्जिलिंग, नीलगिरि और कालका-शिमला रेलवे को इसमें शामिल किया गया है।

ये ब्रिटिश युग की इंजीनियरिंग का उदाहरण हैं।

महाबोधि मंदिर, बिहार (20020- यहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था और यह बौद्ध धर्म का पवित्र स्थल है। मंदिर पूरी तरह ईंट से बना है।

भीमबेटका गुफाएँ, मध्य प्रदेश (2003)- यहाँ 30,000 साल पुरानी गुफा चित्रकला देखने को मिलती है।मानव जीवन और शिकार के दृश्य चित्रित हैं।

चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान, गुजरात (2004)- यहाँ हिंदू और इस्लामिक स्थापत्य शैली का मिश्रण है। कालिका माता मंदिर और मस्जिदें प्रमुख हैं।

छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, मुंबई (2004)- यह स्टेशन गोथिक और भारतीय शैली का सुंदर मेल है।यह आज भी मुंबई का व्यस्त रेलवे टर्मिनस है।

लाल किला परिसर, दिल्ली (2007)- शाहजहाँ द्वारा निर्मित यह किला मुग़ल वास्तुकला का प्रतीक है. यह स्वतंत्रता दिवस का प्रमुख स्थल भी है।

जंतर मंतर, जयपुर (2010)- यह खगोलीय यंत्रों का संग्रह है जो समय और ग्रहों की स्थिति दर्शाते हैं।सवाई जयसिंह ने इसका निर्माण करवाया था।

राजस्थान के पर्वतीय किले (2013)- राजस्थान के छह किलों को इसमें शामिल किया गया है। ये राजपूत स्थापत्य और सैन्य रणनीति के प्रतीक हैं।

रानी की वाव (गुजरात)– सोलंकी वंश की रानी द्वारा बनवाई गई यह सीढ़ीनुमा बावड़ी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. इसमें देवी-देवताओं की सुंदर मूर्तिकला अंकित है।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (हिमाचल प्रदेश)– 2014- यह पार्क हिमालय की जैव विविधता को संरक्षित करता है. यहाँ कई लुप्तप्राय वन्य प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

मुंबई का विक्टोरियन और आर्ट डेको स्थापत्य (महाराष्ट्र)– 2018- यह क्षेत्र 19वीं सदी की गोथिक और 20वीं सदी की आर्ट डेको शैली को दर्शाता है।मुंबई की उपनिवेशकालीन और आधुनिक पहचान को दर्शाने वाला समूह है।

काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर (तेलंगाना)– 2021- यह 13वीं सदी का मंदिर काकतीय वंश द्वारा बनवाया गया था। इसकी नक्काशी और हल्के पत्थर की संरचना इसे खास बनाती है।

धोलावीरा (गुजरात)– 2021- यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख नगर है।यहाँ उन्नत जल प्रबंधन और नगर योजना के प्रमाण मिलते हैं।

संतों की वाचिक परंपरा (महाराष्ट्र)– 2021 यह संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम आदि की भक्ति परंपरा से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत है।यह अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्राप्त है।

नटराज की कांस्य प्रतिमा (तमिलनाडु)– 2021- यह चोल वंशकालीन नटराज मूर्ति भारतीय शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।शिव के तांडव नृत्य को यह मूर्ति सुंदरता से प्रदर्शित करती है।

गरबा (गुजरात)– 2023- नवरात्रि का यह पारंपरिक लोकनृत्य नारी शक्ति और भक्ति का प्रतीक है।यह UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल है।

संत तुकाराम महाराज पालखी मार्ग (महाराष्ट्र)– 2021- यह मार्ग पंढरपुर यात्रा के लिए संत तुकाराम की पालखी यात्रा से जुड़ा है।यह भक्तों की आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक है।

संत ज्ञानेश्वर महाराज पालखी मार्ग (महाराष्ट्र)– 2021- यह संत ज्ञानेश्वर की पालखी यात्रा का ऐतिहासिक मार्ग है।यह महाराष्ट्र की भक्ति परंपरा को जीवंत बनाए रखता है।

जयपुर शहर (राजस्थान)– 2019- सवाई जयसिंह द्वारा 1727 में बसाया गया यह नियोजित शहर वास्तुशास्त्र पर आधारित है।यह गुलाबी नगरी अपनी सुंदर स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है।

होयसलेश्वर मंदिर (कर्नाटक)– 2023- यह 12वीं सदी का मंदिर होयसला वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।इसकी दीवारों पर जटिल और सजीव मूर्तियाँ अंकित हैं।

2016 में चंडीगढ़ के कैपिट कॉम्प्लेक्स को विश्व विरासत बनाया गया।

सिक्किम के कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान को साल 2016 नें विश्व विरासत की लिस्ट में शामिल किया गया।

बिहार के नालंदा महाविहार के पुरातत्व स्थल को विश्व धरोहर बनाया गया।

राजस्थान का जयपुर शहर विश्व विरासत है।

2024 में असम राज्य में स्थित अहोम राजवंश का टीला मोइदम (दफनाने की प्रणाली) को युनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया।

पश्चिम बंगाल का शांति निकेतन एक सांस्कृतिक विश्व धरोहर है, जिसे यूनेस्को ने 2023 में विरासतों की लिस्ट में शामिल किया।

दिल्ली का हुमायूं का मकबरा भी विश्व धरोहर है।

विश्व धरोहर दिवस 2025 की थीम

इस साल विश्व धरोहर दिवस 2025 की थीम है- आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत: ICOMOS की 60 वर्षों की कार्रवाइयों से तैयारी और सीख।

इन स्थलों का संरक्षण और प्रचार न केवल पर्यटन को बढ़ावा देता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और समृद्धता को वैश्विक पटल पर उजागर करता है। हम सबका कर्तव्य है कि इन धरोहरों को सम्मान और संवर्धन दें ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस महान विरासत से प्रेरणा ले सकें।

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